यौमे पैदाईश पर ख़ास: पढ़ें बेमिसाल शायर जां निसार अख्तर की जिंदगी के बारे में
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यौमे पैदाईश पर ख़ास: पढ़ें बेमिसाल शायर जां निसार अख्तर की जिंदगी के बारे में

जां निसार अख्तर के दादा फज्लहक खैराबादी, ताया बिस्मिल खैराबादी और वालिद मुज़्तर खैराबादी अपने दौर के उस्ताद शायरों में शुमार किए जात थे और घर के शायराना मोहौल की वजहर से ही वो महज़ 13 साल की उम्र में ही शेर कहने लगे थे. 

यौमे पैदाईश पर ख़ास: पढ़ें बेमिसाल शायर जां निसार अख्तर की जिंदगी के बारे में

बे मिसाल शायर और नग्मानिगार जां निसार अख्तर का आज यौमे पैदाईश है वो 18 फरवरी 1914 को ग्वालियार में पैदा हुए थे. जां निसार अख्तर के दादा फज्लहक खैराबादी, ताया बिस्मिल खैराबादी और वालिद मुज़्तर खैराबादी अपने दौर के उस्ताद शायरों में शुमार किए जात थे और घर के शायराना मोहौल की वजहर से ही वो महज़ 13 साल की उम्र में ही शेर कहने लगे थे. 

अलीगढ़ यूनिवर्सिटी से उर्दू में एमए करने के बाद वो ग्वालियार विक्टोरिया कालेज में उर्दू पढ़ाने लगे. जिसके कुछ अरसे बाद ही वो भोपाल के हमीदिया कालेज में महकमा उर्दू के सद्र मुंतख़ब हुए. यहीं पर उनकी एहलिया सफिया भी पढ़ाती थीं. जो कि इसरारुल हक़ मिजाज़ लखनवी की बेटी थीं.

आज़ादी के बाद हुकूमत मुसन्निफीन पर नज़र रखने लगी थी तो उन्होंने हमीदिया कालेज से इस्तीफा देकर मुबई जाने का फैसला किया, मुबई आने के उनके दो अज़ायम थे. एक फिल्मी नग्मा निगारी और दूसरा अपने शेरी मजमूओं की अशाअत. जिसके लिए वो कई तरक्की पसंद अदीबों से जा मिले और अपने अज़ायम मे उन्होंने कामयाबी भी हासिल की. उनके शेरी मजमूओं की बात करें तो पिछली पहर, जाविदां, घर आंगन और खाके दिल शामिल हैं. खाके दिल पर उन्हं 1976  में साहित्य अकेडमी अवार्ड भी मिला था.

जां निसार ने लगभग 150 से भी ज्यादा फिल्मी गाने भई लिखे जो कि बॉलीवुड में अपनी अलग शनाख्त रखते हैं.जिस वक्त वो मुंबई के लिए रवाना हुए थे तो वो दो बच्चों के वालिद भी थे और फिर दोनों बच्चों को संभालने की ज़िम्मेदारी सफिया पर आ गई. सफिया जां निसार से बहुत मुहब्बत करती थी और उनको बहुत चाहती थीं लेकिन जां निसार मुंबई तो गए तो फिर कभी सफिया के पास नहीं पहुंचे. सफिया जां निसार को मुसलसल खतूत लिखती रहीं लेकिन जां निसार फिर भी वापस नहीं लौटे और ज़िंदगी की तमाम जिद्दोजहद के बाद सफिया 1953 में अपने मालिके हकीकी से जा मिलीं. 

जां निसार अख्तर ने अपनी अहलिया के ख़तूत के मजमूओं की भी 1955 में अशाअत की थी. जो कि हर्फे आश्ना और ज़ेरे लब के नाम से छापे गए थे.जां निसार अख्तर ने अपने नाम का लोहा तो मनवा लिया था लेकिन ज़िंदगी के कई मुहाज़ पर वो नाकाम भी साबित हुए और 19 अगस्त 1976 को मुंबई में जां निसार अख्तर का इंतेकाल हो गया. आज के दौर में उन्हें अपने बेटे जावेद अख्तर के वालिद के तौर पर जाना जाता है क्योंकि जावेद अख्तर ने अपनी एक अलग शनाख्त कायम करली है. 

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