जमीयक बैठक: महमूद मदनी बोले जिसे हमारा मज़हब बर्दाश्त नहीं, वो कहीं और चला जाए
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जमीयक बैठक: महमूद मदनी बोले जिसे हमारा मज़हब बर्दाश्त नहीं, वो कहीं और चला जाए

Jamiat Ulema-e-hind: जमीयत उलमा-ए-हिंद की नीव 1919 में पड़ी. इसकी बुनियाद अब्दुल बारी फिरंगी महली, सनाउल्लाह अमृतसरी, मुहम्मद इब्राहिम मीर सियलकोटी और खिफायुतल्लाह देहलवी ने इसकी नीव रखी.

Arshad Mahmood

Jamiat Ulema-e-hind: देश के मौजूदा हालात पर बातचीत करने के लिए जमीयत उलमा-ए-हिंद की तरफ से देवबंद में दो दिवसीय बैठक जारी है. इसमें देश के कई मु्स्लिम रहनुमा शामिल हुए हैं. सभा में ज्ञानवापी केस, कुतुब मीनार का मामला और मथुरा में शाही ईदगाह का मामला उठाया गया है. इस सभा में एक चीज जो सबसे खास रही वह यह कि सभा में 100 साल पुराने संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद जो पहले दो गुटों में बंटा था वह एक मंच पर आ गया है.

जमीयत-उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि "जिसे हमारा मज़हब बर्दाश्त नहीं, वो कहीं और चला जाए" उन्होंने कहा कि "हम इसी मुल्क़ के शहरी हैं, गैर नहीं, देश की हिफाजत के लिए हमारी जान जाएगी खून बहेगा तो ये हमारे लिए सौभाग्य की बात होगी"

जमीयत ने बैठक में कहा कि "पुरानी इबादतगाहों पर बार-बार विवाद खड़ा कर के देश में अमन व शांति को ख़राब करने वाली शक्तियों और उनको समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों के रवैये से अपनी गहरी नाराज़गी व नापसंदगी ज़ाहिर करती है." जमीयत ने अपने एक बयान में कहा कि "बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की एतिहासिक ईदगाह और दीगर मस्जिदों के खिलाफ़ इस समय ऐसे अभियान जारी हैं जिससे देश में अमन शांति और उसकी गरिमा और अखंडता को नुकसान पहुंचा है." ज़मीयत वे ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा ईदगाह के संबंध में प्रस्ताव पारित किया है. जमीयत ने कहा कि "सरकार राजनीतिक दल और किसी धार्मिक वर्ग को अतीत के गड़े मुर्दों को उखाड़ने से बचना चाहिए."

देवबंद में हो रहे सम्मेलन में यूनिफॉर्म सिविल कोड पर प्रस्ताव पास किया गया है. प्रस्ताव पास करते हुए कहा गया कि ''मुस्लिम पर्सनल लॉ में शामिल मामले जैसे कि शादी, तलाक़, ख़ुला (बीवी की मांग पर तलाक़), विरासत आदि के नियम क़ानून किसी समाज, समूह या व्यक्ति के बनाए हुए नहीं हैं. न ही ये रीति-रिवाजों या संस्कृति के मामले हैं, बल्कि नमाज़, रोज़ा, हज आदि की तरह ये हमारे मज़हबी आदेशों का हिस्सा हैं, जो पवित्र कुरआन और हदीसों से लिए गए हैं. इसलिए उनमें किसी तरह का कोई बदलाव या किसी को उनका पालन करने से रोकना इस्लाम में स्पष्ट हस्तक्षेप और भारत के संविधान की धारा 25 में दी गई गारंटी के खि़लाफ़ है. इसके बावजूद अनेक राज्यों में सत्तारूढ़ लोग पर्सनल लॉ को ख़त्म करने की मंशा से ‘समान नागरिक संहिता क़ानून’ लागू करने की बात कर रहे हैं और संविधान और पिछली सरकारों के आश्वासनों और वादों को दरकिनार कर के देश के संविधान की सच्ची भावना की अनदेखी करना चाहते हैं.''

दरअसल जमीयत उलमा-ए-हिंद संगठन दो गुटों में बटी हआ है. एक मौलाना महमूद मदनी का है तो दूसरा मौलाना अरशद मदनी का है. दोनों ही रहनुमा अपने संगठन के अध्यक्ष हैं. मौलाना अरशद मदनी महमूद मदनी के चाचा हैं. देवबंद में चल रहा सम्मेलन महमूद मदनी की तरफ से किया जा रहा है. लेकिन 28 मई की शाम को यहां अरशद मदनी भी पहुंचे. अरशद मदनी ने इस बात के संकेत दिए हैं कि ये दोनों गुट एक हो सकते हैं.

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ख्याल रहे कि जमीयत उलमा-ए-हिंद परिवारिक झगड़ों की वजह से दो धड़ों में बंटा हुआ है. साल 2006 में जब महमूद मदनी के पिता मौलाना असद मदनी का इंतकाल हुआ तो उसके बाद से ही संगठन में चाचा-भतीजे में लड़ाई छिड़ गई और संगठन दो गुटों में बंट गया. असद मदनी लंबे वक्त तक जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष रहे लेकिन उनकी मौत के बाद संगठन दो गुटों में बंटा.

बताया जाता है कि जमीयत उलमा-ए-हिंद की नीव 1919 में पड़ी. इसकी बुनियाद अब्दुल बारी फिरंगी महली, सनाउल्लाह अमृतसरी, मुहम्मद इब्राहिम मीर सियलकोटी और खिफायुतल्लाह देहलवी ने इसकी नीव रखी.

हालांकि लंबे वक्त के बाद दोनों गुटो के एक साथ आने के संकेत साफ देखे जा सकते हैं. देवबंद में जब मौलाना अरशद मदनी पहुंचे तो मौलाना महमूद मदनी ने उनका जोरदार स्वागत किया. इस पर अरशद मदनी ने कहा कि वह दिन दूर नहीं जब दोनों गुट एक हो जाएंगे.

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