Yasmeen Hameed Poetry: यासमीन हमीद उर्दू की बेहतरीन शायरा हैं. उन्होंने उर्दू अदब में बेहतरीन काम किया है. इसके लिए उन्हें अवार्ड से नवाजा गया है. उन्हें अर्दू अदब का डॉ0. अल्लामा मोहम्मद इकबाल अवार्ड मिला है.
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Yasmeen Hameed Poetry: यासमीन हमीद पाकिस्तान की बेहतरीन शायर हैं. वह 18 मार्च 1951 में पैदा हुईं. उन्होंने उर्दू में बेहतरीन गलजें और नज्में लिखी हैं. वह फिलहाल लाहौर यूनिवर्सिटी में सोशल साइंस डिपार्टमेंट में काम कर रही हैं. उन्होंने कई मशहूर शायरों के शेर को अंग्रेजी में ट्रांस्लेट किया है. वह पाकिस्तानी सरकार के फैशन और सांस्कृतिक शो की अंग्रेजी में स्क्रिप्टिंग करती हैं. अब तक उनकी पांच किताबें छप चुकी हैं. इसमें 'पास-ए-आइना 1988' और 'आधा दिन और आधी रात 1996' शामिल है.
किसी के नर्म लहजे का क़रीना
मिरी आवाज़ में शामिल रहा है
मैं अब उस हर्फ़ से कतरा रही हूँ
जो मेरी बात का हासिल रहा है
एक दीवार उठाई थी बड़ी उजलत में
वही दीवार गिराने में बहुत देर लगी
जो डुबोएगी न पहुँचाएगी साहिल पे हमें
अब वही मौज समुंदर से उभरने को है
पर्दा आँखों से हटाने में बहुत देर लगी
हमें दुनिया नज़र आने में बहुत देर लगी
अपनी निगाह पर भी करूँ एतिबार क्या
किस मान पर कहूँ वो मिरा इंतिख़ाब था
उस इमारत को गिरा दो जो नज़र आती है
मिरे अंदर जो खंडर है उसे तामीर करो
समुंदर हो तो उस में डूब जाना भी रवा है
मगर दरियाओं को तो पार करना चाहिए था
ख़ुशी के दौर तो मेहमाँ थे आते जाते रहे
उदासी थी कि हमेशा हमारे घर में रही
हमें ख़बर थी बचाने का उस में यारा नहीं
सो हम भी डूब गए और उसे पुकारा नहीं
ज़रा धीमी हो तो ख़ुशबू भी भली लगती है
आँख को रंग भी सारे नहीं अच्छे लगते
अगर इतनी मुक़द्दम थी ज़रूरत रौशनी की
तो फिर साए से अपने प्यार करना चाहिए था
रस्ते से मिरी जंग भी जारी है अभी तक
और पाँव तले ज़ख़्म की वहशत भी वही है
जिस सम्त की हवा है उसी सम्त चल पड़ें
जब कुछ न हो सका तो यही फ़ैसला किया