यह मामला ओडिशा के गजपति जिले नुआगढ़ ब्लॉक के सौरी गांव का है, जहाँ एक शख्स ने अपनी और पत्नी के लिए पक्की कब्र बनाकर उसपर मकबरा बना लिया है.
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गजपतिः मृत्यु अपरिहार्य है यानी जो जिंदा है और इस दुनिया में आया है, उसे एक दिन मरना है. कौन कहां, कब, कैसे मर जाएगा कोई नहीं जानता है. मरने के बाद इंसान दुनिया से कुछ लेकर नहीं जाता है, और दुनिया में जिंदा रहते हुए वह हर सुख और ऐश-ओ-आराम को पाना चाहता है. कम से कम अपना घर जरूर बनाता है. लेकिन ओडिशा के गजपति जिले का एक बुजुर्ग जोड़ा इसका अपवाद है. उन्होंने जिंदा रहते हुए अपना घर बनाने के बजाए मरने के बाद दफनाए जाने के लिए अपनी कब्रें बना ली है.
इस अजीबोगरीब वजह से यह दंपति इलाके में चर्चा का विषय बन गए हैं. 80 वर्षीय लक्ष्मण भुइयां और उनकी 70 वर्षीय पत्नी जेंगी भुइयां, गजपति जिले के नुआगढ़ ब्लॉक के अंतर्गत सौरी गांव में एस्बेस्टस की छत वाले एक कच्चे घर में रहते हैं. उनके बेटे-बेटियाँ और बहुएँ और दामाद होते हुए भी वे एकाकी जीवन जीते आ रहे हैं.
कब्र बनाने में खर्च कर दी जिंदगी भर की पूंजी
समाजिक रीति-रिवाजों और पारीवारिक झंझटों से तंग आकर इन्होंने काफी पहले ही अपने बच्चों के साथ-साथ चल-अचल संपत्ति से भी अपना नाता तोड़ लिया था. उन्होंने अपनी जिंदगी भर की बचत को एक बड़ा घर बनाने में खर्च करने के बजाए अपने और पत्नी के लिए कब्र बनाने में खर्च किया है. लक्ष्मण ने 1,50,000 रुपये खर्च करके अपने और पत्नी के लिए एक मकबरे के साथ एक संगमरमर से बनी कब्र का निर्माण कराया है. इस मकबरे के निर्माण के लिए उनके पास जो भी पैसे थे सभी खर्च हो गए हैं. कुछ पैसे घट रहे थे, तो उसने अपनी कुछ संपत्ति भी बेच दी.
बच्चे बिना किसी गरिमा के हमें दफन कर सकते हैं
लक्ष्मण भुइयां ने कहा, “मैं अब 80 साल का हो गया हूँ. मेरा एक पैर कब्र में है. मुझे नहीं पता कि हम कब मरेंगे? हालाँकि, हम अपनी मृत्यु के बाद यहाँ कब्र में रहेंगे. मैंने इसे अपनी मर्जी से बनाया है. किसी ने मुझे ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं किया है.’’
लक्ष्मण भुइयां ने आगे कहा, “मृत्यु के बाद, किसे पता है कि मेरे बच्चे हमारे शरीर के साथ क्या करेंगे? वे उन्हें बिना किसी गरिमा के दफन कर सकते हैं. इसलिए मैंने हमारे लिए कब्रें बनाई हैं ताकि हम कम से कम मौत के बाद शांति से सो सकें.’’
मरने के पहले कब्र की करते हैं रखवाली
गांव वाले बताते हैं कि कब्रों का निर्माण तीन से चार साल पहले शुरू किया गया था. लक्ष्मण हर दिन अपने कब्रों पर जाते हैं और उसकी देखभाल करते हैं. एक ग्रामीण राजेश भुइयां ने कहा, “उन्होंने कब्र पर 1.5 लाख रुपये खर्च किए हैं. वह कह रहे हैं कि उनकी मौत के बाद उनके रिश्तेदारों द्वारा कब्र में रखे जाने के बाद उन्हें कब्र में कोई समस्या नहीं होगी."
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