एक्ट ईस्ट के बाद अब ‘लुक वेस्ट’ की तैयारी
Advertisement
trendingNow1375716

एक्ट ईस्ट के बाद अब ‘लुक वेस्ट’ की तैयारी

सामरिक, सांस्कृतिक और भू-राजनीतिक सन्दर्भ के अलावा भारत के लिए तीन अन्य विषयों के कारण पश्चिम एशिया और भी महत्वपूर्ण हो जाता है.

एक्ट ईस्ट के बाद अब ‘लुक वेस्ट’ की तैयारी

प्रधानमंत्री मोदी अपने पश्चिम एशिया के फिलिस्तीन, संयुक्त अरब अमीरात और ओमान के चार दिवसीय दौरे से भारत वापस लौट चुके हैं. 2015 से पश्चिम एशिया की उनकी यह पांचवीं यात्रा थी. कूटनीति के जानकार उनके इस दौरे को भारत द्वारा पश्चिम एशिया में अपने कद को बढ़ाने के प्रयास के रूप में भी देख रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने भारतीय विदेश-नीति में आमूलचूल बदलाव लाने के लिए जो व्यक्तिगत रुचि दिखाते हुए प्रयास किए हैं, उससे इतना तो साफ़ है कि भारत वैश्विक स्तर पर चीन से मुकाबले हेतु एक बड़े किरदार को निभाने के लिए तैयार हो रहा है. पूर्वी एशिया के साथ नरसिम्हा राव के समय से चली आ रही ‘लुक ईस्ट’ पॉलिसी को उन्होंने न सिर्फ ‘एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी का नाम दिया, बल्कि उसमें व्यापक परिवर्तन भी कर के दिखाए हैं. और अब इजरायली प्रधानमंत्री की मेज़बानी करके एवं अरब देशों की यात्रा से लौटने के तुरंत बाद ईरानी राष्ट्रपति रूहानी को मेहमान बना के पीएम मोदी भारत की पश्चिम एशिया नीति में जो बदलाव ला रहे हैं, उसे वरिष्ठ पत्रकार संजय बारू ‘लुक वेस्ट पॉलिसी’ का नाम देते हैं.

पीएम मोदी की ‘डी हाइफनेशन’ नीति दर्शाता फिलिस्तीन दौरा

आने वाले समय में पश्चिम एशिया से भारत के एेतिहासिक संबंधों की महत्ता बढ़नी ही है. सामरिक, सांस्कृतिक और भू-राजनीतिक सन्दर्भ के अलावा भारत के लिए तीन अन्य विषयों के कारण यह क्षेत्र और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. पहला है भारत की ऊर्जा-सुरक्षा. ज्ञात रहे कि भारत पचपन प्रतिशत तेल और प्राकृतिक गैस इसी क्षेत्र से आयात करता है. दूसरा है पश्चिम एशिया में काम करने वाले प्रवासी भारतीय, जिनकी संख्या लगभग सत्तर से अस्सी लाख है जो वापस अपने देश में करीब छत्तीस अरब डॉलर भेज कर देश की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान देते हैं. तीसरा है आतंकवाद और आंतरिक सुरक्षा. अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद और धार्मिक कट्टरवाद को रोकने के लिए भारत को पश्चिमी एशियाई देशों के साथ की बहुत आवश्यकता है. इस क्षेत्र के तीन बड़े खिलाड़ी इजरायल, ईरान और सऊदी अरब तीन अलग-अलग शक्तियों का प्रतिनिधित्व करते हैं और तीनों ही आपस में एक-दुसरे के धुर-विरोधी भी हैं.

हज सब्सिडी की समाप्ति : तुष्टीकरण से सशक्तिकरण की ओर एक कदम

ऐसे में भारत के लिए तीनों देशों के साथ मधुर सम्बन्ध स्थापित करना और उनके बीच में संतुलन बनाए रखना आसान नहीं है. विशेष रूप से इजराइल के साथ भारत के नए सम्बन्ध को पश्चिम एशिया में बड़े ध्यान से देखा जा रहा था क्योंकि पारंपरिक रूप से भारत इजराइल के प्रतिद्वंदी फिलिस्तीन का समर्थक रहा है. बीते कुछ समय से सवाल उठने लगे थे कि शायद मोदी सरकार में भारत ने फिलिस्तीन को लेकर अपनी नीति बदल दी है, लेकिन प्रधानमंत्री के फिलिस्तीन दौरे ने इन सभी शंकाओं को विराम दे दिया है. फिलिस्तीन यात्रा करने वाले पहले प्रधानमंत्री मोदी ने फिलिस्तीन की शांति और संप्रभुता के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया है. उन्होंने यह भी कहा कि फिलिस्तीन में शांति और उसकी संप्रभुता के लिए भारत आशान्वित है और फिलिस्तीन के हितों का हमेशा ख्याल रखेगा. वहीं दूसरी ओर फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने पीएम मोदी को फिलिस्तीन की तरफ से विदेशी नेताओं को दिए जाने वाला सर्वोच्च सम्मान ‘ग्रैंड कॉलर ऑफ द स्टेट ऑफ फिलिस्तीन’ से नवाज़ा है जो यह दर्शाता है कि फिलिस्तीन को न सिर्फ भारत के इजरायल के साथ संबंध मंज़ूर है, बल्कि भारत की बढ़ती हुई सामरिक, आर्थिक, सैन्य-शक्ति और उसकी तटस्थता के कारण वो इजरायल-फिलिस्तीन विवाद को सुलझाने के लिए भारत की मध्यस्थता भी चाहता है.

