आमतौर पर आत्महत्या के कारणों के लिए उस अकेले इंसान की परिस्थिति भर जिम्मेदार नहीं होती. परिवार, दोस्तों से संबंध, मुश्किलों से सामना करने की क्षमता और किसी अनचाही/अप्रिय बात का सामना करने की शक्ति.
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दयाशंकर मिश्र
आईएएस में चुने जाने का मतलब उनसे मत पूछिए जो बन जाते हैं. उनसे पूछिए जो आखिरी प्रयास तक संघर्ष करते हुए केवल दो-चार नंबर से रह जाते हैं. देश की सबसे प्रतिष्ठित, कठिन मानी जाने वाली परीक्षा में चुना जाना इतना ग्लैमरस है कि इसके गौरव गान में गांव, शहर अपनी उम्र आसानी से गुजार देते हैं. परिवार से एक आईएएस बन जाने का अर्थ ही वास्तव में 'गंगा नहा लेने से' कम नहीं था.
ऐसी नौकरी के लिए चुने जाने के बाद जब गुरुवार को युवा आईएएस अफसर मुकेश पांडे ने आत्महत्या का फैसला किया, तो आखिर उनके मन में क्या चल रहा होगा. मुकेश ने सुसाइड के लिए बिहार के बक्सर से उप्र के गाजियाबाद तक का सफर तय किया. मुकेश ने अपने सुसाइड नोट में लिखा, 'मैं जीवन से तंग आ गया हूं और मानवीय अस्तित्व में मेरा यकीन नहीं रहा.'
कुछ महीने पहले जब मैंने आत्महत्या और तनाव पर आधारित बेब सीरीज डियर जिंदगी का लेखन शुरू किया, तो मेरे अनेक मित्रों का विचार था कि इस विषय पर संवाद का यह सही समय नहीं है. भारत में अभी यह समस्या विदेशों की तुलना में इतनी अहम नहीं है. दुर्भाग्य से इस बीच आत्महत्या के नए आंकड़े, इंटरनेट पर आत्महत्या की लाइव कोशिशों ने मुझे सही साबित कर दिया.
आत्महत्या मन की अंत: चेतना में चलने वाली इतनी सूक्ष्म विचार प्रक्रिया का परिणाम है कि उसे पकड़ना बेहद मुश्किल है. यह मुश्किल अब असंभव की ओर बढ़ रही है क्योंकि परिवार, दोस्तों और समाज में संवाद का 'स्पेस' हर दिन सिकुड़ता जा रहा है. हम अपनी बात को साझा करने से डरने लगे हैं. हमें मजाक बनाए जाने, उसका हमारे खिलाफ इस्तेमाल किए जाने का हमेशा डर बना रहता है. एक-दूसरे के प्रति सहज प्रेम और भरोसे जैसे सामान्य गुणों से हम बहुत दूर निकल आए हैं.
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इतने दूर कि आईएएस जैसी सेवा में चुने गए कठिन मानसिक परिस्थितियों के लिए तैयार मुकेश जैसे युवा जीवन से हार मान रहे हैं. आखिर क्या टूटा होगा मुकेश के भीतर. उसे किस भरोसे, रिश्ते के टूटने पर इतनी पीड़ा हुई होगी, जिस पर जिंदगी की बलि चढ़ाने का फैसला हो गया. आखिर मुकेश किससे तंग आ गए होंगे... क्या वही सब जो हममें से हर किसी की जिंदगी में घट रहा है... भरोसे का टूटना. यह भरोसा कहीं भी टूट सकता है. अपने घर, अपने अजीज दोस्त या अपने प्रोफेशन में! कहीं भी उसे किसी ऐसे अपने से इतनी गहरी चोट लगी, जिस पर अटूट भरोसा करते रहे होंगे.
अकेले मुकेश ही नहीं, बल्कि आमतौर पर आत्महत्या के कारणों के लिए उस अकेले इंसान की परिस्थिति भर जिम्मेदार नहीं होती. परिवार, दोस्तों से संबंध, मुश्किलों से सामना करने की क्षमता और किसी अनचाही/अप्रिय बात का सामना करने की शक्ति.
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मैं निजी रूप से अब तक चार ऐसे व्यक्तियों से परिचित रहा हूं, जो बाहरी दुनिया के लिए बेहद जिंदादिल,मददगार और सफल थे, लेकिन उन्होंने आत्महत्या का रास्ता चुन लिया. इनमें एक किशोर छात्रा थी, दूसरी शादीशुदा युवा महिला और तीसरे एक युवा पुरुष डॉक्टर और चौथे रिटायर्ड, लेकिन संपन्न समाजसेवी. सभी बाहरी दुनिया के लिए बेहद खुशमिजाज थे. अपनी आत्महत्या की खबर देने तक. इनमें से किसी ने कभी आत्महत्या की कोशिश जैसी हरकत भी नहीं की थी. न ही कभी कोई नकारात्मकता प्रकट की थी. फिर ऐसा क्या हुआ, जिसे इनके आसपास मौजूद सक्षम लोग पकड़ नहीं सके. इनमें से दो युवाओं के पास बेहद सक्षम बड़े भाई थे. हर बात में चौकस, हर कठिन स्थिति में दूसरों के लिए तैयार. तो क्यों उनके विचारों की स्कैनिंग नहीं की जा सकी.
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आईएएस मुकेश पांडे की आत्महत्या हम सभी के लिए चिंता का सबब होनी चाहिए. यह इस मिथक को भी तोड़ने का काम करती है कि आर्थिक संकट जीवन समाप्त करने का बड़ा कारण होता है. धन वास्तव में अभीइतना बड़ा नहीं हुआ है कि वह जीवन को चुनौती दे सके. यह काम हमारा 'मन' ही कर सकता है. इसलिए मन के विचलन, उसके चाल, चरित्र और चेहरे के प्रति बेहद सतर्क रहें. आत्महत्या का विचार बेहद प्रबल होता है, लेकिन थोड़ी सी सतर्कता से इसे टाला जा सकता है. इसलिए सतर्क, सावधान रहें, उनके लिए जिन्हें आप जिंदगी से बढ़कर प्रेम करते हैं.
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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