18 साल से कम उम्र की मुस्लिम लड़की पसंद के शख़्स से कर सकती है शादी; लेकिन हिन्दू लड़की नहीं
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18 साल से कम उम्र की मुस्लिम लड़की पसंद के शख़्स से कर सकती है शादी; लेकिन हिन्दू लड़की नहीं

High Court allows custody of 16 yr old Muslim girl to husband : यह मामला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए आया था, जहां कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल बोर्ड का हवाला देकर लड़की को उसके शौहर को सौंपने का  हुक्म दिया है. 

 

अलामती तस्वीर

चंडीगढ़ः पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि 15 साल से ज़्यादा उम्र की मुस्लिम लड़की अपनी पसंद से किसी भी शख़्स से शादी कर सकती है, और उसकी यह शादी क़ानूनी मानी जाएगी. अदालत ने 16 साल की एक लड़की को अपने हस्बेंड के साथ रहने की इजाज़त देते हुए यह बात कही है. जस्टिस विकास बहल की बेंच ने जावेद (26) की एक अर्ज़ी पर सुनवाई की, जिसमें उसकी 16 साल की बीवी को उसके साथ रहने की इजाज़त देने की अपील की गई थी. लड़की को हरियाणा के पंचकूला में एक चाइल्ड होम में रखा गया है. हालांकि कोई हिन्दू लड़की ऐसा नहीं कर सकती है, उसे ऐसा करने के लिए 18 साल की उम्र पार करनी होगी.  

16 साल की उम्र में लड़की ने किया था मर्ज़ी से निकाह 
अर्ज़ीगुज़ार ने अदालत से कहा था कि उसकी शादी के वक़्त उसकी वाइफ की उम्र 16 साल से ज़्यादा थी और यह शादी उनकी मर्ज़ी से और बिना किसी दबाव के हुई थी. अर्ज़ी देने वाले शख़्स ने अपने वकील के ज़रिए कहा था कि दोनों मुसलमान हैं और उन्होंने 27 जुलाई को एक मस्जिद में ‘निकाह’ किया था. अर्ज़ीगुज़ार के वकील ने यूनुस ख़ान बनाम हरियाणा स्टेट मामले में हाईकोर्ट की कोआर्डिनेशन बेंच के फैसले पर भरोसा करते हुए दलील दी कि लड़की को अर्ज़ीगुज़ार के साथ रहने की इजाज़त दी जानी चाहिए. हालांकि, रियासत के वकील ने अर्ज़ी की मुख़ालेफत की और कहा कि वह नाबालिग़ है, इसलिए उसे चाइल्ड होम में रखा जा रहा है साथ ही वकील ने अर्ज़ी ख़ारिज करने की गुहार लगाई थी.

इस बुनियाद पर अदालत ने लड़की को उसके शौहर के हाथ सौंपा 
यूनुस ख़ान मामले में फैसले को देखते हुए, अदालत ने अपने 30 सितंबर के आर्डर में कहा कि इसका जायज़ा लेने के बाद यह नज़र आता है कि इस फैसले में अदालत की कोआर्डिनेशन बेंच ने देखा था कि एक मुस्लिम लड़की की शादी जिसके तहत होती है, वह है मुसलमानों का मुस्लिम पर्सनल लॉ. अदालत ने कहा कि एचसी बेंच ने मोहम्मडन क़ानून के उसूलों पर भरोसा किया है, और उसी पर ग़ौर करने के बाद, यह देखा गया है कि एक मुस्लिम ख़ातून के जवान होने की उम्र 15 साल मानी जाती है, और बालिग़ होने के बाद वह अपनी ख़ुशी और रज़ामंदी के मुताबिक़ अपनी ज़िंदगी जी सकती है. वह अपनी पसंद के शख़्स से शादी भी कर सकती है. अदालत ने कहा, ’’बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 की धारा 12 के तहत ऐसी शादी ग़ैर मंज़ूरशुदा नहीं होगी.’’ इसके बाद जज ने लड़की को अर्ज़ीगुज़ार (याचिकाकर्ता) की कस्टडी में सौंपने की इजाज़त दे दी.  

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