Naag ki maut: कर्नाटक राज्य में एक ऐसा गांव है जहां सांप के मरने पर मृत्युभोज देना पड़ता है. यहां तक कि सालेथुर नाम के इस गांव में सांप की मौत पर मृत्युभोज देने की इस परंपरा को ईसाई और मुस्लिम समुदाय के लोग भी निभाते हैं.
Trending Photos
Saanp Marna: भारत अलग धर्म, पंथ और संप्रदायों का देश है. यहां हर थोड़ी दूरी पर परंपराओं और रीति-रिवाजों में खासा अनूठापन भी देखने को मिलता है. आज हम कर्नाटक के मंगलूरु से करीब 20 किलोमीटर दूर बसे सालेथुर गांव की बात करते हैं. जहां की भूत कोला पूजा बेहद अनूठी होती है. वैसे तो इस गांव की आबादी बमुश्किल 1000 लोगों की है लेकिन भूत कोला पूजा में शामिल होने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. खासतौर पर इस गांव में बसे परिवार के सदस्य विदेश में भी हों तो वह पूजा अटेंड करने के लिए जरूर आते हैं. माना जाता है कि ऐसा ना करने पर परिवार में अपशकुन हो सकता है.
भगवान विष्णु के वराह अवतार की होती है पूजा
इस मौके पर भगवान विष्णु के वराह अवतार की पूजा होती है, जिसे स्थानीय भाषा में पंजुरली कहते हैं. पंजुरली का मतलब होता है युवा वराह. यहां रंग-बिरंगी हाथ से बनाई गई पोशाक पहनकर परिवार का कोई व्यक्ति नृत्य करता है. भूत कोला पूजा में यह नृत्य करने वाला शख्स कई सिद्धियां लेकर भूत कोला करने की पात्रता ले पाता है. पूरी रात वह इस तरह नृत्य करता है. मान्यता है कि उसके अंदर कुलदेवता की आत्मा आ जाती है. वह मुंह में आग और हाथ में तलवार-मशाल लेकर भूत कोला करता है. इस दौरान उसके द्वारा दिए गए निर्देश व्यक्ति को मानने ही पड़ते हैं.
मरा हुआ सांप देखने पर देना पड़ता है मृत्युभोज
सालेथुर गांव का केवल भूत कोला ही नहीं बल्कि कई परंपराएं भी बेहद अजीब हैं. यहां के लोग अपनी मां के परिवार के ही रीति-रिवाज अपनाते हैं. यहां तक कि उसे मां के परिवार से प्रॉपर्टी मिलती है. पिता की मौत पर बच्चे को सूतक नहीं लगती है, इतना ही नहीं उसका अंतिम संस्कार भी पत्नी के परिवार के सदस्य ही करते हैं. लेकिन इस गांव का कोई व्यक्ति यदि मरा हुआ सांप देख ले तो उसे मृत्युभोज देना पड़ता है. दरअसल, यहां नागपंचमी का पर्व बहुत प्रमुखता से मनाया जाता है. इस पूजा में भी परिवार के हर सदस्य का सम्मिलित होना जरूरी होता है. हर कुटुंब का अपना नाग पूजास्थल भी होता है. यदि कोई व्यक्ति मरा हुआ नाग देख ले तो उसे नाग का विधि-विधान से अंतिम संस्कार करना पड़ता है. 13 दिन का सूतक लगता है और उसे मृत्युभोज भी देना पड़ता है. यहां तक कि इस परंपरा का पालन यहां के हिंदू ही नहीं बल्कि मुस्लिम और ईसाई लोग भी करते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)