Mirza Ghalib Birthday Special: मिर्जा गालिब उर्दू के सबसे बड़े शायरों में शुमार किए जाते हैं. वह ऐसे शायर हैं कि कई सदी गुजर जाने के बावजूद आज भी शेर व शायरी के चाहने वाले उनकी शायरी पढ़ते हैं. पेश हैं उनके कुछ चुनिंदा शेर.
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Mirza Ghalib Birthday Special: उर्दू (Urdu) के महान शायर रहे मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) का नाम हर किसी ने सुना होगा. मिर्ज़ा ग़ालिब का असली नाम मिर्ज़ा असद-उल्लाह बेग खान था. उर्दू के महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब का जन्म 27 दिसंबर, 1797 को हुआ था और उनका निधन 15 फरवरी, 1869 को हुआ. आज हम आपको मिर्ज़ा ग़ालिब (Mirza Ghalib) के कुछ 12 चुनिंदा शेर बताएंगे. आइए देखते हैं.
मिर्ज़ा ग़ालिब के 12 चुनिंदा शेर
"उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है"
"न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता"
"आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक"
"मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले"
"हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है"
"रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है"
"इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना"
"आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए,
साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था"
"हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले,
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले"
"हम वहाँ हैं जहाँ से हम को भी,
कुछ हमारी ख़बर नहीं आती"
"मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था,
दिल भी या-रब कई दिए होते"
"ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता,
अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता"