उफ्फ! बिहार में ये कैसी मुसीबतः बाढ़ में बह जाने के डर से लोग अपने ही हाथों से उजाड़ रहे हैं अपना आशियाना
Advertisement

उफ्फ! बिहार में ये कैसी मुसीबतः बाढ़ में बह जाने के डर से लोग अपने ही हाथों से उजाड़ रहे हैं अपना आशियाना

ग्रामीण अपने घरों को तोड़ ईंट, दरवाजों, चैखटों, खिड़कियों, नालीदार लोहे की चादरों, हैंडपंपों आदि को सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे हैं. गांव के शिव साह ने कहते हैं, ’’दिन-रात हम कुछ ईंटों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. वरना, नदी कुछ भी नहीं छोड़ेगी.’’

अलामती तस्वीर

बेतिया (बिहार): महज दो साल पहले ही पूर्वी चंपारण के भवानीपुर गांव के 52 वर्षीय प्रवासी मजूदर अखिलेश कुमार ने खून-पसीना एक कर कमाए हुए पैसे से एक मंजिला एक मकान बनाया था. उस वक्त उन्हें सैलाब जैसे किसी खतरे का अंदाजा नहीं था, जो उस घर को अपनी चपेट में बहा ले जाने का शायद इंतजार कर रहा था. जिस छत के नीचे मजदूर अखिलेश के घर के सात सदस्य रहते थे, बाढ़ उसे अपने साथ बहाकर ले गया. अखिलेश अब बेघर हैं. सड़क किनारे पलस्टिक की चादर तानकर रहते हैं. 5 जुलाई को सिकराना नदी में आई बाढ़ ने गांव के कई घरों को अपनी चपेट में ले लिया. कुमार ने कहा, यह सब इतनी तेजी से हुआ कि हम कुछ भी नहीं बचा सके और हमारा घर ताश के पत्तों की तरह ढह गया. इस बीच, पड़ोसी पश्चिमी चंपारण में भी बाढ़ का कहर जारी है. जिले के मैनाटांड़ प्रखंड के दमारपुर पंचायत के तीन गांव के लगभग 15 परिवार मनियारी नदी से घिरे होने की वजह से संकट में हैं. 

खिड़की-दरवाजे और छप्पड़ बचा रहे हैं ग्रामीण  
अखिलेश कुमार जैसे कई घर सैलाब की चपेट में आकर या तो मलबे में दब गए या फिर पानी के तेज बहाव में बह गए. चंपारण जिले के सुगौली ब्लॉक के ग्रामीण अब मकान के ईंटों और अन्य निर्माण सामग्री को नदी में बहने से बचाने के लिए खुद ही अपने घरों को ही ध्वस्त कर रहे हैं. ग्रामीण अपने घरों को तोड़ ईंट, दरवाजों, चैखटों, खिड़कियों, नालीदार लोहे की चादरों, हैंडपंपों आदि को सुरक्षित स्थान पर ले जा रहे हैं. गांव की सुखिया देवी कहती हैं, ’’मेरा घर लगभग 15 साल पहले कड़ी मेहनत के पैसे से बनाया गया था. लेकिन इसका आधा हिस्सा नदी के बहाव में टूट गया. इसके बाद घर से जो कुछ भी बच सकता था हमने बचे हिस्से को खुद ही तोड़ कर उसकी ईंटे और बाकी समान बचा लिया है. नया घर बनाने के लिए कुछ तो हमारे पास बचा रहेगा. सुखिया का छह सदस्यों का परिवार अब एक प्लास्टिक के अस्थायी तम्बू में अपनी रातें गुजारता है.

खुद मकान तोड़कर ईंटें बचा रहे हैं लोग   
एक दूसरे ग्रामीण संत लाल महतो अपने घर के ढहने को अपनी किस्मत का हिस्सा बताते हैं. महतो ने कहते हैं, ’’अगर हम कुछ नहीं करते हैं और अपनी उंगलियों को क्रॉस करके बैठे रहते हैं तो यह उम्मीद के खिलाफ होगा. अगर सरकार की तरफ से जमीन और मुआवजा दिया जाएगा, तो हम इन ईंटों से एक और घर बना सकते हैं.’’महतो की तरह सुरेश प्रसाद को भी सरकार से मदद की उम्मीद है. उनके बेटों ने 12 साल पहले बनाए गए घर की खिड़कियों और चैखटों के साथ-साथ लोहे की चादर की छत को पहले ही हटा दिया है. प्रसाद ने भरी आंखों से कहा, ’’मेरा सपना अब टूट गया है. अगर सरकार से मदद नहीं मिली तो हम अपने पैरों पर कभी खड़े नहीं हो पाएंगे.’’ गांव के शिव साह ने कहते हैं, ’’दिन-रात हम कुछ ईंटों को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. वरना, नदी कुछ भी नहीं छोड़ेगी.’’

गांव के लगभग 100 घर गिर गए
पूर्वी चंपारण से होकर गंगा नदी की एक सहायक नदी सिकराहना गुजरती है. इसे बूढ़ी गंडक नदी के नाम से भी जाना जाता है. चंपारण इलाके में हुई भारी बारिश की वजह से इस नदी में बाढ़ आ गई है. इसके साथ ही वाल्मीकि नगर बैराज से छोड़े गए पानी ने जिला मुख्यालय मोतिहारी से करीब 25 किलोमीटर दूर सुगौली प्रखंड के कई गांवों में कहर बरपा रखा है. गांव के पूर्व सरपंच नामित राजेश यादव के मुताबिक, पिछले एक महीने में सिकराना नदी के कटाव की वजह से गांव में लगभग 100 घर गिर गए हैं. यादव ने 25 मीटर लंबी बंजर भूमि की जानिब इशारा करते हुए कहा, ’’हमारे गांव का मुखिया अब जिंदा नहीं है. यहां पर होने वाली त्रासदी को देखने वाला कोई नहीं है.’’

क्या कहते हैं सरकार के अफसर ?
सर्किल अधिकारी धर्मेद्र कुमार गुप्ता ने कहा कि हम स्थिति पर नजर रख रहे हैं. जरूरत पड़ने पर और कम्युनिटी किचन चलाए जाएंगे. जिला प्रशासन ने दो निजी नौकाओं और एक ड्रोन के साथ एनडीआरएफ की दो टीमों को सेवा में लगाया है. अधिकारियों का दावा है कि सूखा राशन और करीब 3,500 प्लास्टिक शीट प्रभावित लोगों में बांटी जा चुकी है. इसके अलावा, जिला प्रशासन ने भी ढह गए घरों का आकलन शुरू किया है. पूर्वी चंपारण के जिलाधिकारी कपिल अशोक कहते हैं, ’’घरों का मुआवजा तयशुदा नियमों के मुताबिक दिया जाएगा. अनिल कुमार, अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट, आपदा प्रबंधन, पूर्वी चंपारण के मुताबिक 8 जुलाई तक सुगौली प्रखंड की दस पंचायतों में सिकराना बाढ़ से 1.5 लाख लोग प्रभावित हुए हैं. अधिकारी नुकसान के लिए पानी के तेज बहाव और तटबंध के अभाव को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

Zee Salaam Live Tv

Trending news