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नई दिल्ली: डीएनए (DNA) मेंअब हम आपको बताएंगे कि दुनिया में भर में गाड़ियों का निर्माण करने वाले इंजीनियर्स (Engineers) के लिए कैसे एक छोटी सी चिप (CHIP) सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है. अगर आप भी भविष्य में नई गाड़ी खरीदने की योजना बना रहे हैं तो ये खबर आपके काम की हो सकती है. दरअसल पूरी दुनिया में सेमी कंडक्टर चिप्स (Semi Conducter Chips) की भारी कमी हो गई है और इसलिए नई गाड़ी खरीदने वालों को गाड़ी की डिलिवरी के लिए 4 महीने से लेकर एक साल तक का इंतजार करना पड़ रहा है.
ये स्थिति कोविड-19 (Covid 19) की वजह से पैदा हुई है, कोरोना वायरस की वजह एक साल तक पूरी दुनिया में सेमी कंडक्टर Chips का उत्पादन बहुत घट गया था और अब भी इसकी आपूर्ति मांग के मुकाबले बहुत कम है. आजकल दुनिया में जितनी भी गाड़ियां बनती हैं उनकी पावर स्टेयरिंग (Power steering), ब्रेक सेंसर (Brake Sensor), इंटरटेनमेंट सिस्टम (Entertainment System), एयर बैग्स (Air Bags) और यहां तक कि पार्किंग कैमरों में भी सेमी कंडक्टर चिप का ही इस्तेमाल होता है.
आम तौर पर एक गाड़ी में एक हजार से ज्यादा सेमी कंडक्टर चिप्स लगी होती है. ये Chips कंप्यूटर प्रोग्रामिंग पर आधारित हैं और आपकी गाड़ी के डाटा को भी प्रॉसेस करती है. सेमी कंडक्टर चिप्स के बिना आधुनिक गाड़ियों का निर्माण लगभग असंभव है. अब पूरी दुनिया में इनका प्रोडक्शन मांग के मुकाबले बहुत कम हो रहा है और इसी वजह से कंपनियां ग्राहकों की मांग के मुताबिक गाड़ियों का निर्माण नहीं कर पा रहीं.
सबसे बड़ी परेशानी ये है कि पूरी दुनिया में सिर्फ गिनी चुनी कंपनियों के पास ही सेमी कंडक्टर चिप्स बनाने की क्षमता है. इन कंपनियों ने अपना प्रोडक्शन बढ़ाया भी है, लेकिन फिर भी साल 2023 से पहले तक इसकी कमी यानी शॉर्टेज बनी रहेगी. भारत की कोई भी कंपनी सेमी कंडक्टर चिप्स और भारत इस मामले में पूरी तरह से आयात पर निर्भर है, भारत की कार निर्माता कंपनियों को इन Chips की सबसे ज्यादा सप्लाई मलेशिया से होती है. जहां इस समय कोरोना की दूसरी लहर की वजह से प्रोडक्शन बाधित है. इसलिए अगर आप आने वाले त्योहारों के मौके पर नई गाड़ी लेने की योजना बना रहे हैं तो हो सकता है कि आपको समय पर इसकी डिलिवरी ना मिल पाएं.
आपको बता दें कि ऑटो इंडस्ट्री (Auto Industry) से जुड़ी दूसरी बड़ी खबर ये कि केंद्र ने अब वाहन उद्योग के लिए 26 हजार करोड़ के प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (Production-linked incentive) यानी PLI योजना को मंजूरी दे दी है. इंसेटिव का मतलब होता है प्रोत्साहन और इस योजना के तहत उन कंपनियों को प्रोत्साहन दिया जाएगा जो देश में अलग अलग ऑटो पार्ट्स (Auto Parts) का निर्माण करेगी. सरकार ने जो रकम जारी की है, उससे कंपनियों को भारत में ऑटो पार्ट्स की मैन्युफेक्टरिंग यूनिट्स ( Manufacturing Units) लगाने में आसानी होगी, ऑटो सेक्टर (Auto Sector) को मिलने वाले PLI की वजह से ना सिर्फ भारत में साढ़े सात लाख लोगों को रोजगार मिलेगा बल्कि गाड़ियों में लगने वाले अलग-अलग पार्ट्स के निर्यात में भी कमी आएगी और भारत इस मामले में आत्म निर्भर बन पाएगा.
