Jamat-E-Islami on Ajmer Dargah: अजमेर दरगाह को लेकर जमात-ए-इस्लामी का बयान आया है. उन्होंने कोर्ट के आदेश पर आपत्ति जताई है. पूरी खबर पढ़ने के लिए स्क्रॉल करें.
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Jamat-E-Islami on Ajmer Dargah: जमात-ए-इस्लामी हिंद राजस्थान के चीफ मोहम्मद नजीमुद्दीन ने सोमवार को राजस्थान की एक निचली अदालत के जरिए 800 साल पुरानी अजमेर शरीफ दरगाह को मंदिर होने का दावा करने वाली पिटीशन को कबूल करने पर फिक्र का इज़हार किया है.
उन्होंने कहा, "यह बहुत दुख की बात है कि अदालत ने आवेदन प्रस्तुत किया है और नोटिस भी जारी किया है. यह 800 साल पुरानी दरगाह है. यह दुनिया भर में जानी जाती है." उन्होंने आगे कहा कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती एक सूफी शख्स थे, जिन्होंने लोगों की सेवा की और सभी धर्मों के लोग उनका बहुत सम्मान करते हैं. नजीमुद्दीन ने फिक्र का इज़हार करते हुए कहा, "हमारी सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि निचली अदालतों ने इस तरह के आवेदन स्वीकार कर लिए हैं."
राजस्थान की एक अदालत ने हिंदू सेना के जरिए दायर याचिका को स्वीकार कर लिया था, जिसमें दावा किया गया था कि अजमेर शरीफ दरगाह एक शिव मंदिर है. ये मामला उत्तर प्रदेश के संभल में हुए मामले के बाद पेश आया है. जहां शाही मस्जिद को लेकर हुई हिंसा में 4 लोगों की मौत हुई थी और कई पुलिसकर्मी घायल हुए थे.
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने रविवार को कहा कि प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 का पालन किया जाना चाहिए. पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम 15 अगस्त, 1947 को धार्मिक स्थलों की जो स्थिति थी, उसे बदलने पर रोक लगाता है.
असदुद्दीन ओवैसी ने संवाददाताओं से कहा, "अजमेर शरीफ दरगाह भारत की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति का प्रतिनिधित्व करती है... सिर्फ अजमेर शरीफ दरगाह ही नहीं, बल्कि सलीम चिश्ती दरगाह भी जांच के दायरे में है. पूजा स्थल अधिनियम का पालन किया जाना चाहिए."
बता दें, इस महीने की शुरुआत में, अजमेर की एक स्थानीय अदालत ने निर्देश दिया था कि एक सिविल मुकदमे में तीन पक्षों को नोटिस जारी किए जाएं, जिसमें दावा किया गया था कि अजमेर में सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में एक शिव मंदिर है.