यह तय करना बहुत जरूरी है कि बच्चों, परिवार और दोस्तों को जब भी ऐसी आदतों से उलझा हुए देखें, जो उनके लिए नुकसानदायक हैं, तो सलाह देने से हिचकें नहीं. अगर आपको कड़वा कहना-सुनना पड़े तो उसके लिए भी तैयार रहें.
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शहरों में माचिस की तीलियों से बने घरों में मनुष्य का एक-दूसरे से रिश्ता 'नॉट रिचेबल ' हो गया है. एक-दूसरे से मिलने का सुख' सदियों' में मिलता है. जब सदियों में मिलते हैं, तो एक-दूसरे की तारीफों के बिना कैसे बात होगी. यह तो हुई एक-दूसरे के घरों की बात.
अब थोड़ी-सी बात घर की. उन घरों में जहां सारे कामकाजी हैं. बच्चे सहायकों के भरोसे हैं. इसलिए जब भी मिलते हैं, तो कोशिश यही होती है कि तनाव कम से कम हो. हालांकि ऐसा हो नहीं पाता. लेकिन कोशिश इसी बात की होती है. बच्चों के पास माता-पिता से संवाद के लिए बहुत थोड़ा समय है. इतना ही कम समय अभिभावकों के पास अपने बच्चों के लिए है. इस तरह समय का सूखा दोनों ओर से है.
अब इस 'सूखे' समय में ज्यादातर समय शिकायतों में ही गुजर जाता है. तब विचार आता है कि बाकी समय कौन कलह करे और जो कोई जो भी कर रहा है उसे उसके हाल पर छोड़ दें. इसका असर अब हमारे सामने घर के भीतर अपने लिए एक कोना तलाशने के रूप में सामने आ रहा है.
मेरे एक दोस्त ने पिछले दिनों बताया कि उनके तकरीबन दस बरस के दो बच्चों ने अपने कमरे के बाहर लिखा है, 'बड़ों का प्रवेश वर्जित, कमरे में अनुमति लेकर आएं'. बच्चों ने घर के भीतर अपना कोना पकड़ लिया है. वह अपनी दुनिया में व्यस्त हैं. जहां उनके अपने कार्टून हैं, ब्लू व्हेल और मोबाइल गेम हैं. इंटरनेट के साथ वह गहरे संवाद, संपर्क में हैं. खतरा यहीं से शुरू हो रहा है.
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परिवार बच्चों को इसलिए नहीं टोकता, क्योंकि उसके सदस्य अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए हैं. बच्चों को हमने गैजेट दे दिए हैं. इंटरनेट कनेक्शन दे दिए हैं. वह क्या देख रहे हैं, इस पर हमारा नियंत्रण लगभग न के बराबर है, क्योंकि जिन साइट्स पर पाबंदी लगाई जाती है, वह कुछ ही दिन में दूसरे नाम से उसी कंटेंट के साथ लौट आती है, जिस पर हमें आपत्ति थी.
अभिभावकों के पास उन दोनों ही चीजों की कमी है, जिससे बच्चों को बचाया जा सके. पहला समय और दूसरा तकनीकी जानकारियां. इन दिनों बच्चे तकनीक के निरंतर संपर्क में रहने के कारण अपने माता-पिता से चार कदम आगे चल रहे हैं. ऐसे में उनके हाथ में गैजेट देकर हम एक आत्मघाती काम ही कर रहे हैं.
गैजेट के इस्तेमाल पर बिल गेटस और स्टीव जॉब्स की बातें...
बिल गेट्स को कौन नहीं जानता. क्या उनकी बातें भी हमें तकनीक में उलझने से नहीं बचा सकतीं! दुनियाके सबसे रईस लोगों में शामिल और टेक्नोक्रेट गेट्स ने एक बातचीत में बताया था कि जब उनके बच्चे बड़े हो रहे थे तो वह भी मोबाइल फोन के लिए जिद किया करते थे, लेकिन वह और उनकी पत्नी मेलिंडा ने बच्चों की इस जिद को तब तक पूरा नहीं किया जब तक बच्चे 14 साल के नहीं हो गए. गेट्स ने कहा, ‘हमने अपने बच्चों को तब भी फोन नहीं दिया जब वह शिकायत करते थे कि उनकी उम्र के सभी बच्चों के पास स्मार्टफोन हैं'.
गेट्स ने कहा था,‘जब हम खाना खाते हैं तो उस वक्त हमारे टेबल पर कोई भी स्मार्टफोन नहीं होना चाहिए'.कितने लोगों को गेट्स की बात याद है. जबकि उनकी कही बातों से इंटरनेट, दिमाग भरा पड़ा है.
एप्पल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स भी टेक्नॉलॉजी का सही तरह से इस्तेमाल करने के पक्ष में रहते थे. एक बार जॉब्स से पूछा गया कि अगर उनके बच्चे लॉन्च के तुरंत बाद आपके अपने पसंदीदा आई-पैड की मांग करें तो? इस पर जॉब्स का जवाब था कि उनके बच्चों ने कभी इसका इस्तेमाल नहीं किया. उन्होंने कहा, ‘हमने घर पर बच्चों के लिए तकनीक का इस्तेमाल बेहद सीमित किया हुआ है.
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जबकि भारतीय इस बारे में अनाड़ी ही साबित हुए हैं. हमारे घरों में इन दिनों स्मार्टफोन का अंबार लग रहा है. प्रति व्यक्ति दो से तीन मोबाइल हो गए हैं. घर, ऑफिस के लिए अलग बच्चों के लिए अलग मोबाइल की व्यवस्था अब पुरानी होने लगी है. हर बात की खबर. छोटी से छोटी सूचना के लिए हम चौबीस घंटे परेशान हैं.
माता-पिता बच्चों से हर मिनट का हिसाब चाहते हैं, जबकि अपने बारे में थोड़ा सुकून चाहते हैं. अविश्वास, हर वक्त आशंका से घिरे हमारे को लगता है कि मोबाइल और गैजेट बच्चे का ख्याल रखने के लिए हैं, जबकि मामला एकदम उल्टा हो गया है. बच्चे हमसे दूर हो गए हैं, लेकिन गैजेट्स से ऐसे चिपके हैं कि अब उनसे दूर होना 'दूर' की बात लगती है. विदेशों से होते हुए अब जानलेवा गेम का खतरा हमारे घरों में दाखिल हो गया है.
इसलिए, यह तय करना बहुत जरूरी है कि बच्चों, परिवार और दोस्तों को जब भी ऐसी आदतों से उलझा हुए देखें, जो उनके लिए नुकसानदायक हैं, तो सलाह देने से हिचकें नहीं. अगर आपको कड़वा कहना-सुनना पड़े तो उसके लिए भी तैयार रहें. अगर अपनों से प्रेम है, तो उनके लिए समय रहते सोचिए और कदम उठाइए.
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इसलिए बच्चों, परिवार को समय दीजिए. उनके साथ रहिए. उनके साथ बात करिए. स्मार्टफोन और इंटरनेट हमारे लिए हैं. हम उनके लिए नहीं हैं. इस बात को हम सब जानते हैं, लेकिन इसे जीवन में उतारने वाले लोग बहुत ही कम हैं. अगर आप इनमें से किसी को जानते हैं, तो हमसे साझा करें. हम डियर जिंदगी से उनके संदेश को दूसरों तक पहुंचाएंगे.
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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