Gandhi Jayanti: पारंपरिक पहनावे को छोड़ खाली बदन सिर्फ धोती पहनकर रहने का लिया प्रण! जानें क्या थी वजह
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Gandhi Jayanti: पारंपरिक पहनावे को छोड़ खाली बदन सिर्फ धोती पहनकर रहने का लिया प्रण! जानें क्या थी वजह

देशभर में आज यानी 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 152वीं जयंती मनाई जा है. सत्य और अहिंसा के पुजारी मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टबर, 1869 को हुआ था.

Gandhi Jayanti: पारंपरिक पहनावे को छोड़ खाली बदन सिर्फ धोती पहनकर रहने का लिया प्रण! जानें क्या थी वजह

नई दिल्लीः देशभर में आज यानी 2 अक्टूबर को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 152वीं जयंती मनाई जा है. सत्य और अहिंसा के पुजारी मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टबर, 1869 को हुआ था. इतना ही नहीं इस दिन को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में भी मनाया जाता है. यह तो आप सभी जानते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत से भारत को आजादी दिलवाने के लिए कई आंदोलन में हिस्सा लिया.

इन्हीं में से एक थी नील की खेती के खिलाफ शुरू हुआ चम्पारण सत्याग्रह, कहते हैं कि नील की खेती के खिलाफ शुरू हुआ चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वंतत्रता संघर्ष के लिए मील का पत्थर साबित हुआ. कांग्रेस के लखनऊ सम्मेलन में चम्पारण के किसानों का दर्द सुनने के बाद महात्मा गांधी 11 अप्रैल, 1917 को मोतिहारी पहुंचे. उस वक्त उनके साथ डॉ.राजेन्द्र प्रसाद भी थे. उस दौरान उन्होंने किसानों की पीड़ा के साथ गरीबी को भी उन्होंने नजदीकी से देखा.

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बता दें कि सामाजिक आंदोलन और फिर जन-जन के आंदोलन की शुरुआत से पहले महात्मा गांधी ने अपने पारम्परिक पहनावे को ही बदल दिया और उन्होंने खाली बदन सिर्फ धोती पहनकर रहने का प्रण ले लिया. इस फैसले के बाद गांधी ने किसानों को एकजुट किया. किसानों के मसीहा बने महात्मा गांधी ने लोगों के दिलों में बड़ी जगह बना ली और इसके बाद से मोहन दास को ‘बापू’ के नाम से बुलाया जाने लगा.

बता दें कि नील की खेती से परेशान किसानों को लेकर उन्होंने अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ आवाज उठानी शुरू की और किसानों की एकजुटता देखने के बाद अंग्रेजी सत्ता काफी घबरा गई और उन्हें चम्पारण छोड़ने का फैसला ले लिया. कोर्ट में पेश होने बाद बापू के हजारों समर्थक कोर्ट में महात्मा गांधी के जयकारे लगाने लगे और आखिरकार कोर्ट को विवश होकर महात्मा गांधी को रिहा करना पड़ा था.

बापू के नेतृत्व से मिली दिशा

कहते हैं कि नील की खेती से जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म हो जाती है. इसी वजह से किसान नील की खेती नहीं करना चाहते थे, जिस वजह से अंग्रेज उन्हें अलग-अलग तरह से यातनाएं देते थे. यातना से परेशान किसान एकजुट हुए और महात्मा गांधी का नेतृत्व मिलते ही आंदोलन शुरू कर दिया. इतिहास से मिली जानकारी के मुताबिक सही मायनों में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत चम्पारण से ही हुई थी.

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