Talaq E Hasan: एक मुस्लिम महिला ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर तलाक-ए-हसन को मानवाधिकारों और महिला अधिकारों के विरूद्ध बताते हुए इसपर तत्काल रोक लगाने की मांग की है.
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नई दिल्लीः देश में तीन तलाक के बाद अब 'तलाक-ए-हसन' पर विवाद जारी हो गया है. इस व्यवस्था को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को लताक-ए-हसन पर फौरन सुनवाई करने से इनकार कर दिया. अर्जी में तलाक-ए-हसन’ (Talaq-e- Hasan) की प्रथा को तर्कहीन करार दिया गया है. इसे अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है. न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की अवकाशकालीन पीठ ने मामले का जिक्र करने वाले वकील से कहा कि वह अगले सप्ताह पीठ के सामने इसे पेश करें. आप अगले सप्ताह एक मौका ले सकते हैं.
एक मुस्लिम महिला ने वकील अश्विनी कुमार दुबे के जरिए याचिका दायर की है, और केंद्र से लिंग और मजहब से हटकर सभी नागरिकों के लिए तलाक की एक समान प्रक्रिया का दिशानिर्देश तैयार करने का मुतालबा किया है.
क्या होता है ’तलाक-ए-हसन’ ?
’तलाक-ए-हसन’ के तहत तलाक को महीने में एक बार, तीन महीने तक बोला जाता है. अगर इस अवधि के दौरान साथ रहना फिर से शुरू नहीं किया जाता है, तो तीसरे महीने में तीसरी बार ‘तलाक’ कह देने के बाद तलाक को औपचारिक मान्यता मिल जाती है. हालांकि, अगर पहले या दूसरे महीने में ’तलाक’ शब्द के उच्चारण के बाद पति-पत्नी का साथ रहना फिर से शुरू हो जाता है, तो यह माना जाता है कि दोनों पक्षों में सुलह हो गई है.
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याची ने कहा, कई मुस्लिम देशों में इसपर रोक लगा दी गई है
अपनी अर्जी में, याचिकाकर्ता ने कहा है कि ’तलाक-ए-हसन’ और ‘एकतरफा न्यायेतर तलाक’ के अन्य रूपों का प्रचलन ‘‘न तो मानवाधिकारों और लैंगिक समानता के आधुनिक सिद्धांतों के साथ सामंजस्यपूर्ण है और न ही इस्लामी कानून का जरूरी हिस्स है. उन्होंने दावा किया कि कई इस्लामी राष्ट्रों ने इस तरह की प्रथा पर रोक लगा दी है. जबकि यह प्रथा आमतौर पर भारतीय समाज और खासतौर पर, याचिकाकर्ता की तरह मुस्लिम महिलाओं को ‘परेशान’ करती है. याचिका में मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का कथित रूप से खिलाफवर्जी करने के लिए अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है.
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