भ्रष्टाचार पर जोरदार प्रहार करने का मोदी सरकार के पास ऐतिहासिक मौका
Advertisement

भ्रष्टाचार पर जोरदार प्रहार करने का मोदी सरकार के पास ऐतिहासिक मौका

लोकतांत्रिक राजनीति में वही कार्रवाई सफल हो सकती है, जिसके पीछे जनता का समर्थन हो. राजनीति विज्ञान में यह माना भी जाता है कि लोकतंत्र की सफलता समाज की राजनीतिक संस्कृति पर निर्भर करती है.

भ्रष्टाचार पर जोरदार प्रहार करने का मोदी सरकार के पास ऐतिहासिक मौका

हीरा कारोबारी नीरव मोदी का घोटाला उजागर होने पर मोदी सरकार के बारे में यही कहा जा रहा था कि उसने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए कुछ खास नहीं किया और भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे लोग खुलेआम घूम रहे हैं. ऐसा मोदी विरोधी ही नहीं, वे भी कहने लगे थे, जो मोदी के प्रति कभी समर्थन या सहानुभूति का भाव रखते थे. लेकिन जब आईएनएक्स मीडिया मामले में पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम गिरफ्तार किए गए, तो कल तक भ्रष्टाचार पर मोदी सरकार की निष्क्रियता को लेकर हमलावर लोगों के स्वर बदल गए. वहीं जो हर बात में उसकी कमी खोजते रहते थे, वे अब ये कहने लगे हैं कि मोदी सरकार राजनीतिक बदले की भावना से काम कर रही है. क्या इस तरह के तर्क को जनता स्वीकार करेगी?

अभी हाल में जिस भ्रष्टाचार को लेकर मोदी सरकार को घेरा जा रहा था, अब अगर उसी भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार कार्रवाई कर रही है, तो इसकी आलोचना करने वालों को जनता खारिज कर देगी. वह यही कहेगी कि यह मोदी सरकार के अंधविरोध का नतीजा है. भ्रष्टाचार पर मोदी सरकार को घेरने वाले भूल गए कि नरेन्द्र मोदी या उनके किसी मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे हैं. कोई भ्रष्टाचार था, तो वह संस्थागत था, जिसे रोक पाने में सरकार बेशक नाकाम रही है. यह कह पाना कठिन है कि सरकार को इसका अहसास नहीं है या उसकी कोई मजबूरी है, जिसके चलते वह इनके खिलाफ सीधे मोर्चा खोलना नहीं चाहती. लेकिन इस बात के खतरे मौजूद हैं कि ऐसे तत्व मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट होकर खतरा बन सकते हैं और जनता उसे समय पर न समझ पाए. अगर ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की आवाज जनता के बीच से उठने लगे, तो सरकार का काम आसान हो जाता है, क्योंकि जनता ऐसे लोगों को खुद ही निपटा देगी. अब ऐसा होता दिखने लगा है.

यह भी पढ़ें- नीतीश सरकार के गले की फांस बनती शराबबंदी

लोकतांत्रिक राजनीति में वही कार्रवाई सफल हो सकती है, जिसके पीछे जनता का समर्थन हो. राजनीति विज्ञान में यह माना भी जाता है कि लोकतंत्र की सफलता समाज की राजनीतिक संस्कृति पर निर्भर करती है. यानी जनता राजनीतिक दृष्टि से जितना जागरूक होगी, लोकतंत्र उतना ही अधिक सफल होगा. नीरव मोदी कांड ने जनता को भ्रष्टाचार के प्रति जागरूक करने का काम बखूबी किया है.

