बचपन में करता था 'रैंचो' जैसी हरकत, 'बाहुबली' से लिया आइडिया और बन गया वैज्ञानिक
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बचपन में करता था 'रैंचो' जैसी हरकत, 'बाहुबली' से लिया आइडिया और बन गया वैज्ञानिक

अशोक के पिता गोपीचंद शर्मा उसे खुद की तरह एक रसोइया बनाना चाहते थे लेकिन अशोक के दिमाग में चलती रहती थीं मशीनें

अशोक के साथ उसकी टीम को रक्षा अनुसंधान एवं संगठन की ओर से अगले माह इजरायल भेजा जा रहा है

सीकर: बॉलीवुड फिल्म 'थ्री इडियट' में आमिर खान द्वारा निभाया गया किरदार रैंचो तो आपको याद ही होगा. जी हां, जिसे किताबों से कम और मशीनों से ज्यादा प्यार था. कुछ ऐसा ही रैंचो जैसा लड़का सामने आया है राजस्थान के झुंझुनूं जिले से. झुंझुनूं के अजाड़ी खुर्द का रहने वाले अशोक शर्मा के एक आइडिया ने उसकी पूरी जिंदगी बदल दी है. आपको बता दें कि अशोक के पिता गोपीचंद शर्मा उसे खुद की तरह एक रसोइया बनाना चाहते थे लेकिन अशोक के दिमाग में चलती रहती थीं मशीनें.

  1. अशोक शर्मा के एक आइडिया ने उसकी पूरी जिंदगी बदल दी है
  2. अशोक के पिता गोपीचंद शर्मा उसे खुद की तरह एक रसोइया बनाना चाहते थे
  3. 12वीं पास करने के बाद ही उसके दो प्रोजेक्ट डीआरडीओ ने मंजूर कर लिए

12वीं पास करते ही बन गया साइंटिस्ट
तीन साल की उम्र में ही अपने परिवार की माली हालत खराब होने के कारण वह चला गया सीकर जिले के रीणू गांव में अपने ननिहाल. लेकिन, यहां पर उसने कभी भी किसी भी कक्षा में ऐसे नंबर नहीं प्राप्त किए जिससे लगता हो कि अशोक आगे जाकर वैज्ञानिक बनेगा. लेकिन 12वीं पास करने के बाद ही उसके दो प्रोजेक्ट डीआरडीओ ने मंजूर कर लिए और उसे वैज्ञानिक जिसे विज्ञान की भाषा में 'साइंटिस्ट एच' बना दिया गया. अब जल्द ही अशोक अपने दोनों प्रोजेक्टों को फाइनल टच देने के लिए सरकारी खर्चे पर इजरायल जाएगा.

बचपन में करता था 'रैंचो' जैसी हरकत
बचपन में परिवार और आस-पड़ोस की मशीनों को लुक-छिप कर खोलना, उसे समझना और बाद में उसे ज्यों का त्यों बंद कर देना तो अशोक की आदत में था. लेकिन, दो साल पहले अशोक ने अपना पहला कारनामा किया. उसने जोड़-तोड़ से एक फ्रीज बना डाला. इसके बाद उसने किसानों के लिए एक मशीन बनाने की भी सोची, लेकिन परिवार ने साथ नहीं दिया.

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बाहुबली से आया आइडिया
अशोक ने जब बाहुबली फिल्म देखी तो उसने 'मृत्यु कार' बनाने की ठानी और इसके आठ चरण भी पूरे कर लिए. सेना के ये कार कैसे काम आए? इस सवाल का जवाब ढूंढा गूगल से. गूगल ने रास्ता दिखाया डीआरडीओ से. तीन बार लगातार अशोक के प्रोजेक्टर 'कर्ण का तीर' और 'मृत्यु कार' रिजेक्ट हुए. लेकिन आखिरकार एक दिन डीआरडीओ से अशोक के पास फोन आ ही गया. इसके बाद वह पहले देहरादून और बाद में बैंगलोर गया. अब जल्द ही अशोक इजराइल जाएगा.

पूरे गांव में छाई खुशी की लहर
अशोक भाई-बहनों में सबसे बड़ा है. अशोक 21 साल का है और 12वीं तक पढ़ा है. वहीं उसका छोटा भाई तरूण आठ साल का है और तीसरी कक्षा में पढ़ रहा है. उसकी बहन भूमिका अभी छह साल की है जो दूसरी में पढ़ रही है. पिता गोपीचंद आठवीं तक पढ़े हुए हैं लेकिन वे रसोइए से ज्यादा कुछ नहीं बन पाए. अशोक की मां संतोषदेवी अनपढ़ हैं. लेकिन, उनके लाडले ने जो नाम कमाया है उससे पूरे गांव में खुशी है.

डीआरडीओ में बना वैज्ञानिक
साधारण परिवार का अशोक सीमा पर रोज शहीद होने वाले भारतीय सैनिकों के लिए कुछ करना चाहता था. वो अपने ननिहाल रिणू में स्कूल से आने के बाद कंप्यूटर पर ऐसे हथियार बनाने का प्रयास करने लगा जिससे दुश्मन को दूर से ही मारा जा सके. इसी सोच के साथ उसने दो प्रोजेक्ट तैयार कर डीआरडीओ एवं रक्षा मंत्रालय के पास भेजे. रक्षा एवं डीआरडीओ को प्रोजेक्ट पसंद आए. वहां पर तीन चरणों में अशोक का इंटरव्यू लेकर उसे डीआरडीओ में वैज्ञानिक एच बना दिया गया.

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12वीं पास को मिलने लगा 60हजार का वेतन
अशोक के साथ उसकी टीम को रक्षा अनुसंधान एवं संगठन की ओर से अगले माह इजरायल भेजा जा रहा है. 12वीं पास अशोक को फिलहाल डीआरडीओ की ओर से हर माह 60 हजार रुपए का वेतन भी दिया जाने लगा है. अशोक को पिछले साल डीआरडीओ लैब में बेस्ट साइंटिस्ट डॉ. रमन पुरस्कार भी गृह मंत्रालय की ओर से दिया गया.

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