'मुसलमानों को अपने मजहब में सुधार चाहिए या पिछली सदियों के वहशीपन के साथ रहना है'
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'मुसलमानों को अपने मजहब में सुधार चाहिए या पिछली सदियों के वहशीपन के साथ रहना है'

शाह आगे कहते हैं कि इससे कम खतरनाक नहीं है हिंदुस्तानी मुसलमानों के कुछ तबकों को उन वहशियों (तालिबान) की जीत पर जश्न मनाना. 

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नई दिल्ली: अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद से कई मुस्लिम मुल्कों में जश्न जैसे हालात हैं. उन्हें तालिबान के दोबारा सत्ता में आ जाने के बाद बहुत खुशी मिल रही है. इसी तरह की सोच के कुछ लोग हिंदुस्तान में भी मौजूद हैं, तालिबान के कब्जे के बाद से उनकी हिमायत बयानबाजी कर रहे हैं. इन लोगों में ना सिर्फ आम आदमी शामिल है बल्कि कुछ बड़े मुस्लिम नेताओं ने भी बयानबाजी की है. 

इसी तरह की बयान बाजी करने वालों को लेकर बॉलीवुड के दिग्गज अदाकारों में शुमार किए जाने वाले नसीरुद्दीन शाह (Nasiruddin Shah) ने बड़ा बयान दिया है और ऐसे लोगों से एक बड़ा सवाल किया है कि जो तालिबान की हिमायत कर रहे हैं. नसीरुद्दीन शाह (Nasiruddin Shah) का एक वीडियो अभय दुबे ने अपने ट्विटर हैंडल से शेयर किया है. जिसमें वो खुद हिंदुस्तानी मुसलमान के बारे में बात कर रहे हैं. 

'हर मुसलमान को पूछना चाहिए खुद से ये सवाल'
वीडियो ने नसीरुद्दीन शाह कहते सुनाई और दिखाई दे रहे हैं कि,"हालांकि अफगानिस्तान में तालिबान का दोबारा हुकूमत पा लेना दुनियाभर के लिए फिक्र का बाइस (कारण) है." शाह आगे कहते हैं कि इससे कम खतरनाक नहीं है हिंदुस्तानी मुसलमानों के कुछ तबकों को उन वहशियों (तालिबान) की जीत पर जश्न मनाना. आज हर हिंदुस्तानी मुसलमान को अपने आप से ये सवाल पूछना चाहिए कि उसे अपने मज़हब में सुधार और आधुनिकता चाहिए या वो पिछली सदियों के वहशीपन के साथ रहना चाहते हैं.

"मुझे सियासी मज़हब की कोई जरूरत नहीं"
शाह आगे कहते हैं कि मैं हिंदुस्तानी मुसलमान हूं, और जैसा कि मिरजा गालिब एक अरसा पहले फरमा गए हैं कि 'मेरा रिश्ता अल्लाह मियां से बेहद बेतकल्लुफ है, मुझे सियासी मजहब को कोई जरूरत नहीं है.' उन्होंने कहा कि हिंदुस्तानी इस्लाम हमेशा दुनिया भर के इस्लाम से अलग रहा है और खुदा वो वक्त न लाए कि वो इतना बदल जाए कि हम उसे पहचान भी न सकें.

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