टू फिंगर टेस्ट (Two finger test) को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत (सुप्रीम कोर्ट) ने सख़्त तब्सिरा करते हुए कहा है कि यह ख़ातून की इज़्ज़त के ख़िलाफ़ है. इस टेस्ट का आज भी होना बदक़िस्मती की बात है.
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Two Finger Test: सुप्रीम कोर्ट ने पीर को कहा कि यह बदक़िस्मती है कि रेप विक्टिम का 'टू-फिंगर टेस्ट' टेस्ट किया जाता है. अभी भी समाज में यह आम है और मरकज़ व रियासतों से यह यक़ीनी करने के लिए कहा कि इसको फौरी तौर पर बंद किया जाए. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमा कोहली की बेंच ने झारखंड हाई कोर्ट के एक रेप और क़त्ल के मुजरिम को बरी करने के फैसले को पलट दिया और निचली अदालत के उसे मुजरिम ठहराने के फैसले को बरक़रार रखा.
बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के एक दहाई पुराने फैसले ने "टू-फिंगर टेस्ट" को एक ख़ातून की इज़्ज़त (गरिमा) और प्राइवेसी के ख़िलाफ़ बताया. बेंच ने कहा, "यह बदक़िस्मती की बात है कि यह टेस्ट आज भी चल रहा है. विक्टिम के प्राइवेट पार्ट का टेस्ट करने वाला अमल ख़्वातीन के वक़ार के ख़िलाफ़ है. यह नहीं कहा जा सकता है कि एक जिंसी तौर पर एक्टिव ख़ातून का रेप नहीं किया जा सकता है." मरकज़ और रियासती सरकार के अफसरों को कई हिदायत जारी की और रियासतों के डीजीपी व हेल्थ सेक्रेटरियों को यह यक़ीनी करने के लिए कहा कि 'टू-फिंगर टेस्ट' न हो. मुल्क की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि टू-फिंगर टेस्ट कराने वाले किसी भी शख़्स को क़ुसूरवार माना जाएगा.
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क्या होता है टू फिंगर टेस्ट (What is two finger test):
टू फिंगर टेस्ट (Two finger test) एक बेहद शर्मनाक और पुराना अमल है. इसमें किसी रेप विक्टिम की वर्जिनिटी चेक की जाती है. वर्जिनिटी चेक करने का तरीक़ा उसके वक़ार को ठेस पहुंचाने वाला है. दरअसल होता यह है कि दो उंगलियों की मदद से यह पता लगाया जाता है कि उसके साथ रेप हुआ है या नहीं. हालांकि इस इस टेस्ट को साइंस भी नकार चुका है. साइंस का मानना है कि ख़्वातीन की वर्जिनिटी में हाइमन के इनटैक्ट होना सिर्फ एक मिथ है.
2013 में सुप्रीम कोर्ट ने लगाई थी रोक
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में टू फिंगर टेस्ट को ग़ैर-क़ानूनी क़रार दिया था. कोर्ट ने उस वक़्त भी इस टेस्ट पर सख़्त तब्सिरा किया था. कोर्ट ने कहा था कि यह जिस्मानी और दिमाग़ी चोट पहुंचाने वाला टेस्ट है. यह टेस्ट पॉज़िटिव भी आ जाए तो नहीं माना जा सकता है कि जिस्मानी रिश्ते इत्तेफाक़ से बने हैं.
2014 में हेल्थ मिनिस्ट्री भी नकार चुकी है
2014 में हेल्थ मिनिस्ट्री ने रेप मुतास्सिरीन के लिए नई गाइडलाइंस तैयार की थीं. इसमें सभी अस्पतालों से फॉरेंसिक और मेडिकल जांच के लिए स्पेशल रूम बनाने की बात कही गई थी. इन गाइडलाइंस में भी टू-फिंगर टेस्ट को सिरे से ख़ारिज किया गया था.
UN और WHO ने भी लगाई है पाबंदी:
इस बेहद शर्मनाक टेस्ट को लेकर ना सिर्फ सुप्रीम कोर्ट, हेल्थ मिनिस्ट्री और साइंस इस टेस्ट के ख़िलाफ़ है. बल्कि UN भी इस तरह के टेस्ट को मंज़ूरी नहीं देता है. 17 अक्टूबर 2018 को, यूनाइटेड नेशंस ह्यूमन राइट्स, यूनाइटेड नेशंस वुमन और WHO ने ख़्वातीन के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा को ख़त्म करने के लिए 'टू-फिंगर टेस्ट' पर पाबंदी लगाने की बात कही गई थी. उन्होंने इसे "मेडिकली तौर पर ग़ैरज़रूरी, दर्दनाक क़रार दिया था.