क्या ओवैसी मुस्लिम वोटों का बंटवारा कर तथाकथित सेक्यूलर पार्टियों का खेल बिगाड़ते हैं? देखिए पुराना रिकॉर्ड
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क्या ओवैसी मुस्लिम वोटों का बंटवारा कर तथाकथित सेक्यूलर पार्टियों का खेल बिगाड़ते हैं? देखिए पुराना रिकॉर्ड

Asaduddin Owaisi Vote Cutter: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ओवैसी के उम्मीदवार सामने आने से फिलहाल सपा-रालोद गठबंधन की धड़कनें बढ़ गई हैं. ऐसा लगने लगा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में ओवैसी अखिलेश का खेल बिगाड़ सकते हैं. 

क्या ओवैसी मुस्लिम वोटों का बंटवारा कर तथाकथित सेक्यूलर पार्टियों का खेल बिगाड़ते हैं? देखिए पुराना रिकॉर्ड

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश समेत पांच रियासतों में चुनावों की तारीखों का ऐलान पहले ही किया जा चुका है. इसी के मद्देनज़र करीब सभी पार्टियों ने अपने मोहरे यानी उम्मीदवार उतारने शुरू कर दिए हैं. इसी क्रम में असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) भी यूपी के चुनाव में अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज कराना चाहती है. असदुद्दीन ओवैसी ने भी पहले चरण के चुनाव में अपनी पार्टी के करीब 17 उम्मीदवार उतार दिए हैं जबकि उम्मीद की जा रही है कि बाकी सीटों पर भी जल्दी ही उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया जाएगा.

तथाकथित सेक्यूलर पार्टियों का ओवैसी पर वोटकटवा होने का आरोप
असदुद्दीन ओवैसी  (Asaduddin Owaisi)  के पूरे दम-खम के साथ यूपी में चुनाव लड़ने के ऐलान ने सपा की फिक्रमंदी में इज़ाफ़ा कर दिया है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में ओवैसी अखिलेश का खेल बिगाड़ सकते हैं. वहीं, सपा, बसपा और कांग्रेस जैसी तथाकथित सेक्यूलर पार्टियों का इलज़ाम है कि ओवैसी सेक्यूलर वोटों में बंटवारा करके बीजेपी को फायदा पहुंचाना चाहते हैं.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा-रालोद गठबंधन की धड़कने क्यों बढ़ गईं?
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ओवैसी के उम्मीदवार सामने आने से फिलहाल सपा-रालोद गठबंधन की धड़कनें बढ़ गई हैं. ऐसा लगने लगा है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में ओवैसी अखिलेश का खेल बिगाड़ सकते हैं. बताया जा रहा है कि वह मुस्लिम नेता जिन्हें सपा-रालोद गठबंधन की तरफ से टिकट नहीं मिला है, उन्हें ओवैसी की पार्टी अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है.

कई दिग्गजों को अपने पाले में लाने की तैयारी में ओवैसी
जानकारी के मुताबिक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई कद्दवार नेता जैसे कि क़ादिर राणा, मुरसलीन राणा, लियाकत अली जैसे कई मज़बूत उम्मीदवार सपा-रालोद के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते थे. क़ादिर राणा तो सांसद और विधायक भी रह चुके हैं. मुसलमानों को इन जैसे मज़बूत दावेदारों की अनदेखी खल रही है. ऐसे में इन नेताओं में ओवैसी की पार्टी अपने लिए संभावनाएं तलाश रही है. अगर इनमें से कुछ नेता चुनाव लड़ने के लिए राज़ी हो जाते हैं तो वो भले ही जीत न पाएं लेकिन कुछ वोट काटकर समाजवादी पार्टी-आरएलडी गठबंधन का खेल ज़रूर बिगाड़ सकते हैं.

शाइस्‍ता परवीन के उम्मीदवार होने से कांटे की टक्‍कर होने की उम्‍मीद 
वहीं, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने प्रयागराज पश्चिम विधानसभा सीट से माफिया डॉन और पूर्व सांसद अतीक अहमद (Bahubali Atiq Ahmed) की पत्नी शाइस्ता परवीन ( Shaista Parveen) को मैदान में उतारने का फैसला किया है. इस सीट को कभी अतीक का गढ़ माना जाता था. अतीक ने इस सीट से कई बार विधानसभा चुनाव जीता है. अब शाइस्‍ता परवीन के इस सीट पर उम्‍मीदवार होने से कांटे की टक्‍कर होने की उम्‍मीद जताई जा रही है.

