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इन दिनों भारतीय अखबार, वेबसाइट क्रिकेट टीम के कप्तान और कोच के विवाद से भरे हुए हैं. इसमें अब तक सामने आए तथ्यों से एक बात साबित हो चुकी है कि खिलाड़ी कोच के 'अधिक' अनुशासन से नाराज हैं. वह आजादी चाहते हैं. तीखे तेवरों वाले कप्तान, स्टार खिलाड़ियों को अनुशासन के प्रति आदर का भाव पसंद नहीं था. सारा विवाद आजादी के आंदोलन की शक्ल में पैदा किया गया.
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अनुशासन चाहता कौन है! मनुष्य मोटे तौर पर अनुशासन विरोधी है, इसलिए जगह-जगह सूचनाएं लगाई जाती है कि यह करें, यह न करें. छोटी से छोटी, बड़ी से बड़ी कंपनियों, परिवार, देशों में अनुशासन की देखभाल के लिए विभाग, अफसर रखे गए हैं. हुनर को निखारने, सफलता की निरंतर यात्रा के लिए अनुशासन सबसे गंभीर उपकरण है. आप कितने ही प्रतिभाशाली क्यों न हों अगर आपके भीतर अनुशासन के लिए सम्मान नहीं है, तो इंटरनेशनल तो छोड़िए, किसी भी लेवल पर आपको परेशानियों का सामना करना पड़ेगा.
अनुशासन, नीम के पत्ते की तरह है, मिजाज कड़वा लेकिन खून साफ करता है. अनुशासन प्रिय व्यक्ति भी नीम के पत्तों की तरह होता है. कोहली कप्तानी के शुरुआती पड़ाव पर हैं. छोटे बच्चे की तरह मचल रहे हैं, इसलिए वह इंग्लैंड के मशहूर, बेहद प्रतिभाशाली बल्लेबाज केविन पीटरसन से जितनी जल्दी सबक सीख लें उतना ही बेहतर होगा. क्रिकेट के जानकार केविन को कुछ बरस पहले तक दुनिया के सबसे सक्षम, संपूर्ण बल्लेबाज के रूप में जानते थे, लेकिन देखते ही देखते विवादों की सीरीज, घमंड को अपना स्वभाव मानने की गलती करते ही उनका करियर तबाह हो गया.
विनोद कांबली तो आपको याद है न. विनोद को भी अनुशसान पसंद नहीं था. वह बस विनोदप्रिय थे. सच कहिए तो सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली में केवल एक ही अंतर था. एक अनुशासन का साथी था, दूसरे को उससे उतनी ही दूरी पसंद थी. सफलता से अधिक महत्व की बात उसे संभाल कर रखने में है. खेल और खिलाड़ियों का जीवन यही सिखाता है. कैसे हमें मुश्किल स्थितियों में खुद को सहेजना है. सख्त लहजे वाले शिक्षक हमें कब पसंद आते हैं. यह बात और है कि सफलता के अंतिम शिखर पर उनकी याद सबसे अधिक आती है. शिक्षकों के अलग-अलग नाम हो सकते हैं, लेकिन गुण एक ही है, अनुशासन.
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इसलिए हमारे आसपास जो भी बच्चे, युवा करियर की कहानियां लिख ,पढ़ रहे हैं. उन्हें यह समझना बेहद जरूरी है कि उनका सबसे गंभीर,सच्चा मित्र केवल अनुशासन है. छोटे-छोटे शिखर चढ़कर इतराने वाले समय की नोटबुक में अपना नाम नहीं लिख सकते. जिनमें शिक्षकों, अनुशासन के प्रति निष्ठा नहीं होती वह अक्सर विनोद कांबली हो जाया करते हैं, उनके भीतर सचिन तेंदुलकर के पथ पर चलने का लोहा नहीं होता.
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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