India-China relations: भारत और चीन दोनों देशों ने एलएसी पर हॉटस्प्रिंग, डेमचोक और देपसांग इलाकों में 50-50 हजार सैनिकों को तैनात किया है. भारत बार-बार मई 2020 से पहले स्थिति बहाल करने पर जोर दे रहा है.
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नई दिल्ली: उज्बेकिस्तान के ताशकंद में शंघाई कॉरपोरेशन संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक 15-16 सितंबर होने वाली है. इस मीटिंग का अहम मकसद एससीओ शिखर सम्मेलन की रणनीति तैयार करना है. अब ये खबर आ रही है कि एससीओ की मुख्य बैठक से हटकर भारत-चीन के विदेश मंत्रियों के बीच बैठक होगी, जिसमें पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर करीब दो साल से जारी गतिरोध का हल निकालने की कोशिश की जाएगी. हालांकि विदेश मंत्रालत ने अभी तक इस बैठक को लेकर कोई ऑफिशियल बयान जारी नहीं किया है.
सूत्रों का कहना है कि पिछली मुलाकातों की तरह इस बार भी दोनों विदेश मंत्रियों की मुलाकात होगी. एलएसी गतिरोध सुलझ सकता है, जिसके बाद सितंबर में एससीओ शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भी मुलाकात हो सकती है.
पिछले दो साल के दौरान एससीओ की बैठकों के दौरान जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी के बीच लगातार मुलाकातें होती रही हैं. उनके परिणाम भी सकारात्मक रहे हैं. 2020 में गलवान घाटी संघर्ष के बाद, जयशंकर और वांग ने 10 सितंबर को मास्को में एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक में लंबी बातचीत की.
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इस दौरान, एलएसी मुद्दे को सुलझाने के लिए पांच सूत्री रणनीति पर सहमति बनी. इसके बाद ही फरवरी 2021 में दोनों देशों की सेनाएं पैंगोंग झील क्षेत्र से हट गईं. उसके बाद 2021 में दुबांशे में हुई एससीओ की बैठक में दोनों विदेश मंत्रियों की भी मुलाकात हुई और एलएसी के मुद्दे पर कूटनीतिक बातचीत जारी रखने पर सहमति बनी. हालांकि हॉटस्प्रिंग समेत कई बिंदुओं पर टकराव अभी भी जारी है, लेकिन बातचीत का सिलसिला थमा नहीं है. हाल ही में दोनों देशों के सैन्य कमांडरों के बीच 16वें दौर की बातचीत भी हुई है.
विदेश मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक साल 2022 में जयशंकर और वांग के बीच दो बैठकें हो चुकी हैं. इसमें भी जयशंकर और वांग के बीच एलएसी के मुद्दे पर लंबी चर्चा हुई. सूत्रों ने बताया कि हालांकि 16वें दौर की बैठक के दौरान तत्काल कोई ठोस समाधान नहीं निकला, लेकिन कई बिंदुओं पर सकारात्मक बातचीत हुई. अगर इस बातचीत पर विदेश मंत्रियों के बीच और बातचीत होती है तो आने वाले दिनों में दोनों सेनाओं के लिए टकराव के बिंदुओं से पीछे हटने का रास्ता साफ हो जाएगा.
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