Allama Iqbal Poetry: अल्लामा इक़बाल (Allama Iqbal) 9 नवंबर 1877 में पंजाब के सियालकोट में पैदा हुए. उनके बुजुर्ग सप्रू गोत्र के कश्मीरी ब्राहमण थे लेकिन इस्लाम क़बूल कर के सियालकोट में बस गए थे. अल्लामा इकबाल (Allama Iqbal) ने अपना ध्यान एक स्कॉलर के तौर पर लिखने में लगाया.
Trending Photos
Allama Iqbal Poetry: अल्लामा इकबाल दक्षिण एशिया के उर्दू के सबसे बड़े शायरों में से एक थे. वह फलसफी और सियासतदान थे. उन्होंने बीसवीं सदी में उर्दू जबान में बेहतरीन शेर लिखे. अल्लामा इकबाल का नाम मोहम्मद इकबाल है. उन्हें अल्लामा के ऐजाज से नवाजा गया. 'रुमुज-ए-बेखुदी', 'बंग-ए-दारा' भी मशहूर किताबें हैं. इरान में उन्हें उनके फारसी में किए गए काम के लिए याद किया जाता है. 21 अप्रैल 1938 को वह इस दुनिया को अलविदा कह गए.
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब हूँ सज़ा चाहता हूँ
---
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो
तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में
---
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है
---
इल्म में भी सुरूर है लेकिन
ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं
---
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़
---
हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
कुछ बड़ी बात थी होते जो मुसलमान भी एक
---
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
यह भी पढ़ें: Faiz Ahmad Faiz Poetry: 'नहीं विसाल मयस्सर तो आरज़ू ही सही', फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के चुनिंदा शेर
तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ
---
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी
---
ढूँडता फिरता हूँ मैं 'इक़बाल' अपने आप को
आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं
---
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
---
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
---
तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा
तिरे सामने आसमाँ और भी हैं
---
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
---
इसी तरह की और खबरों को पढ़ने के लिए zeesalaam.in पर विजिट करें.