इस योजना के तहत कंपनियां गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाले इलेक्ट्रॉनिक पावर स्टेयरिंग सिस्टम (Electronic Power Steering System), सेंसर्स, सन रूफ (Sunroof), सुपर कैपेसिटर (Super-Capacitors), एडैप्टिव फ्रंट लाइटनिंग (Adaptive front lighting), समेत कई तरह के पार्ट्स और मॉनिटरिंग सिस्टम (Monitoring System) का निर्माण भारत में ही करेंगी. इस योजना से सबसे ज्यादा फायदा उन कंपनियों को होगा जो इलेक्ट्रिक (Electric) और हाइड्रोजन ( Hydrogen) से चलने वाली गाड़ियों का निर्माण करेंगी.
कार्बन इमीशन (Carbon Emmision) को कम करने के लिए भारत सरकार साल 2030 तक पेट्रोल और डीजल गाड़ियों का उत्पादन बंद करना चाहती है. साल 2030 के बाद भारत में सिर्फ इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (Electric Vehicles) गाड़ियों और हाइड्रोजन (Hydrogen) से चलने वाली गाडियों की ही बिक्री की इजाजत होगी. इलेक्ट्रिक गाड़ियां जहां बैटरी (Battery) से चलती हैं. वहीं हाइड्रोजन फ्यूल से चलने वाली गाड़ियां भी ज़हरीला धुआं नहीं छोड़ती. इन गाड़ियों से कार्बन डॉइ ऑक्साइड (Carbon DiOxide), सल्फर (Sulfur) और नाइट्रोजन (Nitrogen) जैसी जहरीली गैस (Gases) की बजाय सिर्फ पानी निकलता है.
हालांकि Electric और Hydrogen से चलने वाली गाडियों को लेकर जो नई नीति बनाई गई है, उसका एक मकसद तेल पर निर्भरता को कम करना है. इसे आप लेबनान के एक उदाहरण से समझ सकते हैं. लेबनान में इस समय पेट्रोल (Petrol) और डीजल भरवाने के लिए दस-दस किलोमीटर लंबी लाइनें लगी हैं. लेबनान का ये हाल इसलिए हुआ क्योंकि वो तेल के लिए पूरी तरह दूसरे देशों पर निर्भर था. और वहां राजनीतिक अस्थिरता और बाहरी देशों के हस्तक्षेप से लेबनान पर कर्ज बढ़ रहा था. लेकिन किसी ने भी इसे गंभीरता से नहीं लिया.
लेबनान के लोगों ने भी कभी इसका विरोध नहीं किया. जब किसी देश में कम लोकतंत्र होता है तो उस देश की हालत ऐसी ही हो जाती है. लेबनान पर 6 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज है, जो उसकी GDP से 170 प्रतिशत अधिक है. 69 लाख की कुल आबादी में से 36 लाख लोगों को तुरंत मदद की जरूरत है. 17 लाख लोग भुखमरी का सामना कर रहे हैं. लेबनान की सरकार को इस संकट से उबरने के लिए 18 हजार करोड़ की जरूरत है. लेबनान में वैसे तो लोकतांत्रिक सरकार है, लेकिन ये देश हिजबुल्लाह नाम के आतंकवादी संगठन से संघर्ष कर रहा है और यहां पिछले कई सालों में स्थिर सरकार नहीं आई है. कम लोकतंत्र की कीमत कितनी महंगी पड़ सकती है, ये आप लेबनान के हालात से समझ सकते हैं.