डियर जिंदगी : जो माफ नहीं कर सकते उनके लिए...
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डियर जिंदगी : जो माफ नहीं कर सकते उनके लिए...

ठीक वैसे ही कई बार जीवन ऐसी चीजों से बाधित हो जाता है, जो असल में इतनी 'छोटी' होती हैं कि उनका ख्‍याल भी नहीं रहता और कुछ दिन का अबोला कई बार बरसों के प्रेम पर भारी पड़ जाता है.

जिंदगी में किसी को माफ करना मुश्किल नहीं होता, बशर्ते दोनों तरफ से प्रेम की नदी बह रही हो.

दयाशंकर मिश्र

पति-पत्‍नी के बीच विवाद सारी सीमाएं पार कर गया था. बहुत कोशिशों के बाद भी संवाद टूटा हुआ था. ठीक वैसे ही जैसे घर में पानी का भराव किसी और जगह से पानी आने के कारण न होकर अपने ही घर से पानी न निकल पाने के कारण होता है. कचरे का छोटा सा टुकड़ा घर में गंदगी का कारण बन सकता है. ठीक वैसे ही कई बार जीवन ऐसी चीजों से बाधित हो जाता है, जो असल में इतनी 'छोटी' होती हैं कि उनका ख्‍याल भी नहीं रहता और कुछ दिन का अबोला कई बार बरसों के प्रेम पर भारी पड़ जाता है.

जिंदगी बांध नहीं है, जहां पानी जमा करने, समयानुसार उसके उपयोग की सुविधा होती है. जीवन नदी है, जैसे ही पानी को रोकने की कोशिश होगी, उसका जीवन, गति और स्‍वाद किरकिरा हो जाएगा.

ऐसे ही मासूम विवादों के बीच एक दिन जब मां ने देखा कि विवाद 'मासूमियत' की हदेंपार करके, गंभीरता की ओर बढ़ रहा है तो उन्‍होंने बेटे और बहू को संडे को घर के बाहरले जाकर 'चाय विद मां' का न्‍योता दिया. जब तीनों रेस्‍तरां पहुंच गए, तो मां ने एकबेहतरीन किस्‍सा उन्‍हें सुनाया...

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इस किस्‍से ने कुछ पलों के लिए मानो बेटे के पैरों के नीचे से जमीन खिसका दी. बहू भी तनिक स्‍तब्‍ध सी बैठी रही. लेकिन मां तो मां होती है. उन्‍होंने बेहद स्थिर मन, चेतनासे बेटे को उसकी जिंदगी में खतरनाक दुर्घटना से बचने की कथा सुनाई. उसके बादउन्‍होंने बेटे से कहा 'अब बताओ तुम बहू से जिस बात के लिए नाराज हो, क्‍या वहइतनी बड़ी बात है.' अगर तुम्‍हारे पिता ने इस बात को दिल से लगाया होता तो हमारीजिंदगी दुखों का कबाड़ बन जाती. लेकिन उन्‍होंने ऐसा नहीं किया. उन्‍होंने कुछ ही पलों के बाद इसे भूलने का फैसला किया. आज तुम्‍हें यह इसलिए बताया जिससे तुम सीखो कि माफ करना कितना जरूरी है, जिंदगी में. एक-दूसरे की गलतियों का बोझ लिए हमनिरंतर बीमार हो रहे हैं. दिमाग में कचरा रखने से नुकसान ही होगा. और कुछ नहीं. तो सुनिए बेटे को मां ने क्‍या सुनाया....

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मां, बेटा और उनके पिता. अपने तीन बच्‍चों और पड़ोसी के दो नवजात बच्‍चों के साथ हबीबगंज रेलवे स्‍टेशन पर उतरे. गाड़ी वहां दो मिनट ही रुकती थी. सामान काफी ज्‍यादाथा. जब सब उतर गए और सामान समेटकर चलने की तैयारी करने लगे, तो अचानक मां को याद आया कि उनका पांच बरस का बेटा तो ऊपर वाली बर्थ पर सोता ही रहगया. गाड़ी चली गई थी. बेटा छूट गया था. इस नए शहर में उनको जानने वाले बहुत ही कम लोग थे. उन दिनों फोन इतने 'स्‍मार्ट' भी नहीं थे.

पिता भागते हुए स्‍टेशन मास्‍टर के पास गए. संयोग से उसी समय दूसरी ट्रेन आ गई, जिसमें बैठकर वह भोपाल स्‍टेशन पहुंच गए. जिस ट्रेन में बेटा छूटा था, भोपाल उसकाआखिरी स्‍टेशन था, इसलिए बेटा अब तक उठा नहीं था. बेटा मिल गया था.

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बेटे के खोने और मिलने के बीच के वह 20 मिनट कितने टन वजनी रहे होंगे. आप शायद समझ पाएंगे. लेकिन जैसे ही मां ने अपनी बात खत्‍म की बेटा और बहू दोनों मां से लिपट गए. दोनों की आंखों में आंसू थे. एक सच्‍ची, सार्थक कहानी ने उनके बीच की दूरियां मिटा दीं.

उन्‍हें शायद बात समझ में आ गई. जिंदगी में किसी को माफ करना मुश्किल नहीं होता, बशर्ते दोनों तरफ से प्रेम की नदी बह रही हो. उसमें बांध न बना हो.

(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

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