भारत को PT USHA जैसी धावक देने वाले मशहूर कोच ओएम नांबियार का 88 की उम्र में देहांत
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भारत को PT USHA जैसी धावक देने वाले मशहूर कोच ओएम नांबियार का 88 की उम्र में देहांत

पूर्व वायु सैनिक नांबियार ने कोच के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान ऊषा सहित कई अंतरराष्ट्रीय एथलीट तैयार किये थे. ऊषा लॉस एंजिल्स ओलंपिक 1984 में जब मामूली अंतर से कांस्य पदक से चूक गयी थीं तो नांबियार लगातार रोते रहे.  

ओएम नांबियार दायें और साथ में पीटी ऊषा

कोझिकोडः भारत को पीटी ऊषा जैसी सर्वश्रेष्ठ ट्रैक एवं फील्ड स्टार देने वाले मशहूर कोच ओएम नांबियार का जुमेरात को इंतकाल हो गया. वह 88 साल के थे. नांबियार के खानदान में उनकी पत्नी लीला, तीन बेटे और एक बेटी है. उन्होंने कोझिकोडा जिले वडाकरा में वाके अपने रिहाईश पर आखिरी सांस ली. सबसे पहले द्रोणाचार्य पुरस्कार हासिल करने वाले प्रशिक्षकों में से एक और इस साल पदमश्री पुरस्कार पाने वाले नांबियार को लगभग एक सप्ताह पहले अस्पताल में दाखिल कराया गया था. इसके बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी थी. नांबियार पर्किन्सन की बीमारी से पीड़ित थे. ऊषा ने बताया कि उन्हें 10 दिन पहले दिल का दौरा पड़ा था. 

यह मेरे लिए जाती नुकसान हैः पीटी ऊषा
पीटी ऊषा ने कोच ओ एम नांबियार के निधन पर कहा कि यह मेरे लिये बहुत बड़ा नुकसान है. वह मेरे लिये पिता की तरह थे और अगर वह नहीं होते तो मैं इतनी उपलब्धियां हासिल नहीं कर पाती. नीरज चोपड़ा के ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद मैं पिछले सप्ताह ही उनसे मिली थी. मैं क्या बोल रही हूं वह समझ रहे थे लेकिन वह बात नहीं कर पा रहे थे.

नांबियार ने कई अंतरराष्ट्रीय एथलीट तैयार किये थे 
पूर्व वायु सैनिक नांबियार ने कोच के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान ऊषा सहित कई अंतरराष्ट्रीय एथलीट तैयार किये थे. ऊषा लॉस एंजिल्स ओलंपिक 1984 में मामूली अंतर से कांस्य पदक से चूक गयी थीं. ऊषा के अलावा उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले जिन एथलीटों को तैयार किया उनमें शाइनी विल्सन (चार बार की ओलंपियन और 800 मीटर में 1985 की एशियाई चैंपियनशिप की स्वर्ण पदक विजेता) और वंदना राव प्रमुख हैं.

देर से पदम श्री अवार्ड मिलने पर जताया था दुःख 
नांबियार का जन्म 1932 में कन्नूर में हुआ था. बाद में वह वायुसेना से जुड़ गये थे जिसमें उन्होंने 15 वर्ष तक सेवा की. वह 1970 में सार्जेंट के ओहदे से सेवानिवृत हुए थे. उन्होंने राष्ट्रीय खेल संस्थान पटियाला से कोचिंग में डिप्लोमा लिया और सेना के एथलीटों को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया था. पदम श्री के लिये चुने जाने पर नांबियार ने कोझिकोड में अपने घर पर कहा था कि यह इनाम पाकर मैं खुश हूं हालांकि यह मुझे काफी पहले मिल जाना चाहिए था लेकिन मैं तब भी खुश हूं. कभी नहीं से देर भली. 

कोच से पहले ऊषा को दिया गया था पदम श्री सम्मान 
ऊषा को 1985 में पदम श्री से सम्मानित किया गया था जबकि नांबियार को उस वर्ष द्रोणाचार्य पुरस्कार मिला था. उन्हें देश का चैथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने के लिये अगले 36 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा. उन्होंने कहा था कि जब ऊषा लॉस एंजिल्स में पदक से चूक गयी थी तो वह लगातार रोते रहे. नांबियार ने 1968 में कोचिंग का डिप्लोमा लिया था और वह 1971 में केरल खेल परिषद से जुड़े थे। ऊषा ने 1977 में एक चयन ट्रायल में दौड़ जीती थी जिसके बाद नांबियार ने उन्हें प्रशिक्षित किया था. 

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