इस्लाम में क्या है हज का महत्व? किन लोगों पर फर्ज़ होता है हज, क्या हैं बुनियादी शर्तें
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इस्लाम में क्या है हज का महत्व? किन लोगों पर फर्ज़ होता है हज, क्या हैं बुनियादी शर्तें

Hajj 2022: इस्लाम के पांच फ़र्ज़ कामों में एक हज होता है. हर हैसियतमंद मुसलमान पर जिंदगी में एक बार हज करना फ़र्ज़ है. सऊदी अरब के मक्का में हर साल दुनियाभर के लाखों मुसलमान हज के लिए इकठ्ठा होते हैं. हज जाति, संस्कृति और रंग की बुनियाद पर बिना किसी भेदभाव के एकता और भाईचारे से दुनिया भर के मुसलमानों को एक साथ लाता है.

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Hajj 2022: इस्लाम की बुनियाद पांच चीज़ों पर है, तौहीद (कलमा पढ़ना), नमाज़ अदा करना, रोज़ा रखना, ज़कात अदा करना और हज करना. हज पर जाने का एक तय वक़्त होता है और उस वक़्त ही हज का सफ़र माना जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के 12वें महीने की 8वीं से 12वीं तरीख के बीच हज होता है. यानी जब भी बकरीद (ईद उल अज़हा) आती है, उसके पहले जो कुछ दिन होते हैं, तब हज होता है. बकरीद के दिन हज पूरा होता है और बकरीद के बाद लोगों की वापसी शुरू हो जाती है. 

हज जाने के लिए शर्तें:

वैसे तो हज जाने के लिए कोई ख़ास क़ानून नहीं होते हैं. हर उम्र का शख़्स हज के लिए जा सकता है लेकिन, हज पर जाने को लेकर एक शर्त होती है. वो शख़्स हज पर नहीं जा सकता है, जिस पर क़र्ज़ हो. साथ ही वो क़र्ज़ के पैसे से हज नहीं जा सकता है और ना ही उसके पास हराम का पैसा (किसी ऐसे काम कमाए हुए पैसे जो इस्लाम में जायज़ ना हो) नहीं होना चाहिए. अगर किसी पर क़र्ज़ है तो उसे अपना क़र्ज़ चुकाना होगा और कोई उससे नाराज़ है तो उससे माफी मांगनी होगी तभी वो हज पर जा सकता है.

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हज की अहमियत:

इस्लाम के पांच फ़र्ज़ कामों में एक हज होता है. हर हैसियतमंद मुसलमान पर जिंदगी में एक बार हज करना फ़र्ज़ है. सऊदी अरब के मक्का में हर साल दुनियाभर के लाखों मुसलमान हज के लिए इकठ्ठा होते हैं. हज जाति, संस्कृति और रंग की बुनियाद पर बिना किसी भेदभाव के एकता और भाईचारे से दुनिया भर के मुसलमानों को एक साथ लाता है. हज में हर किसी को बराबरी का दर्जा मिलता है. यह माना जाता है कि जो कोई भी हज की रस्मों को सही मायने में और ईमानदारी के साथ करता है, वहां अपने जिन्दगी के भर के सभी गुनाह माफ हो जाते हैं.  अपनी जिंदगी में कम से कम एक बार हज करना हर उस मुस्लिम औरत हो या मर्द के लिए लाज़मी बताया है सेहतमंद होने के साथ साथ इसका खर्च भी उठा पाने के काबिल हो.

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कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:

“अल्लाह के वास्ते उन लोगों के जिम्मे बैतुल्लाह का हज करना (फर्ज) है, जो वहाँ तक पहुँचने की ताकत रखते हों.”
यानी वो शख्स जिसपर उतना पैसा हो जो वो अपने पूरे हज के सफर को पूरा कर पाए, (बिना किसी उधार के) वो पूरा पैसा उसका ही होना चाहिए और जो परिवार वाले उसके घर पर रह गए हैं उनका वो खर्च उठा सके जितने दिन वो हज के सफर पर रहे उतने दिन उसका परिवार बसर कर सके. उसका वो इंतजाम कर सके, तो ऐसे हर एक शख्स पर हज फ़र्ज़ होता है.

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