प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ ने कहा कि कानून के पेशे की संरचना सामंती और पितृसत्तात्मक और औरतों को जगह नहीं देने वाली बनी हुई है. उन्होंने कहा कि इसे हमें बदला होगा और लोकतांत्रिक व प्रतिभा की बुनियाद पर भर्ती प्रक्रिया अपनाने की जरूरत पर बल देना होगा.
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नई दिल्लीः चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डी. वाई. चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि कानून के पेशे की संरचना सामंती, पितृसत्तात्मक और औरतों को जगह नहीं देने वाली बनी हुई है. साथ ही, उन्होंने कहा कि इसमें ज्यादा तादाद में महिलाओं और समाज के वंचित वर्गों के लोगों की भागिदारी के लिए लोकतांत्रिक व प्रतिभा की बुनियाद पर भर्ती प्रक्रिया अपनाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के सामने कई चुनौतियां हैं, और उनमें से पहली चुनौती अवाम के उम्मीदों को पूरा करने की है, क्योंकि हर तरह के सामाजिक और कानूनी विषय और बड़ी तादाद में सियायी मुद्दे सुप्रीम कोर्ट के दायरे में आते हैं.
हमें समझने की जरूरत है कि न्यायपालिका में कौन आएगा
जस्टिस चंद्रचूड ने गुजिश्ता बुधवार को प्रधान न्यायाधीश के तौर पर अपना ओहदा संभाला था. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘एक चीज, जो हमें समझने की जरूरत है, वह यह है कि न्यायपालिका में कौन आएगा, वह बहुत हद तक कानून के पेशे की संरचना पर निर्भर करता है.’’ सीजेआई ने कहा, ‘‘यहां तक कि आज के वक्त में भी पूरे भारत में कानून के पेशे की संरचना सामंती, पितृसत्तात्मक और महिलाओं को जगह नहीं देने वाली बनी हुई है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, जब हम न्यायपालिका में महिलाओं को ज्यादा तादाद में शामिल करने की बात करते हैं. यह जरूरी है कि अब औरतों के लिए जगह बना कर भविष्य की राह तैयार की जाए.’’
ओल्ड ब्वॉयज क्लब बना हुआ सीनियर वकीलों का चैम्बर
जस्टिस चंद्रचूड ने कहा, ‘‘ इस राह में पहला कदम, सीनियर वकीलों के चैम्बर में प्रवेश करना है, जो ओल्ड ब्वॉयज क्लब बना हुआ है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर आप चैम्बर में कैसे पहुंच बनाएंगे? जब तक कानून के पेशे में प्रवेश बिंदु पर हमारे पास लोकतांत्रिक और प्रतिभा आधारित पहुंच नहीं होगी. महिलाएं और वंचित तबके से जुड़े लोग ज्यादा तादाद में नहीं होंगे.’’ उन्होंने कहा कि अदालत की कार्यवाही का सीधा प्रसारण एक नया प्रयोग है, जिसने एक अन्तर्दृष्टि दी है कि कानूनी तंत्र में बदलाव लाने में प्रौद्योगिकी क्या कर सकता है ? उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों और जिला अदालतों की कार्यवाही का भी सीधा प्रसारण होना चाहिए.
जिला अदालतों की कार्यवाही का भी सीधा प्रसारण हो
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘हम इंटरनेट युग में जी रहे हैं, और यहां सोशल मीडिया भी रहने वाला है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए, मेरा मानना है कि हमें नए समाधान तलाशने, वर्तमान दौर की चुनौतियों को समझने की कोशिश करने और उनसे निपटने की जरूरत है.’’ चीफ जस्टिस ने कहा, ‘‘संवैधानिक लोकतंत्र में एक सबसे बड़ा खतरा अपारदर्शिता का है. जब मैं (न्यायपालिका की कार्यवाही का) सीधा प्रसारण की बात करता हूं, मैं बड़े मामलों का ही सीधा प्रसारण करने को नहीं कहता. हमें न सिर्फ हाई कोर्ट की कार्यवाही का, बल्कि जिला अदालतों की कार्यवाही का भी सीधा प्रसारण करने की जरूरत है.’’
रोजाना 75 से 85 मामलों की सुनवाई करते हैं जज
भारत के सुप्रीम कोर्ट की तुलना अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से करने के विषय पर उन्होंने कहा कि यहां के सुप्रीम कोर्ट की तुलना दीगर विकसित मुल्कों से नहीं की जा सकती है, क्योंकि अपनी संस्थाओं के लिए हमारी एक अनूठी भारतीय संरचना है.’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब आप हमारी तुलना अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट से करते हैं तो यह जानना जरूरी है कि वह एक साल में 180 मामलों की सुनवाई करता है, ब्रिटेन का सुप्रीम कोर्ट एक साल में 85 मामलों की सुनवाई करता है. लेकिन हमारे सुप्रीम कोर्ट में सभी जज सोमवार और शुक्रवार को करीब 75 से 85 मामलों की सुनवाई करते हैं और मंगलवार, बुधवार और गुरुवार को 30 से 40 मामलों की सुनवाई करते हैं’’
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