असम में जापानी इंसेफेलाइटिस का कहर; 63 लोगों की मौत, 347 संक्रमित
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असम में जापानी इंसेफेलाइटिस का कहर; 63 लोगों की मौत, 347 संक्रमित

जापानी इंसेफेलाइटिस और मलेरिया की वजह से असम में हर साल सैंकड़ों लोगों की जानें चली जाती है. खासकर मानसून के मौसम के बाद इन बीमारियों का संक्रमण फैलता है जो आमतौर पर अक्टूबर तक रहता है. प्रमुख सचिव स्वास्थ्य अविनाश जोशी व एनएचएम के निदेशक एम.एस. लक्ष्मी प्रिया ने बताया कि वे लगातार जिला अधिकारियों के संपर्क में हैं और उन्हें स्थिति से निपटने के लिए जरूरी हिदायत दे रहे हैं.

अलामती तस्वीर

गुवाहाटीः असम में गुजिश्ता 37 दिनों में जापानी इंसेफेलाइटिस से कम से कम 63 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 347 संक्रमित पाए गए हैं इस वजह से स्वास्थ्य विभाग को इस बीमारी से निपटने के लिए विभिन्न उपाय करने पड़ रहे हैं. अफसरों ने शनिवार को इसकी जानकारी दी है. शनिवार को नागांव जिले से तीन मौतें हुईं, जबकि कछार, डिब्रूगढ़ और कामरूप मेट्रो सहित 10 जिलों में शनिवार को संक्रमण के कई मामले सामने आए हैं. 

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के मुताबिक, 1 जुलाई से राज्य के 35 जिलों में से 22 से ज्यादा में इस वेक्टर जनित बीमारी से संक्रमित होने के बाद कम से कम 63 लोगों की मौत हो गई है. एनएचएम के अफसरों ने कहा कि उन्होंने संबिंधित जिले के अफसरों को जिला रैपिड रिस्पांस टीमों का गठन करने का निर्देश दिया है. स्थिति पर कड़ी नजर रखने और एहतियाती उपाय करने के लिए इनका गठन किया गया, ताकि बीमारी को और फैलने सेरोका जाए. 

गौरतलब है कि जापानी इंसेफेलाइटिस और मलेरिया की वजह से असम में हर साल सैंकड़ों लोगों की जानें चली जाती है. खासकर मानसून के मौसम के बाद इन बीमारियों का संक्रमण फैलता है जो आमतौर पर अक्टूबर तक रहता है. प्रमुख सचिव स्वास्थ्य अविनाश जोशी व एनएचएम के निदेशक एम.एस. लक्ष्मी प्रिया ने बताया कि वे लगातार जिला अधिकारियों के संपर्क में हैं और उन्हें स्थिति से निपटने के लिए जरूरी हिदायत दे रहे हैं. 

एनएचएम ने स्थिति से निपटने के लिए एक एसओपी और दिशानिर्देश भी जारी किए है. स्वास्थ्य कार्यकर्ता बीमारी के खिलाफ बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान भी चला रहे हैं. अफसरों ने बताया कि पिछले साल जापानी इंसेफेलाइटिस की वजह से कम से कम 40 लोगों की मौत हुई थी. जापानी इंसेफेलाइटिस मुख्य रूप से मानसून के दौरान संक्रमित मच्छरों द्वारा फैलता है.
उल्लेखनीय है कि इस बीमारी से बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में भारी तबाही मच चुकी है. बिहार में तीन साल पहले इस बीमारी में सैकड़ों बच्चे की मौत हो चुकी है, वहीं उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में भी यह बीमारी कहर बड़पा चुकी है. 

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