Bilaspur News: बिलासपुर में एक ऐसा कुंड है जहां कभी पानी खत्म नहीं होता है. कहा जाता है कि सूखे की मार से निपटने और प्यासे लोगों की जान बचाने के लिए एक बहू ने अपने जीवन का बलिदान दिया था, जिसके बाद यहां कभी पानी की कमी नहीं हुई.
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विजय भारद्वाज/बिलासपुर: देवभूमि हिमाचल प्रदेश अपनी संस्कृति व आस्था के लिए विश्वभर में जाना जाता है. यहां ऐसे कई प्राचीन स्थल और गुफाएं हैं, जिनका विशेष ऐतिहासिक महत्व है. आज हम आपको एक ऐसे ही प्राचीन व ऐतिहासिक स्थल के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर आप ही हैरान रह जाएंगे.
जी हां हैरत कर देने वाली यह कहानी जुड़ी है बिलासपुर से, जहां सूखे के हालातों से लोगों को निजात दिलाने के लिए एक बहू ने अपने ही जीवन का बलिदान दे दिया था, जिसे आज भी लोग पूजते हैं. यह उस समय की बात है जब बिलासपुर के बरसंड व आस-पास के इलाकों में सूखे के हालात बनने से लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे थे.
उनकी इस बदहाल स्थिति को देखते हुए राजा के सपने में कुल देवी आईं और बेटे की बलि देने पर ही सूखे के हालातों से निजात मिलने की बात कही, लेकिन राजा ने बेटे की बलि देने से मना कर दिया, जिसके बाद कुल देवी ने पुत्र वधू की बलि मांगी, जिसे राजा ने मान लिया और दुधमुहे बेटे के साथ मायके (तरेड) गई अपनी बहू रुक्मणी को बुलावे का संदेशा भेजा. वहीं रुक्मणी के ससुराल पहुंचने पर राजा ने सारी व्यथा सुनाई, जिस पर रुक्मणी ने अपनी बलि देने पर सहमति जताई. इसके बाद रुक्मणी को दीवार में जिंदा चिनवाने के लिए एक दिन और जगह निश्चित की गई. राजा ने मिस्त्रियों को बुलाकर बरसंड में बहू की बलि दे दी.
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ऐसा कहा जाता है जब रुक्मणी की चिनाई हो रही थी तब उसने मिस्त्रियों से कहा कि कृपया उसकी छाती (स्तनों) को चिनाई से बाहर रखें, क्योंकि उसका बच्चा छोटा है वह दूध पीने आया करेगा और अगर वो ऐसा नहीं करेंगे तो उसके जिगर का टुकड़ा मर जाएगा. राजा ने बहू की बात मान ली और उसकी छाती (स्तनों) को चिनाई से बाहर रख दिया गया. रुक्मणी की चिनाई पूरी होने के बाद उसकी छाती (स्तनों) से दूध की धारा बहने लगी, लेकिन बाद में यहां से पानी निकलने लगा. धीरे-धीरे रुक्मणी की छाती से निकलने वाले पानी की जगह एक कुंड बन गया, जिसे आज रुक्मणी कुंड कहा जाता है.
एक मान्यता यह भी है कि रुक्मणी की चिनाई के बाद उसका बेटा हर रोज उसके पास दूध पीने जाता था, लेकिन मां को देखने के वियोग में वो भी मर गया और मौत के बाद वह सांप बन गया जो आज भी कुंड में घूमता है. कहा जाता है कि यह सांप किसी भाग्यशाली व्यक्ति को ही दिखाई देता है. वहीं रुक्मणी के इस बलिदान से कुल देवी प्रसन्न हो गईं और पूरे इलाके में सूखे के हालात भी खत्म हो गए.
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रुकमणी की बलि के दौरान जिस स्थान पर उसे चिनवाया गया था उस स्थान पर रुक्मणी का मंदिर बनाया गया है, जिसमें लोगों की अपार आस्था है. लोग दूर-दूर से इस कुंड में नहाने के बाद मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं. रुक्मणी कुंड में 12 महीने पानी भरा रहता है, जिस पर जलशक्ति विभाग द्वारा पांच पेयजल योजनाएं भी चलाई जा रही हैं, लेकिन रुकमणी के मायके वाले यानी तरेड के लोग आज भी इस कुंड का पानी नहीं पीते है. उनके लिए जलशक्ति विभाग द्वारा अलग से योजना बनाकर पीने का पानी उपलब्ध करवाया गया है.
लोगों का कहना है कि रुक्मणी कुंड एक बहू की बलिदान गाथा है, जिसकी जानकारी प्रदेश के लोगों को ही नहीं बल्कि यहां आने वाले पर्यटकों को भी होनी चाहिए, इसलिए प्रदेश सरकार को चाहिए कि इस कुंड का जीर्णोधर किया जाए. यहां पहुंचने के लिए पक्की सड़क, शौचालय और बैठने की उचित व्यवस्था और नहाने के लिए बावड़ी बनाई जाए. इसके साथ ही इस कुंड तक पहुंचने के लिए पर्यटकों को जागरूक किया जाए ताकि कीरतपुर-नेरचौक फोरलेन मार्ग से बाया औहर-गेहडवी संपर्क मार्ग पर महज तीन किलोमीटर दूर स्थित रुकमणी कुंड को पर्यटन की दृष्टि से बढ़ावा मिल सके.
वहीं जलशक्ति विभाग बिलासपुर के अधीक्षण अभियंता डॉ. राहुल दुबे ने कहा कि रुक्मणी कुंड में विधुतीयकरण द्वारा पांच पेयजल योजनाओं के लिए पानी उठाया जाता है, जिसमें मुख्यरूप से बडोली देवी उठाऊ पेयजल योजना, सलासी-जांगला-गेहडवीं उठाऊ पेयजल योजना, बहाव पेयजल योजना बड़ोआ व हीरापुर, बहाव पेयजल योजना बैरीदडोला व बैहनाजटटा और बहाव पेयजल योजना कोठी व बैहलग शामिल है. वहीं डॉ. राहुल दुबे ने रुक्मणी कुंड आने वाले श्रद्धालुओं से अपील की है कि वह कुंड के पानी को स्वच्छ रखें ताकि इन पेयजल योजनाओं के तहत लोगों को स्वच्छ जल आपूर्ति की जा सके.
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