देखते ही देखते आधुनिक नीरा कब एक 'परंपरागत' बहू', पत्नी और मां बन गईं, पता ही नहीं चला. शुरू में सबकुछ बहुत रोमांचक रहा. बच्चों का साथ बेहद लुभावना लग रहा था. लेकिन धीरे-धीरे जैसे बच्चे बड़े होते गए, उनकी जिंदगी में उदासी का आगमन होता गया.
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उनकी आवाज में गहरी उदासी थी. कॉलेज के दिनों के गहरे दोस्तों से मिलने के बाद उनमें कुछ ऊर्जा आई तो थी, लेकिन यह ऊर्जा कुछ ऐसी थी, जैसे समंदर में कोई लहर आती जाती है. जैसे उसका समंदर पर असर नहीं होता वैसी ही इतने दिनों के बाद हुई इस महफिल का नीरा मेहरा ( असली नाम, जैसा उन्होंने बताया) पर कोई असर नहीं हुआ.
जयुपर की नीरा की शादी उनकी अपनी मर्जी से पूरे विधि-विधान के साथ हुई थी. यह शादी परंपरा और आधुनिकता का बेहतरीन मिश्रण कही जा रही थी. क्योंकि इसमें पसंद का आधार एक दूसरे को अच्छे से जानना था और उसके बाद परिवार की संपूर्ण रजामंदी इसमें थी. दोनों का साथ कमाल का था.
यह फिल्म का वह हिस्सा है, जहां 'इंटरवेल' हो गया. उसके बाद इसमें दो प्यारे बच्चे आ गए. जिम्मेदारियां आ गईं. एमबीए नीरा को नौकरी छोड़नी पड़ी. क्योंकि बच्चों की परवरिश और उनके 'क्वालिटी 'टाइम का बड़ा सवाल था. इसलिए ससुराल और मायके के साथ उनके पति ने भी नौकरी से कुछ समय के लिए स्थाई छुटटी लेने का मन बनाया.
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देखते ही देखते आधुनिक नीरा कब एक 'परंपरागत' बहू', पत्नी और मां बन गईं, पता ही नहीं चला. शुरू में सबकुछ बहुत रोमांचक रहा. बच्चों का साथ बेहद लुभावना लग रहा था. लेकिन धीरे-धीरे जैसे बच्चे बड़े होते गए, उनकी जिंदगी में उदासी का आगमन होता गया. पति अपनी 'कॉर्पोरेट' नौकरी में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास समय के अलावा सब कुछ है. ठीक इसी तरह बच्चे भी अपनी दुनिया में गुम होने लगे. नीरा को पहली बार लगा उनका नौकरी छोड़ने का फैसला सही नहीं था. एक दिन उनके किसी पुराने दोस्त ने यूं ही नीरा से पूछा कि अगर तुम्हें 'टाइम मशीन' में बैठकर अतीत की यात्रा में जाने का मौका मिले तो आप क्या 'सुधार' करना चाहेंगी.?
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नीरा ने बिना एक पल गंवाए, कहा, 'मैं नौकरी नहीं छोड़ूंगी. मैं कैसे भी मैनेज करूंगी, लेकिन नौकरी से समझौता नहीं.' उस दोस्त ने कहा, नीरा, 'जिंदगी में कोई ऐसी तकनीक नहीं जो हमारी गलती/गलत निर्णय को ठीक कर सके. इसलिए अतीत के आंगन में झांकना बंद करिए और जिंदगी के सूत्र नए से पकड़ने की कोशिश करिए.
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उसका नीरा पर विशेष असर नहीं हुआ. जिंदगी कुछ उदासी, थोड़े चिड़चिड़ेपन के साथ जारी रही. बार-बार नीरा को लगता कि उसके 'त्याग' की परिवार को कद्र नहीं है. कोई नहीं तो कम से कम पति और बच्चों को तो यह अहसास होना ही चाहिए. ऐसा नहीं कि उन्हें अहसास नहीं होगा, लेकिन शायद वह अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त नहीं कर पा रहे थे.
इसी बीच इस महफिल का आयोजन हुआ, जिसमें कॉलेज के दोस्त मिले. एक दूसरे की कहानियां साझा की जा रही थीं और रास्ते सुझाए जा रहे थे. लेकिन नीरा के मन में बैठी उदासी गलने का नाम नहीं ले रही थी. नंबर लिए और दिए गए. एक दूसरे के संपर्क में रहने का वादा किया गया.
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ऐसे सवाल नीरा के अकेले नहीं है. यह संकट केवल उनका नहीं है. यह तो लाखों उन महिलाओं और युवतियों का है, जो किसी न किसी संकट से एक बार करियर की पटरी से उतर जाती हैं तो दोबारा करियर की ट्रेन पकड़नी असंभव नहीं तो बहुत मुश्किल हो जाती है. हम कल बात करेंगे कि कैसे नीरा को उदासी, असवाद से जिंदगी की नई उजास हासिल हुई.
शायद, यह हम सबकी जिंदगी को कोई दिशा देने वाली प्रेरणा साबित हो...
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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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