Muslim girls also have these rights of marriage in Islam: इस्लाम में शादी एक सोशल कॉन्ट्रेक्ट माना जाता है, इस मुद्दे पर लड़की-लड़का या स्त्री-पुरुष दोनों की आपसी सहमित जरूरी होती है.
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नई दिल्लीः इस्लाम में स्त्री और पुरुषों को बराबरी का हक देने की बात कही गई है, यानी दोनों को एक समान माना गया है. इसलिए निकाह यानी विवाह में लड़के और लड़कियों को बराबरी के अधिकार दिए गए हैं. किसी भी बालिग लड़के या लड़की को अपनी पंसद के मुतबिक अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार दिया गया है. शादी को लेकर लड़की पर किसी तरह की जबर्दस्ती या अपनी मर्जी न थोपने का हुक्म दिया गया है. इसलिए निकाह के पहले लड़की से उसकी रजामंदी ली जाती है.
मर्जी के खिलाफ किसी से निकाह नहीं किया जा सकता
मौलाना अबरार अहमद इस्लाही कहते हैं, ’’निकाह में लड़की की रजामंदी निकाह के जरूरी शर्तों में से एक है. किसी भी बालिग लड़की को उसकी मर्जी के खिलाफ किसी से निकाह नहीं किया जा सकता है. लड़की को डरा-धमकाकर, बाध्य कर, छल-कपट से या फिर किसी चीज का प्रलोभन देकर शादी नहीं की जा सकती है. अगर कोई ऐसा करते है, जिसमें लड़की के रजामंदी के बगैर उसकी शादी किसी से कर दी जाती है, तो ऐसी शादियां न सिर्फ सामाजिक बल्कि धार्मिक ऐतबार से गलत होती हैं. यहां तक कि इस्लाम के मुताबिक ऐसी शादियां मानी ही नहीं जाती है.’’
औरत से निकाह की इजाजत लेने का हुक्म
अबु हुरैरा रजिअल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा था, “शादी शुदा (यानी तलाक शुदा या बेवा) औरत से मशवरा के बगैर उसका निकाह नहीं होगा, और कुंवारी लड़कियों का निकाह भी बिना उसकी इजाज़त के नहीं किया जा सकता है.’’ पैगंबर के इस जवाब के बाद उनके अनुयायियों ने पूछा कि लड़की की इजाजत किस तरह ली जाएगी?
इस सवाल पर रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने कहा कि अगर वह जबान से कह दे, या हां नहीं में अपना सिर हिला दे या फिर खामोश हो जाए, तो भी उसे मौन सहमति मानी जा सकती है.
सही बुखारी हदीस संख्या (5136) सही मुस्लिम हदीस संख्या (1419)
यहां मौलाना इस्लाही कहते हैं, ये हुक्म इसलिए है कि शादी-ब्याह के नाम पर लड़कियां उतनी मुखर नहीं होती है. इसलिए अगर कोई अपनी जुबान से हां या नहीं कह दे तो बेहतर है, लेकिन अगर कोई शादी के प्रस्ताव पर खामोश भी रह जाए और कोई विरोध या ऐतराज न जताए तो उसे भी 'हां’ यानी लड़की की रजामंदी मानी जा सकती है.’’
हज़रत अबू हुरैरह रज़ी अल्लाहु अन्हु कहते हैं रसूल ए अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा, "कुंवारी लड़कियां अपने निकाह के लिए पूछी जाएगी अगर (जवाब में) खामोश रहे तो यही उसकी इजाज़त है, अगर इंकार करे तो उसकी ज़बरदस्ती न की जाए” .
अबू दाऊद हदीस नं. 2093
औरत चाहे तो अपना जबरन किया गया निकाह तोड़ सकती है
हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास रज़ी अल्लाहु अन्हु ने कहा, "एक कुंवारी लड़की नबी की खिदमत में हाजिर हुई और अरज़ किया के उसके अभिभावक ने उसका निकाह जबरन किसी से कर दिया है, जिसे वह नपासंद करती है, तो नबी ने उसे कहा कि तुम्हे इस बात का पूरा इख्तियार है कि तुम अपनी शादी खत्म कर दो.
अबू दाऊद हदीस नं. 2096
बिना गवाह के नहीं होगी शादी
मुस्लिम विवाह में लड़के और लड़कियों की रजामंदी के बाद दूसरी सबसे बड़ी शर्त है विवाह की गवाही. यानी कोई भी लड़का-लड़की, स्त्री या पुरुष आपसी रजमंदी के बाद अकेले चुपके-चुपके शादी के बंधन में नहीं बंध सकते हैं, बल्कि उनकी शादी तभी जायज मानी जाती है, जब उस आपसी रजामंदी या घोषणा का कोई गवाह हो. यानी शादी दो गवाहों के सामने करनी होगी. गवाह के तौर पर कम से कम दो लोगों का होना जरूरी माना गया है. गवाह के तौर पर दो पुरुष, एक पुरुष और दो महिलाएं भी हो सकती है. कुछ उलेमा गवाह के तौर पर दो पुरुषों और एक महिला को रखना बेहतर मानते हैं. गवाह में लड़की का कोई अभिभावक, रिश्तेदार या फिर कोई बाहरी शख्स भी हो सकता है.
आयशा रजि अल्लाहु अन्हा से रिवायत है रसूल-अल्लाह सल-अल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा था कि जिस औरत का निकाह उसके वली/ अभिभावक/ गवाह की मौजूदगी में नहीं किया गया हो, वह विवाह अमान्य है.
अल-तिर्मिज़ी- 1102; अबू दाऊद- 2083; इब्न माजाह- 1879.
गवाह के लिए भी कुछ शर्तें रखी गई हैं, जिसमें उनके अच्छे चरित्र का और भरोसेमंद आदमी होने के अलावा गवाही के दौरान पूरे होश-ओ-हवाश में होना जरूरी है. हलांकि, होश-ओ-हवास में होने की शर्त निकाह के वक्त लड़के-लड़की पर भी लागू होती है.
शादी में मेहर की रकम
मुस्लिम विवाह में लड़की से शादी के पहले उसे मेहर के तौर पर लड़का पक्ष उपहार के तौर पर कुछ धन देता है. यह धन लड़की या लड़की पक्ष तय करता है. इसका निर्धारण लड़के की आर्थिक हैसियत के मुताबिक किया जाता है. इस धन को निकाह के तुरंत बाद या फिर लड़की की मांग के मुताबिक देना होता है, लेकिन किसी भी सूरत में इससे बचा नहीं जा सकता है. इस धन पर स्त्री का अधिकार होता है, पुरुष उसे वापस नहीं मांग सकता है और न ही उसे माफ करवा सकता है. शादी की शर्तों में मेहर की रकम भी लागू होती है.
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