ऑटोइम्यून बिमारियों वाली महिलाओं में प्रीनेटल डिप्रेशन का अनुभव होने की ज्यादा सम्भानाएं हो सकती है,जबकि प्रेगनेंसी से जुड़े डिप्रेशन के इतिहास वाली महिलाओं में ऑटोइम्यून बीमारियों के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है.
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आपने अक्सर प्रेगनेंट महिलाओं में डिप्रेशन की दिक्कत सुनी होगी.दरअसल, प्रेगनेंसी के दौरान एक औरत का शरीर बहुत सारे बदलावों से गुजरता है. शरीर में होने वाले इन बदलावों के तनाव के कारण प्रेगनेंसी के समय या बाद में डिप्रेशन का अनुभव हो सकता है.इतना ही नही यह इमोशनल परिवर्तन एक औरत के अपने और अपने आस-पास की दुनिया के बारे में महसूस करने के तरीके को प्रभावित कर सकता है.मगर क्या प्रेगनेंसी के दौरान या उसके बाद महसूस होने वाले डिप्रेशन से हमारे इम्यून सिस्टम का भी कोई लेना देना है?
आपको बता दें कि स्वीडिश शोधकर्ताओं ने प्रेगनेंसी से जुड़े डिप्रेशन और ऑटोइम्यून बीमारियां जैसे सोरायसिस,मल्टीपल स्केलेरोसिस,अल्सरेटिव कोलाइटिस और सीलिएक रोग आदि के बीच एक "bidirectional relationship" का खुलासा किया है.अब अगर आसन भाषा में कहे तो जिन महिलाओं को प्रेगनेंसी के कारण डिप्रेशन का अनुभव हुआ, उनमें इन बीमारियों के विकसित होने की संभावना अधिक पाई गयी और जिन महिलाओं को पहले से ही कोई ऑटोइम्यून बीमारी थी, उनमें प्रेगनेंसी से जुड़े डिप्रेशन विकसित होने की अधिक संभावना स्टडी में पाई गयी.
क्या होती है ऑटोइम्यून बीमारी
आपका इम्यून सिस्टम आपके शरीर को बैक्टीरिया, परजीवियों, वायरस आदि से बचाने के लिए अंगों और सेल्स से बनी होती है. ऑटोइम्यून बीमारी इम्यून सिस्टम द्वारा आपके शरीर की रक्षा करने के बजाय गलती से उस पर हमला करने का परिणाम है. आज के समय में दुनिया में 100 से अधिक ज्ञात ऑटोइम्यून बीमारियां मौजूद है. आम बिमारियों में ल्यूपस, रुमेटीइड गठिया, क्रोहन रोग और अल्सरेटिव कोलाइटिस शामिल हैं.ऑटोइम्यून बीमारियां आपके शरीर के कई प्रकार के टिशूस और लगभग किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती हैं. वे दर्द, थकान (थकावट), चकत्ते, सिरदर्द, चक्कर आना जैसे कई प्रकार के लक्षण पैदा कर सकते हैं.
हेरान करने वाली बात यह है कि एक्सपर्ट्स अब तक यह नहीं जानते कि आखिर क्यों आपका इम्यून सिस्टम आप पर निर्भर हो जाता है. एक्सपर्ट्स की माने तो, आपका इम्यून सिस्टम यह अंतर नहीं बता पता कि क्या स्वस्थ है और क्या नहीं. या आपके शारीर के लिए अच्छा है और क्या बुरा.
क्या कहती है स्वीडन की यह स्टडी
करोलिंस्का इंस्टिट्यूट, स्वीडन में की गयी इस स्टडी से पता चलता है कि प्रीनेटल डिप्रेशन के पीछे एक इम्यूनोलॉजिकल मेकेनिज्म है और इस प्रकार के डिप्रेशन के लिए ऑटोइम्यून बीमारियों को एक जोखिम कारक के रूप में देखा जाना चाहिए. स्वीडन के शोधकर्ताओं ने पाया कि यह संबंध मल्टीपल स्केलेरोसिस नाम की एक न्यूरोलॉजिकल बीमारी वाली महिलाओं में सबसे मजबूत पाया गया.
स्टडी के लिए, शोधकर्ताओं ने 2001 और 2013 के बीच स्वीडन में जन्म देने वाली महिलाओं की पहचान करने के लिए स्वीडिश मेडिकल जन्म रजिस्टर डेटा का इस्तेमाल किया था. इस स्टडी में शामिल आठ लाख से अधिक महिलाओं और 13 लाख प्रेगनेंसीस में से, टीम ने पाया कि 55,000 से अधिक को प्रेगनेंसी के दौरान या चाइल्डबर्थ के एक साल के अंदर डिप्रेशन डिटेक्ट किया गया. इसके बाद शोधकर्ताओं ने प्रीनेटल डिप्रेशन के साथ और उसके बिना महिलाओं में 41 ऑटोइम्यून बीमारियों की घटनाओं की तुलना की, जिसमें प्रभावित महिलाओं के परिवार को भी शामिल करके जीन और बचपन के वातावरण जैसे फैक्टर्स को भी चेक किया गया.
परिणामों से प्रीनेटल डिप्रेशन और ऑटोइम्यून बीमारियां जैसे थायरॉयडिटिस, सोरायसिस, एमएस, अल्सरेटिव कोलाइटिस और सीलिएक रोग के बीच एक bidirectional relationship" का पता चलता है.कुल मिलाकर, ऑटोइम्यून बीमारी वाली महिलाओं में प्रीनेटल डिप्रेशन से पीड़ित होने की संभावना 30 प्रतिशत अधिक पाई गयी. इसके विपरीत, प्रीनेटल डिप्रेशन से पीड़ित महिलाओं में बाद में ऑटोइम्यून बीमारी विकसित होने की संभावना 30 प्रतिशत अधिक पाई गयी.
यह संबंध न्यूरोलॉजिकल रोग एमएस के लिए सबसे मजबूत देखा गया, जिसके लिए जोखिम दोनों दिशाओं में दोगुना था.