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एक जगह, विचार पर जमे रहने का गुण. विरासत से चिपके रहने की आदत. वैसे ही जीना, वैसे ही सांस लेना यहां तक कि वैसे ही मर जाना, जैसे खानदान के लोग अब तक दुनिया को अलविदा कहते आए. यह स्थिरता कब जड़ता का स्वरूप ले लेती है, हमें पता भी नहीं चलता. एक ही सपने से चिपके रहने का यहां अर्थ चीजों के लिए संघर्ष करने से मनाही नहीं है. बल्कि जिंदगी की राह में अपने सही मूल्यांकन को समय रहते न समझने से है. हर किसी में एक खास गुण है, लेकिन वह उस गुण की पहचान, अपने हुनर पर यकीन की जगह उस दौड़ में शामिल हो जाता है, जिसमें बाकी लोग जुटे हैं. बिना किसी स्व-मूल्यांकन, विश्लेषण के.
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मैराथन में हिस्सा ले लेने भर से हर कोई धावक नहीं बन जाता. अगर ऐसा होता तो सारा शहर फिट हो जाता. हमें इस दुनिया में अपनी उपस्थिति के सही अर्थ को समझने की जरूरत है. मैराथन में हिस्सा लेने से धावक होने के सपने का कोई मेल नहीं है. इस देश के अधिकांश युवा ऐसी ही गलतफहमियों का शिकार हैं. इसलिए, आप किसी भी पेशे में हों, सबसे पहले यह समझने की जरूरत है कि कुछ भी नया करने की संभावना हमेशा है. भारतीयों के सामने रोजगार के जो बड़े संकट खड़े हो रहे हैं, उनके प्रमुख कारण में से एक 'नए' से दूरी बनाए रखना भी है. ऐसा इसलिए है, क्योंकि हम एक समाज के रूप में 'नए' से दूर रहना चाहते हैं, क्योंकि कुछ नया करेंगे तो लोग स्पोर्ट नहीं करेंगे. लोग समर्थन करने की जगह कमी निकालने पर आमादा रहते हैं. जब आसपास का वातावरण ऐसा हो तो युवाओं के सपनों में नवीनता कहां से आएगी.
लोग उन्हीं विचारों, सपनों से चिपके हैं, जो उन्हें सहजता से मिल गए. जब सपने दूसरों के होंगे तो वह पूरे होने से रहे और अगर हो भी गए तो आपको जीवन का अर्थ नहीं दे पाएंगे. सबको वह बनना है, जिसमें समाज को सबसे अधिक ग्लैमर दिखता है. भले ही आप कहीं न पहुंच सकें. हम उस करवां का हमसफर होने भर के गुमान में जिंदगी बिता देते हैं. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि भारत में ग्रामीण इलाकों, कस्बों, मध्यमवर्गीय शहरों में हर कोई आईएएस अफसर बनना चाहता है, इसलिए नहीं कि वह समाज में परिवर्तन के प्रति कोई नजरिया रखता है, इसलिए क्योंकि आईएएस का मतलब है, रौब, पॉवर और दबंग.
लाखों युवा इस सपने के फेर में जिंदगी के सबसे मूल्यवान दस बरस ( 20 से 30 ) का दशक इसके लिए न्यौछावर कर देते हैं. जब तक इस सपने के मोह में फंसे रहते हैं, समाज उनके प्रति सॉफ्ट नजरिया रखता है. क्योंकि लाखों लोग यही करते रहते हैं. और जब अंतत: यह लोग असफल हो जाते हैं, क्योंकि सफलता का स्थान बहुत ही कम है. तो उसके बाद बाकी जिंदगी भी आईएएस समझते हुए ही बिताते हैं. वह अवसरों को 'छोटी' नौकरी कहते हुए ठुकराते रहते हैं. जीवन भर कुंठित रहते हैं.
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नई कोशिश कभी नहीं करते... क्योंकि वह तो बस आईएएस बनते-बनते रह गए. यह बात और है कि वह कभी आईएएस की (प्री) प्रारंभिक परीक्षा भी पास नहीं कर सके. लेकिन उनके आसपास का वातावरण उन्हें ऐसा करने और मानसिक रूप से 'दूसरी' दुनिया में बनाए रखने में मदद करता है. क्योंकि उन्होंने नए रास्ते नहीं चुने, जोखिम नहीं लिया. ऐसे युवाओं को बदल पाना बेहद मुश्किल है. जब तक उन्हें स्वयं यह बोध न हो जाए कि जिंदगी आईएएस से कहीं अधिक बड़ी, अवसरों से भरी है. बस आपमें लीक तोड़कर चलने, निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए. जिंदगी को एक सपने का गुलाम न बनने दें. उसमें देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप परिवर्तन की गुजाइंश रखे. संभव है, आपको अपनी मंजिल मिल जाएगी.
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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