डियर जिंदगी : रिश्‍तों के दांवपेच और 'दीमक'
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डियर जिंदगी : रिश्‍तों के दांवपेच और 'दीमक'

शेखर आईटी कंपनी में हैं. वह लिखते हैं, 'जिंदगी की यह वेब सीरीज रिश्‍तों, संबंधों और जिंदगी पर उसके असर को समझने, तनाव कम करने में सहायक हो रही है. अगर मैं इसका पाठक नहीं होता तो इस भावनात्‍मक संकट से उबरने में दिक्‍कत होती.'

रियल लाइफ में दोस्‍ती के दीमक से बचना असंभव है, हां सजग रहा जा सकता है.

डियर जिंदगी को यह चिट्ठी उत्‍तराखंड से मिली है. वहां के पंतनगर में टाटा की एक कंपनी में काम करने वाले युवा ने जिंदगी की गहरी समझ वाली कहानी हमसे साझा की है. इस कहानी को बिना किसी परिवर्तन के आपसे साझा कर रहा हूं. यह कहानी ऐसे युवाओं के लिए है, जो छोटे अवसरों के लिए भी बड़ी जल्‍दी पैंतरे बदल लेते हैं. जिनके भीतर 'समय' के अनुसार चलने की लत इतनी तीव्र होती है कि वे समय बदलते ही निष्‍ठा की नदी में अवसर के बांध बनाने में जुट जाते हैं.

शेखर आईटी कंपनी में हैं. वह लिखते हैं. 'जिंदगी की यह वेब सीरीज रिश्‍तों, संबंधों और जिंदगी पर उसके असर को समझने, तनाव कम करने में सहायक हो रही है. अगर मैं इसका पाठक नहीं होता, तो इस भावनात्‍मक संकट से उबरने में दिक्‍कत होती.'

शेखर का किस्‍सा सुनिए. शेखर को एक प्रोजेक्‍ट के लिए कंपनी के दूसरे प्‍लांट पर भेजा गया. वहां टीम के एक सदस्‍य राज दशकों से हाशिए पर थे. उनका प्रदर्शन तो ठीक था, लेकिन आत्‍मविश्‍वास, दूसरों से तालमेल बिठाने में समस्‍या थी. शेखर ने उसमें विश्‍वास दिखाया. राज को जिम्‍मेदारी सौंपी. उसने भी अपनी ओर से बेहतर प्रदर्शन किया. अंत में उसके काम को सराहा गया. उसे वह सबकुछ दिया गया, जो दिया जा सकता था.

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कुछ समय बाद शेखर वहां से अपने मूल प्रोजक्‍ट पर लौट आए. अब तक इस कहानी में ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसकी हम यहां बात करते. लेकिन तीन महीने बाद शेखर को एक दिन व्हाट्सअप मिला, जिसमें एक ऑडियो क्लिप थी. और उसके साथ यह संदेश, 'कुछ और नहीं, बस समय का फेर है'. यह राज का ऑडियो टेप था. ऑडियो एक ऐसे प्रोफेशनल ने तैयार किया था, जो राज का बेहद करीबी था. अब रिश्‍तों के रोमांचक दांवपेच को समझिए.

राज अपने दोस्‍त को फोन करता है. उसके बाद दोनों शेखर के कामकाज, उसके रवैए पर चर्चा करते हैं. शेखर के लिए अप्रिय शब्‍दों का उपयोग, आलोचना करते हैं. इसमें राज कह रहे हैं कि उसे कभी भी शेखर का बर्ताव, कार्यशैली पसंद नहीं थी. शेखर एक ऐसे इंजीनियर थे, जिन्‍हें इंजीनियरिंग का 'इ' भी नहीं मालूम था. जबकि असल जिंदगी में यही राज सार्वजनिक मंचों पर शेखर की सराहना और उनसे सीखे हुए का जिक्र करते नहीं थकते थे. ऐसे और भी संवाद थे, जो राज की कथनी और करनी में अंतर सिद्ध करते हैं.

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इस बातचीत के थोड़ी देर बाद ही राज के कथित दोस्‍त ने यह ऑडियो अपने कुछ करी‍बी दोस्‍तों को किसी और को न भेजने की शर्त के साथ भेज देता है. यह समझ से बाहर है कि ऐसा उसने क्‍यों किया. उसके बाद उसके करीबी दोस्‍त दूसरे दोस्‍तों को इस ऑडियो को किसी और को 'न देने के' वादे के साथ तक पहुंचा देते हैं.

कितने अजीब रिश्‍ते हैं, यहां 'शेखर ने लिखा, 'यह कैसे दोस्‍त हैं. क्‍या इनके लिए किसी दुश्‍मन की जरूरत है. यह तो असल में दोस्‍ती के दीमक हैं. इनसे बचना असंभव है. हां सजग रहा जा सकता है, क्‍योंकि यह हमारे बीच इतने घुलमिल गए हैं कि इनकी शक्‍लें पहचानना बहुत मुश्किल है.'

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यह समय संबंधों में 'अवसर' के भारी पड़ने का है. हमारी चेतना, विचार के संकुचित होने का है. इसलिए ऐसी 'दीमकों' से जहां तक हो सके बचें. यह किसी का भी जीवन चट कर सकती हैं. शेखर की यह कहानी आपको कैसी लगी, बताइएगा. दीमक का संकट सचमुच इतना गहरा हो गया है कि लोग दोस्‍ती से ही बचने लगे हैं !!!

(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

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