हमारे भीतर बैठे दुख बाहर नहीं दिखते. मन में पनप रही उदासी की छाया की झलक अनेक बार बाहर नहीं नजर आती है. वह बाहर तब नजर आती है, जब अक्सर बहुत देर हो जाती है. किसी रोज अचानक खबर मिलती है, 'उसने आत्महत्या कर ली.'
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हम एक होकर भी दो हैं. दो होकर भी एक हैं. एक वह हैं, जो सबको दिखते हैं. दूसरे वह हैं, जो मन की गुफा में खुद को समेटे रहते हैं. दुनिया को हम पहले वाले ही दीखते हैं, जबकि असल में हम हैं, दूसरे वाले. हमारा निर्माण करने वाला हमारा एकांत है. एकांत में जिस तरह हम स्वयं से संवाद करते हैं, उससे ही हमारा सृजन होता है. मन की फैक्ट्री में ही मनुष्य का असल निर्माण होता है. बाहर तो बस भीतर की छाया दीखती है.
इसीलिए, हमारे भीतर बैठे दुख बाहर नहीं दिखते. मन में पनप रही उदासी की छाया की झलक अनेक बार बाहर नहीं नजर आती है. वह बाहर तब नजर आती है, जब अक्सर बहुत देर हो जाती है. किसी रोज अचानक खबर मिलती है, 'उसने आत्महत्या कर ली.' उसके बाद अक्सर कहा जाता है, वह तो ऐसा नहीं था! उसे देखकर ऐसा कभी लगा ही नहीं. भला वह ऐसा क्यों करेगा. लेकिन असल सवाल यह है कि उसने ऐसा कर लिया.
डिप्रेशन, भारत में धीरे-धीरे जटिल रोग बनता जा रहा है. मन में तिनका-तिनका जमा होता तनाव, अचानक किसी रोज इकट्ठा होकर जिंदगी पर भारी पड़ जाने वाली चट्टान में बदल जाता है. उसके बाद किसी भी एक पल में मन से आशा का सारा सामान, निराशा की आंधी में उजड़ जाता है. डिप्रेशन, बहुत ही आहिस्ता-आहिस्ता समाज में शामिल हुआ है, लेकिन यह हमारी जिंदगी को तेजी से चट कर रहा है.
दीपिका पादुकोण, बॉलीवुड का सुपरिचित चेहरा हैं. अगर आप उनके अनुभव पर ध्यान दें तो शायद निराशा को अधिक सरलता से समझ पाएंगे. दीपिका ने कुछ समय पहले हिंदुस्तान टाइम्स में लिखे लेख में बताया था कि 2014 में वह किसी तरह डिप्रेशन में चली गईं थी. दीपिका ने लिखा, वह दुनिया के सामने एकदम पहले की तरह थीं. खूब इंटरव्यू और ऑटोग्राफ दे रही थीं. जमकर काम कर रही थीं. जो कोई भी बाहरी दीपिका को जानता था, वह उस दीपिका तक नहीं पहुंच सकता था, जो धीरे-धीरे डिप्रेशन के खतरनाक स्तर पर पहुंच गई थीं.
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दीपिका ने बताया, 'मेरी सांसें असामान्य हो रही थीं. अकेलापन चाहने लगी थी. बिना बात के रोने लगती. मैं कुछ 'अलग' ही महसूस कर रही थी. खुशकिस्मती से मां ने डिप्रेशन को समझ लिया. वह विशेषज्ञ डॉक्टर के पास ले गईं. जहां विधिवत इलाज किया गया.' दीपिका की जीवनशैली बदली गई. उन्हें दवा और दोस्तों के साथ ने ठीक किया. उसके बाद दीपिका ने 'लाइव लव लॉफ फाउंडेशन' की शुरुआत की, जो डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों की मदद करता है.
दीपिका पादुकोण जब डिप्रेशन में जा सकती हैं, तो किसी के भी जाने पर संदेह कैसा! यह भी ध्यान रखें कि सफलता और धन का डिप्रेशन से कोई संबंध नहीं है. यह दोनों ही दीपिका के पास पर्याप्त थे. डिप्रेशन बस एक बीमारी है, जो उसी तरह किसी दूसरे को हो सकती है, जैसे कोई भी दूसरी बीमारी.
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भारत में फिल्म सितारों को जिस तरह माथे पर बैठाने की परंपरा है. ऐसे में जनता के सामने आकर डिप्रेशन को स्वीकार करना, बड़े साहस का काम है. हो सकता था कि जनता कुछ दिन में उन्हें बीमार मानकर किनारा कर ले. इसलिए दीपिका के डिप्रेशन को स्वीकार करने, उससे लड़ने के प्रयासों की तारीफ की जानी चाहिए.
एक समाज के रूप में हम मन और मनोविकार दोनों को समझने से हमेशा से दूर भागते रहे हैं. इसलिए उदासी, अकेलापन और डिप्रेशन हमारी समझ में नहीं आते. जबकि यह हमारे परिवार, समाज पर मंडरा रहे सबसे बड़े खतरे में से एक है. इसलिए जितना हो सके, अपने प्रियजनों, मित्रों से संपर्क, संवाद में रहें. उनकी नजर में रहने के साथ उन पर हमेशा नजर भी रखें. ताकि उनके मन की ओर बढ़ती किसी भी छाया को आसानी से समय रहते रोक सकें.
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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)