Kashmiri Separatists leaders Daughter Allegiance To India: कश्मीर के दो अलगाववादी नेताओं की बेटी और पोती ने सार्वजनिक तौर पर ये ऐलान किया है कि उनका अपने बाप-दादा की पार्टी या उनके विचारों से कोई लेना-देना नहीं है. वह एक हिंदुस्तानी नागरिक हैं और भारत की संप्रभुता के प्रति निष्ठा की वह शपथ लेती हैं.
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श्रीनगरः जम्मू-कश्मीर से धारा 370 के खात्मे के बाद भले ही वहां आतंकवादी घटनाएं कम हुई हो या न हुई हो, लेकिन अलगाववादी विचारधारा और आंदोलन की धार जरूर कुंद पड़ती दिखाई दे रही है. नई नस्ल के नौजवान अलगाववाद के नजरिए को तर्क कर मुकम्मल तौर पर हिंदुस्तानी बनने की राह पर चल पड़े हैं. इसके लिए वह अपने पुरखों तक से नाता तोड़कर और उनकी कथित कुबार्नियों को नजरअंदाज कर अल्हदा राह पर निकल चुके हैं.
इसकी ताजा मिसाल, दो अलगाववादी नेताओं के घरों की नई पीढ़ी की लड़कियों ने पेश किया है. जेल में बंद अलगाववादी नेता शब्बीर अहमद शाह की बेटी समा शब्बीर और मरहूम अलगावादी नेता सैयद अली शाह गिलानी की पोती रुवा अल्ताफ ने सार्वजनिक तौर पर अखबार में इश्तेहार देकर इस बात का ऐलान किया है कि उनका अपने पिता या दादा के सियायी नजरिए या उनके तहरीक से कोई राब्ता नहीं है, और वह पूरी तरह से भारत की संप्रभुता के प्रति अपनी निष्ठावान हैं.
अलगाववादी नेता शब्बीर अहमद शाह की बेटी समा शब्बीर ने सार्वजनिक रूप से अपने पिता की डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी (डीएफपी) से खुद को अलग कर लिया है, और भारत संघ की संप्रभुता के प्रति निष्ठा की शपथ ली है. कश्मीर में पूर्व सीबीएसई टॉपर के तौर पर अपनी शानदार शैक्षणिक उपलब्धि के लिए जानी जाने वाली 23 वर्षीय समा शब्बीर ने एक लोकल समाचार पत्र में प्रकाशित एक सार्वजनिक नोटिस के जरिए अपना रुख साफ किया है.
मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग से संबंधित इल्जामों में तिहाड़ जेल में अपने पिता की कैद के बीच, समा शब्बीर ने एक वफादार भारतीय नागरिक के तौर पर अपनी अलग पहचान पर जोर दिया है. उन्होंने अपने पिता द्वारा स्थापित प्रतिबंधित अलगाववादी संगठन से अपनी असहमति को साफ तौर पर जाहिर किया है. नोटिस में लिखा है, “मैं भारत की एक वफादार नागरिक हूं और मैं किसी ऐसे शख्स या संगठन से जुड़ी नहीं हूं, जो भारत संघ की संप्रभुता के खिलाफ हो.”
वहीं, समा शब्बीर के इस ऐलान के बाद सैयद अली शाह गिलानी की पोती ने भी अखबार के माध्यम से सार्वजनिक सूचना जारी की है. उन्हांने अपने पब्लिक नोटिस में लिखा है, "मैं रुवा अल्ताफ पुत्री अल्ताफ अहमद शाह पत्नी मूनिस उल इस्लाम मट्टू, सैयद अली शाह गिलानी की पोती, निवासी हाजी बाग, माम रोड बुचपोरा, एतद्द्वारा यह घोषणा करती हूँ कि, मेरे दादा सैयद अली शाह गिलानी द्वारा संचालित हुर्रियत कांफ्रेंस (जी) से मेरा कोई संबंध नहीं है. संगठन की विचारधारा के प्रति मेरा कोई झुकाव या सहानुभूति नहीं है. इस घोषणा के लिए मेरे नाम का कोई भी उपयोग मेरी तरफ से कानूनी कार्रवाई के लिए उत्तरदायी होगा. मैं भारत की एक वफादार नागरिक हूँ और किसी ऐसे संगठन या एसोसिएशन से संबद्ध नहीं हूँ, जिसका भारत संघ के खिलाफ एजेंडा हो और मैं अपने देश भारत के संविधान के प्रति निष्ठा रखती हूँ."
समा शब्बीर की यह घोषणा उनके परिवार की राजनीतिक विरासत से उनके बगावत का सबूत देती है, और भारतीय राज्य के साथ जुड़ने के लिए एक उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती है. समा शब्बीर और रुवा का ये कबूलनामा कश्मीरी समाज की बदलती हुई राजनीति निष्ठा का एक दस्तावेज है.