सिर्फ 17 उम्मीदवारों के नामों के ऐलान से हड़कंप
गौरतलब है कि अभी ओवसी ने सिर्फ 17 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया है, तो समाजवादी पार्टी-आरएलडी की धड़कनें बढ़ती नज़र आ रही हैं. जब ओवैसी पूरे सौ उम्मीदवार उतार देंगे तब समाजवादी पार्टी-आरएलडी गठबंधन का क्या हाल होगा.

समाजी हस्तियां भी ओवैसी को लेकर फिक्रमंद
सियासी पार्टियों के अलावा कई समाजी हस्तियों ने भी ओवैसी के यूपी में चुनाव लड़ने पर सवाल उठाया है और ओवैसी को मशविरा दिया है कि जहां तक मुमकिन हो मुस्लिम वोटों के बटवारे को रोका जाए. कुछ दिनों पहले ही ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के रुक्न खलील-उर-रहमान नोमानी ने ओवैसी को खत लिख कर मुस्लिम वोटों के तकसीम को रोकने की अपील की थी. उन्होंने कहा था कि जिन सीटों पर पार्टी की जीत पक्की हो, उन्हीं सीटों पर उन्हें अपने उम्मीदार उतारने चाहिए. खलील-उर-रहमान नोमानी ने ओवैसी को दूसरी पार्टियों से गठबंधन की सलाह दी थी और कहा थी कि वोटरों के बंटवारे को रोकना ज़रूरी है.

क्या ओवैसी हकीकत में वोटकटवा हैं?
तो सवाल ये है कि क्या वाकई ओवैसी की भूमिका उत्तर प्रदेश में वोटकटवा से ज्यादा नहीं होगी और ओवैसी के मैदान उतरने से इन नाम निहाद सेक्यूलर पार्टियों को नुकसान होगा और बीजेबी इसका लाभ उठाएगी? हालांकि ओवैसी चुनावी रैलियों के दौरान बार-बार कह चुके हैं कि वह उत्तर प्रदेश में वोट काटने नहीं आये हैं, बल्कि मजबूती के साथ चुनाव लड़ेंगे. उन्होंने दूसरी रियासतों के नतीजों की चर्चा करते हुए कहा कि हमारे लोग अगर शिवसेना को हरा सकते हैं तो भाजपा को क्यों नहीं.

क्या कहते हैं बिहार चुनाव के आंकड़े
बिहार विधानसभा चुनावों में असद्दुदीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मज़लिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमिन (एआईएमआईएम) ने पांच विधानसभा सीट जीतकर चुनावों में अपनी गहरी छाप छोड़ी है. बिहार चुनाव में विधानसभा की कुल 243 सीटों में से 20 सीटों पर ओवैसी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे. चुनाव में इस कामयाबी के बाद से ही ओवैसी तथाकथित सेक्यूलर पार्टियों के निशाने पर हैं और इन पार्टियों का कहना है कि ओवसी की वजह से उन्हें बिहार चुनाव में हार मिली है.

ओवैसी महागठबंधन के लिए ‘वोटकटवा’ बनकर ग्रहण साबित हुआ?
इसलिए सवाल उठता है कि क्या वास्तव में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने बिहार विधानसभा चुनावों में महागठबंधन की सत्ता वापसी की संभावनाओं पर ‘वोटकटवा’ बनकर ग्रहण लगाया है और महागठबंधन को सत्ता से दूर कर दिया?

आंकड़ों में जुदा तस्वीर नज़र आई
अगर आंकड़ों की बात करें तो तस्वीर जुदा नजर आती है. बिहार में मौजूदा विधानसभा चुनावों में जिन 20 सीटों पर ओवैसी ने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, 2015 के विधानसभा चुनावों में उनमें से 11 सीट पर महागठबंधन के घटक दलों, कांग्रेस (6) और राजद (5), का कब्जा रहा था.

बाकी बचीं 9 सीट एनडीए के घटक दलों, जदयू (7) और भाजपा (2), के पास थीं. (2015 में जदयू और राजद गठबंधन में चुनाव लड़े थे.

महागठबंधन को ओवैसी से कोई नुकसान नहीं पहुंचा
लेकिन एआईएमआईएम के उभार के बाद इन 20 सीटों पर नये समीकरण यह हैं कि अब महागठबंधन का 9 सीट पर कब्जा है (कांग्रेस 4, राजद 3, भाकपा माले 2) जबकि एनडीए 6 सीट पर सिमट गया है. (भाजपा 3, जदयू 2, वीआईपी 1). इस नजरिये से देखें, तो इन बीस सीटों पर एआईएमआईएम के उभार के बाद एनडीए ने अपनी तीन सीटें गंवाई हैं जबकि महागठबंधन को बस दो सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है.

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