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यह सेल्फी समय है. पहले की शताब्दियों की तुलना में अधिक आत्मकेंद्रित, आत्ममुग्ध और खुद पर मर मिटने वाला. यह इतना सेल्फ सेंटर्ड समय है कि अगर हाथ में मोबाइल न हो, तस्वीरें न खींची जा रही हों तो चेहरे पर हंसी असंभव है. इन दिनों हमारे चेहरे पर हंसी तभी आती है, जब चेहरे थोड़े तिरछे किए जाएं, मुंह को थोड़ा टेढ़ा-मेढ़ा किया जाए. चूकि हर कोई ऐसा कर रहा है, इसलिए धीरे-धीरे सभी ऐसा करने लगे हैं. ट्रेंड को फॉलो करने का मतलब नकल करना नहीं है, लेकिन ट्रेंड को पकड़ने के फेर ने हमें नकलची बंदर से भी बदतर बना दिया है. और सबसे मजेदार यह कि सबसे ज्यादा नकल वही युवा (ट्रेंडी) कर रहे हैं, जो खुद को सबसे अधिक अपडेट, आगे रहने वाला मानते हैं. क्योंकि वे अपने को देखने, समझने का पूरा समय बस दूसरों को कॉपी करने में बर्बाद कर रहे हैं.
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विविधता प्रकृति (नेचर) का सबसे अहम गुण है. हम सब अलग-अलग हैं. हमारी आदतें, व्यवहार सब जुदा-जुदा हैं. हर कोई अपने आप में अलग किरदार है. लेकिन बाहरी चीजों से प्रभावित होने का सिलसिला हमें अंदरूनी तौर पर भी उसी दिशा में धकेलने लगता है. हम जिस तरह की बाह्य संगत में रहते हैं, उससे हमारी आंतरिक बनावट प्रभावित न हो ऐसा बहुत मुश्किल है. इन दिनों यह असर तेजी से फैल रहा है.
पिछले दिनों एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में मुझे देश भर (मुख्यत : उत्तर, दक्षिण भारत) में बहुत से युवा उम्मीदवारों से बात करने का अवसर मिला. उनके रिज्यूमे का अध्ययन करने का मौका मिला. खूब सारे अनुभव हुए. कुछ यहां शेयर कर रहा हूं. अधिकांश रिज्यूमे में रुचि/ हॉबी के आगे झूठ लिखा हुआ था. सब एक जैसी हॉबी लिखते हैं, पढ़ना, घूमना और फिल्में देखना. जब इनसे बात हुई तो पता चला कि कोई पढ़ता नहीं, कोई घूमता नहीं, न ही फिल्में देखता है. इसका मतलब यह नहीं कि उनकी हॉबी नहीं है, इसका अर्थ है कि उन्होंने लिखने से पहले सोचा नहीं. एक सीवी से उठाकर दूसरे ने पेस्ट कर दिया. वह क्या काम करते हैं, इसे सीधे-सीधे बताने की जगह घुमावदार तरीकों से बताया जा रहा है. हम भूल गए हैं कि क्रिएटिव होने का अर्थ 'कुछ' भी करना नहीं है. बल्कि अपने को रोचक तरीके से बयां करना है.
यह 'कट' एंड 'पेस्ट' कल्चर कितना खतरनाक हो सकता है, इसका ख्याल रखने की फुरसत किसी को नहीं. लेकिन अवसर गंवाने के बाद दुखी रहने का समय सबके पास है. एक तरफ हम कहते हैं कि मौके नहीं मिलते दूसरी ओर जब मौके आते हैं तो हम उन्हें कितनी गंभीरता से लेते हैं, यह इसका सबसे सरल उदाहरण है. यहां तक कि जो रिज्यूमे भेजे जाते हैं, जो जानकारी खुद स्वयं के बारे में वह नियोक्ताओं को दे रहे हैं, उसमें अनेक बार विरोधाभास होता है. ऐसा लगता है कि जो लिखा गया है, रटकर लिखा गया है, या लिखे हुए को रटकर आए हैं. जाहिर है, इसका असर किसी भी इंटरव्यू बोर्ड पर अच्छा नहीं पड़ता.
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जिंदगी नकल करने से नहीं संवारी जा सकती. वह उसी स्वभाव में सबसे बेहतर साथ देगी, जो आपका है. आप जो हैं, जैसे भी हैं, दुनिया को वही बताइए. ओरिजनल बने रहना एक महान, दुर्लभ गुण है, इसे लेकर दुविधा में मत पड़िए. बल्कि इस पर गर्व करिए. इससे आपको अपने बारे में कुछ रटकर, लिखने बताने की जरूरत नहीं होगी...
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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