"अगर हों कच्चे घरोंदों में आदमी आबाद, तो एक अब्र भी सैलाब के बराबर है"
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"अगर हों कच्चे घरोंदों में आदमी आबाद, तो एक अब्र भी सैलाब के बराबर है"

Obaidullah Aleem Poetry: उबैदुल्लाह अलीम की शायरी बहुत ही सादा लफ्जों में है. वह भारत में पैदा हुए बाद में पाकिस्तान चले गए. यहां हम पेश कर रहे हैं उनके बेहतरीन शेर

"अगर हों कच्चे घरोंदों में आदमी आबाद, तो एक अब्र भी सैलाब के बराबर है"

Obaidullah Aleem Poetry: उबैदुल्लाह अलीम उर्दू के बेहतरीन शायर हैं. उनकी पैदाइश भोपाल में हुई. लेकिन बाद में उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. ओबैदुल्लाह ने अपने करियर की शुरुआत रेडियो से की और बाद में वह एक निर्माता के रूप में टेलीविजन से जुड़ गए. साल 1978 में वह अहमदिया मुस्लिम समुदाय का सदस्य हो गए. अहमदी होने की वजह से उनके खिलाफ जारी किए गए एक आदेश के बाद उन्हें अपना इस्तीफा सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा. 1974 में उनकी शेर-ओ-शायरी की पहली किताब 'चांद चेहरा सितारा आंखें' छपकर आई. 'वीरन सराय का दिया' 1986 में प्रकाशित हुई. उन्हें एडमजी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जो पाकिस्तान में सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार है.

ख़्वाब ही ख़्वाब कब तलक देखूँ 
काश तुझ को भी इक झलक देखूँ 

आँख से दूर सही दिल से कहाँ जाएगा 
जाने वाले तू हमें याद बहुत आएगा 

जवानी क्या हुई इक रात की कहानी हुई 
बदन पुराना हुआ रूह भी पुरानी हुई 

ज़मीन जब भी हुई कर्बला हमारे लिए 
तो आसमान से उतरा ख़ुदा हमारे लिए 

जो दिल को है ख़बर कहीं मिलती नहीं ख़बर 
हर सुब्ह इक अज़ाब है अख़बार देखना 

जो दिल को है ख़बर कहीं मिलती नहीं ख़बर 
हर सुब्ह इक अज़ाब है अख़बार देखना 

दुआ करो कि मैं उस के लिए दुआ हो जाऊँ 
वो एक शख़्स जो दिल को दुआ सा लगता है 

अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए 
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए 

अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी ख़ातिर 
इतनी दूर आ गए दुनिया से किनारा करते 

हज़ार तरह के सदमे उठाने वाले लोग 
न जाने क्या हुआ इक आन में बिखर से गए 

बड़ी आरज़ू थी हम को नए ख़्वाब देखने की 
सो अब अपनी ज़िंदगी में नए ख़्वाब भर रहे हैं 

ज़मीं के लोग तो क्या दो दिलों की चाहत में 
ख़ुदा भी हो तो उसे दरमियान लाओ मत 

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