जाने-अनजाने इसने मोदी सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने का एक सुअवसर प्रदान कर दिया है. अगर इसके बावजूद सरकार इसके खिलाफ कारगर कार्रवाई में कोई हीला-हवाली करती है, तो यह राजनीतिक दृष्टि से उसके लिए घातक हो सकता हे. जनता ऐसे भ्रष्ट तत्वों को जेल जाते और उनकी संपत्ति जब्त होते देखना चाहती है. पहले ही सुप्रीम कोर्ट सांसदों और विधायकों से संबंधित आपराधिक मामलों को निपटाने के लिए 12 त्वरित अदालतें गठित करने का आदेश दे चुका है. ये अदालतें इस साल काम करना शुरू कर देंगी. इसकी जद में पक्ष-विपक्ष कोई भी सांसद या विधायक हो सकता है. ऐसी स्थिति में विपक्ष को यह कहने का मौका नहीं मिलेगा कि सरकार राजनीतिक बदले की भावना से काम कर रही है, क्योंकि यह सब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत होगा. अगर इसमें भाजपा का कोई सांसद या विधायक फंसता है, तो इससे पीएम मोदी की निजी छवि पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. उल्टे भाजपा इसे यह कहकर भुना सकती है कि हमारे राज में सबके खिलाफ भ्रष्टाचार पर कार्रवाई हुई. केंद्र सरकार की छवि तब खराब होगी, जब मोदी के तहत काम करने वाले मंत्री ऐसे किसी काम में फंसते हैं, जो इस सरकार के दौरान किया गया हो.

यह भी पढ़ें- चीन की गोद में मालदीव, भारत के लिए मुश्किल चुनौती

भ्रष्टाचार एक ऐसा मसला है, अगर इस पर ईमानदारी से कार्रवाई आगे बढ़ी, तो पीएम मोदी के बहुत से राजनीतिक विरोधी यूं ही ध्वस्त हो जाएंगे और मोदी की आवाज और मजबूत हो जाएगी. 2014 के लोकसभा चुनाव में जनता ने उन्हें जिन कारणों को लेकर समर्थन दिया था, उसमें एक बड़ा मुद्दा भ्रष्टाचार था. यह सबको पता है कि मोदी की पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार के दौरान बहुत से घोटाले हुए थे और इन घोटालों को लेकर जनता में रोष था. ऐसे में अगर कोई यह सोचता है कि भ्रष्टाचार चुनाव का बड़ा मुद्दा नहीं हो सकता, तो वह भ्रम में है.चुनावी वर्ष में की जाने वाली कार्रवाई से भाजपा को राजनीतिक फायदा होगा, क्योंकि जनता को यह आसानी से याद रहेगा, अन्यथा ऐसी कार्रवाई पहले करने पर उसे भूल जाने का खतरा भी है.

यह भी पढ़ें- मध्यप्रदेश उपचुनाव के नतीजों से उभरे संकेत

लोकतांत्रिक राजनीति में पार्टियां हमेशा वोट को ध्यान में रखकर ही काम करती हैं. अगर भ्रष्टाचार पर कार्रवाई से भाजपा को फायदा होता है, तो जनता को इसमें ऐतराज नहीं होगा. गरीबी में जी रही जनता ऐसे तत्वों को जेल मे देखना चाहती है, ताकि उसकी वर्गीय ईर्ष्या को तुष्टि मिल सके. लेकिन सरकार को यह ध्यान रखना होगा कि यह कार्रवाई दिखावटी न रह जाए. वैसे भी भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार का अब तक का रिकार्ड बहुत संतोषजनक नहीं कहा जा सकता. आरोपों में घिरे विजय माल्या और नीरव मोदी का विदेश भागने का मामला हो या टूजी घोटाले के आरोपियों को सीबीआई कोर्ट द्वारा मुक्त कर दिए जाने का फैसला, सरकार की प्रतिबद्धता पर कुछ सवाल तो खड़े करता ही है.

भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने वाली वैश्विक संस्था ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल की वर्ष 2017 की रिपोर्ट भी भ्रष्टाचार में सुधार की पुष्टि नहीं करती. आम जनता में यह धारणा बलवती होती जा रही है कि सरकार भ्रष्टाचार में लिप्त बड़े-बड़े नेताओं और कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई करने से कतरा रही है. इस लिहाज से यह मोदी सरकार के लिए एक चुनौती है, तो इतिहास रचने का एक अवसर भी है...

(लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

Trending news