समलैंगिक शादी पर आज सुप्रीम कोर्ट में बहस, कानून में नहीं है 'पत्नी' शब्द की परिभाषा?
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समलैंगिक शादी पर आज सुप्रीम कोर्ट में बहस, कानून में नहीं है 'पत्नी' शब्द की परिभाषा?

Same Gender Marriage: देश की सबसे बड़ी अदालत में आज सेम जेंडर मैरिज को लेकर बड़ी बहस होगी. कुछ समलैंगिक जोड़ों की तरफ से याचिका में उनकी शादी का मंजूरी देने की मांग की गई है

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Difference Between Sex or Gender: भारत में अभी तक सेम जेंडर से शादी करने की इजाज़त नहीं है. इस मुद्दे से जुड़ी दो याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी. ये दोनों याचिकाएं केरल और दिल्ली हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर की गई थी, जिनपर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने रजामंदी का इज़हार कर दिया था. एक याचिका सुप्रिया चक्रवर्ती और अभय डांग ने दाखिल की है. इसके अलावा दूसरी याचिका पार्थ फिरोज मेहरोत्रा और उदय राज की तरफ से दाखिल की गई है. 

"पत्नी शब्द का कानून में कोई जेंडर नहीं"
दोनों याचिकाओं में उनकी शादी की मान्यता देने की मांग की गई है. सुप्रिया और अभय लगभग 10 वर्षों साथ रह रहे हैं तो वहीं पार्थ फिरोज और उदय पिछले 17 वर्षों से रिलेशनशिप में हैं. पार्थ और उदय का कहना है कि वो दो बच्चों को परवरिश कर रहे हैं. ऐसे में उन्हें कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. बैंक और स्कूल समेत कई संस्थानों में उनके काम मुकम्मल नहीं हो पाते. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि भारतीय कानून में 'पत्नी' शब्द के जेंडर के बारे में नहीं बताया गया. इसलिए वो 'पत्नी' को न्यूट्रल मानने की मांग कर रहे हैं.

इन दिक्कतों का सामने करते हैं समलैंगिक जोड़े:
याचिकाकर्ताओं ने मांग की है कि उन्हें स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी की मंजूरी मिलनी चाहिए. उन्होंने कहा कि अब तक उन्हें मंजूरी नहीं मिलने पर प्रॉपर्टी, बच्चे गोद लेने और सरोगेसी, ज्वाइंट बैंक अकाउंट खुलवाने, स्कूल में बच्चों के पेरेंट्स नहीं कहलाने जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. 

158 साल पुराना हो चुका है रद्द
बता दें कि देश में सिर्फ ये दो याचिकाएं ही नहीं हैं जिनपर सुनवाई होनी है. इसके अलावा अलग-अलग राज्यों में इस संबंध में अर्जियां लगी हुई हैं. जिनको सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने पर भी फैसला हो सकता है. इसके अलावा आपको यह भी बता दें कि देश में समलैंगिकता यानी सेम जेंडर में शादी की हिमायत करने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है और अदालत इस संबंध में 158 वर्ष पुराने कानून को 2018 में रद्द कर चुकी है. रद्द किए जाने वाले कानून में समलैंगिकता को जुर्म माना गया था. इस कानून को रद्द करने वाली बेंच में मौजूद चीफ जस्टिस भी थे. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि जल्द ही हिंदुस्तान में भी समलैंगिकों को शादी की इजाज़त मिल सकती है. 

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