गांठ है ही खतरनाक. भले ही वह शरीर के लिए हो या मन के लिए. मन के भीतर की गांठें कई बार अनुमान से अधिक नुकसान पहुंचाती हैं.
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दयाशंकर मिश्र
रिश्ते कैसे बनते हैं. क्या रिश्तों का कोई विज्ञान है. जिसे फार्मूले में ढालकर वैज्ञनिक निष्कर्ष तैयार किया जा सके. बढ़ते ट्रैफिक जाम, हर महीने ईएमआई के नए गणित, करियर पर रोज मंडराते खतरे और बच्चों को मशीन बनाने की संस्कृति ने हमसे जिस मिठास को छीन लिया है, उसे हम 'रिश्ते' के नाम से जानते हैं.
रहीम के दोहे किसी न किसी रूप में भारतीय चेतना का हिस्सा रहे हैं. उनके सबसे अधिक लोकप्रिय दोहे प्रेम, रिश्तों पर ही तो हैं. रहीम कहते हैं, 'रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय. टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गांठ परि जाय'. इन दिनों इस चटकने की चिंता से हम लगभग मुक्त हो गए हैं. जबकि यह मुक्ति नहीं, यह मन के भीतर की गांठ है. जैसा कि हम जानते हैं गांठ हमेशा कष्टदायक होती है. शरीर के भीतर उसे सही तरह से इलाज न मिले, तो वह कैंसर का कारण तक बन जाती है.
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गांठ है ही खतरनाक. भले ही वह शरीर के लिए हो या मन के लिए. मन के भीतर की गांठें कई बार अनुमान से अधिक नुकसान पहुंचाती हैं. निराशा में डूबे मन, प्रेम से रिक्त मन, एक-दूसरे के प्रति अविश्वास लिए मन, संशय में डूबी चेतना किसी के लिए कभी भी घातक साबित हो सकते हैं.
जैसे-जैसे हमारे बुजुर्ग हमसे दूर होते जा रहे हैं, हमारे भीतर से प्रेम भी कम होता जा रहा है. उनका साथ (जो अनेक व्यवहारिक कारणों के चलते भी संभव नहीं है) न होना हमारे भीतर से कुछ छीन रहा है. यह कुछ और नहीं बल्कि प्रेम है. एक-दूसरे की गलतियों को क्षमा करते हुए आगे बढ़ने की बात सबसे ज्यादा हमें उस व्यक्ति से मिलती है, जो उम्र में हमसे बड़ा है. जिसका हम आदर करते हैं.
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शताब्दी सी दौड़ती जिंदगी में जैसे-जैसे बड़ों का साथ, संवाद छूट रहा है, हमारे भीतर एक किस्म का 'सूखापन' बढ़ रहा है. यह सूखापन हमें अंदर से रिक्त बना रहा है. प्रेम, स्नेह और एक-दूसरे के प्रति क्षमाभाव से रिक्त. बड़े अनबन को दूर करते रहने के साथ दूसरे के लिए 'स्पेस ' बनाते रहते हैं. जबकि युवा जो बेहद सीमित दायरे में रहते हैं, उनके भीतर दूसरों के लिए जगह कम होती जाती है. यह कम होती जगह को धीरे-धीरे वह गांठ घेर लेती है, जिसके बारे में रहीम ने बेहद खूबसूरती, कोमलता से आगाह किया है.
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इसलिए जितना संभव हो मन में दूसरे के प्रति कुछ न रखें. जो कहना है, साफ-साफ कह दें. इसमें कोई बुराई नहीं. यह आपके मन, चेतना और अवचेतन सबके लिए प्यूरीफायर का काम करेगा. इससे जो जगह रिक्त होगी प्रेम उसकी ओर स्वत: चल पड़ेगा.
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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