Iftikhar Hussain Arif Shayari: इफ्तिखार हुसैन आरिफ उर्दू के शायर हैं. उनका ताल्लुक उत्तर प्रदेश के लखनऊ से है. 1965 में वह पाकिस्तान चले गए.
Trending Photos
Iftikhar Hussain Arif Shayari: इफ्तिखार हुसैन आरिफ उर्दू के मशहूर शायर हैं. वह बुद्धिजीवी और दार्शनिक थे. उनकी पैदाइश 21 मार्च 1940 को लखनऊ में हुई. साल 1965 में वह पाकिस्तान चले गए. उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से कला में ग्रेजुएशन किया. उनके तीन संग्रह, 'मेहर-ए-डोनीम', 'हर्फ-ए-बरयाब' और 'जहान-ए-मालूम' कई संस्करणों में प्रकाशित हुए हैं. उन्हें पाकिस्तान सरकार की तरफ से सबसे बड़ा साहित्यिक पुरस्कार 'हिलाल-ए-इम्तियाज', 'सितारा-ए-इम्तियाज' और 'प्रेसिडेंशियल प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस' जैसी पुरस्कार दिए गए हैं.
अज़ाब ये भी किसी और पर नहीं आया
कि एक उम्र चले और घर नहीं आया
दुआ को हाथ उठाते हुए लरज़ता हूँ
कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए
कोई तो फूल खिलाए दुआ के लहजे में
अजब तरह की घुटन है हवा के लहजे में
समुंदरों को भी हैरत हुई कि डूबते वक़्त
किसी को हम ने मदद के लिए पुकारा नहीं
मिरे ख़ुदा मुझे इतना तो मो'तबर कर दे
मैं जिस मकान में रहता हूँ उस को घर कर दे
यह भी पढ़ें: Faisal Ajami Shayari: 'कभी देखा ही नहीं उस ने परेशां मुझ को'; फैसल अजमी के शेर
दुआएँ याद करा दी गई थीं बचपन में
सो ज़ख़्म खाते रहे और दुआ दिए गए हम
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
दिल पागल है रोज़ नई नादानी करता है
आग में आग मिलाता है फिर पानी करता है
ज़माना हो गया ख़ुद से मुझे लड़ते-झगड़ते
मैं अपने आप से अब सुल्ह करना चाहता हूँ
घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है
रास आने लगी दुनिया तो कहा दिल ने कि जा
अब तुझे दर्द की दौलत नहीं मिलने वाली
ख़ुद को बिखरते देखते हैं कुछ कर नहीं पाते हैं
फिर भी लोग ख़ुदाओं जैसी बातें करते हैं
इस तरह की खबरें पढ़ने के लिए zeesalaam.in पर जाएं.