Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश की आर्थिक स्थिति पर्यटन के साथ-साथ यहां की बागवानी पर भी निर्भर करती है. 5 हजार करोड़ की सेब बागवानी से यहां की आर्थिक स्थिति को मजबूती मिलती है, लेकिन इस साल प्रकृति की मार से बागवानी को काफी नुकसान हुआ है.
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समीक्षा कुमारी/शिमला: हिमाचल प्रदेश में इस साल बर्फबारी कम ही हुई, जिसकी वजह से यहां के किसानों और बागवानों को मौसम की मार झेलनी पड़ रही है. समय पर बारिश न होने और कम बर्फबारी की वजह से किसानों और बागवानों को काफी नुकसान हो रहा है. पहले तो सर्दियों के मौसम काफी समय तक ड्राई स्पेल रहा, जिसके बाद तापमान में अप एंड डाउन देखने को मिला और फिर लगातार बेमौसमी बारिश के साथ हुई ओलावृष्टि अब किसानों और बागवानों के लिए दोगुनी चिंता बन चुकी है. लगातार हो रही ओलावृष्टि ने बागवानों की कमर तोड़कर रख दी है.
सेब बागवानी के लिए ये तीन तत्व जरूरी
गौरतलब है कि सेब बागवानी के लिए धूप, बारिश और बर्फबारी ये तीनों तत्व ही जरूरी माने जाते हैं, लेकिन इस साल ना तो समय पर बर्फबारी हुई और ना ही पेड़ों को धूप मिली, जिसकी वजह से पेड़ों पर आ रही फ्लावरिंग पत्तों की तरह झड़ रही है. सेब के पेड़ों को फल आने के लिए उचित तापमान ही नहीं मिल पाया है.
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एक सेब के पेड़ को फल देने लायक बनाने में लगती कड़ी मेहनत
बागवानों का कहना है कि सेब का एक पेड़ तैयार करने में 8 से 10 साल का समय लग जाता है हालांकि नई तकनीक से 4 से 6 वर्षों में भी एक पेड़ तैयार किया जा सकता है. एक पेड़ को फल देने लायक बनाने के लिए प्रक्रिया काफी महंगी और लंबे समय तक चलने वाली होती है. पौधे को बीजने के बाद साल भर उसकी देखरेख की जाती है, कई तरह की कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव किया जाता है और इसके लिए उच्च गुणवत्ता की दवाइयों का इस्तेमाल किया जाना आवश्यक होता है. मिट्टी, जलवायु, सिंचाई, खाद डालना, निषेचन और सेब की किस्म इन तत्वों के आधार पर सेब बागवानी के लिए महत्वपूर्ण होती है.
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सेब की हो सकती है कमी
बागवानों का कहना है कि वे हर साल प्रकृति की माल झेलते हैं. सेब तैयार करने के लिए प्रक्रिया काफी महंगी होती है. कीटनाशक दवाइयां काफी महंगी होती हैं. इस प्रक्रिया पर काफी पैसा खर्च होता है. बागवानों ने बताया कि मौसमी मार की वजह से इस बार सेब की कमी देखी जा सकती है.
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