क्या भारतीय सेना केवल 'आर्मी डे' के दिन ही सम्मान के काबिल है?

पीएम मोदी ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) पहुंच कर अबू धाबी के क्राउन प्रिंस शेख मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान से मुलाकात की, जिस दौरान ऊर्जा के क्षेत्र, रेलवे, श्रमशक्ति और वित्तीय सेवाओं जैसे क्षेत्रों में पांच समझौते किए गए हैं. इसके अलावा इंडियन कंसोर्टियम (ओवीएल, बीपीआरएल और आईओसीएल) तथा अबूधाबी नेशलन ऑयल कंपनी (एडीएनओसी) के बीच समझौता-ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किया गया है, जो यूएई के अपस्ट्रीम ऑयल सेक्टर में पहला भारतीय निवेश है. मोदी ने दुबई के ओपेरा हाउस से भारतीय समुदाय को संबोधित करते हुए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अबू धाबी में पहले हिंदू मंदिर की आधारशिला भी रखी जो भारत-अमीरात संबंधो की गहराई का प्रतीक है क्योंकि बड़ी संख्या में वहां हिन्दू भी प्रवास करते है. प्रधानमंत्री की यह दूसरी अमीरात यात्रा थी. इसके पहले वो 2015 में भी अमीरात गए थे. प्रधानमंत्री मोदी ने दुबई में मुख्य अतिथि के रूप में छठवें वर्ल्ड गवर्नमेंट समिट को संबोधित भी किया, जिसमें 26 देशों के राष्ट्रप्रमुख शामिल थे. 

कांग्रेस-भाजपा के लिए आत्ममंथन का संदेश देता गुजरात विधानसभा चुनाव परिणाम

अपनी यात्रा के आखिरी पड़ाव में ओमान पहुंच कर मोदी ने सुल्तान कबूस बिन के साथ मुलाकात की. इस दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन के क्षेत्र में सहयोग के लिए 8 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए हैं. इसके साथ-साथ भारत को एक बड़ी सामरिक सफलता भी मिली है. ओमान ने भारत को अपने दुक़्म बंदरग़ाह के रणनीतिक उपयोग की स्वीकृति दे दी है. यानी अब भारत यहां अपना नौसैनिक अड्‌डा बना सकता है और व्यापारिक गतिविधियां भी संचालित कर सकता है. यही नहीं, भारत इस जगह से पाकिस्तान के ग्वादर और ईरान के चाबहार बंदरग़ाह पर भी आसानी से नज़र रख सकता है. बहरहाल दुक़्म बंदरग़ाह के बाबत भारत और ओमान के बीच जो समझौता हुआ है उसके तहत भारत अब यहां अपने सैन्य जहाजों, पनडुब्बियों आदि की मरम्मत भी कर सकता है. हिंद महासागर में चीन से मुकाबले के मद्देनज़र इसे काफ़ी अहम माना जा रहा है. 

नए वैश्विक परिवेश में भारत के पश्चिम एशिया के साथ सम्बन्ध केवल ऊर्जा, प्रवासी भारतीय-हित और आर्थिक विषयों तक सीमित नहीं रहे हैं और इसमें सूचना एवं प्रौद्योगिकी, पर्यटन, कौशल-विकास आदि आयाम भी जुड़ गए हैं. दुबई, दोहा, मस्कट आदि की विकास-यात्रा में भारतीय समुदाय का विशेष योगदान रहा है. फिर चाहे वो ड्राईवर या मज़दूर के रूप में हो या डॉक्टर और शिक्षक के रूप में. वहीं चीन भी इस क्षेत्र में हथियार और आधारित संरचना के व्यापार से अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिशों में लगा हुआ है. भारत को चाहिए कि वो अपनी सॉफ्ट पॉवर (संस्कृति, धर्म) और सैन्य-शक्ति के सहारे पश्चिम एशिया में अपने आर्थिक और सामरिक हितों की रक्षा करे. चीन की बढ़ी हुई महत्वाकांक्षाओं के कारण आने वाले समय में भारत की लुक वेस्ट पॉलिसी की परीक्षा ज़रूर होगी. 

(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में शोधार्थी हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

Trending news