Mallikarjuna Jyotirlinga Temple1: भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग माने गए हैं, जिनका वर्णन शिवपुराण में भी किया गया है. 12 ज्योतिर्लिंग में आंध्र प्रदेश के मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को दूसरा स्थान पर माना गया है. आइए जानते हैं मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की पौराणिक कथा, इतिहास और पूजा के महत्व के बारे में.
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Mallikarjuna Jyotirlinga: हिंदू धर्म और पुराणों में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व है, मान्यता है कि भोलेनाथ से किसी भी तरह की मनोकामना मांगने से वो उन्हें पूरा करते हैं. भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग माने गए हैं, जिनका वर्णन शिवपुराण में भी किया गया है. 12 ज्योतिर्लिंग में आंध्र प्रदेश के मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग को दूसरा स्थान पर माना गया है, यह ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा नाम के जिले में स्थित है, भगवान शिव का यह ज्योतिर्लिंग कैलाश यानी उनके निवास स्थान के रूप में भी पूजा जाता है. यहां भगवान शिव और माता पार्वती के संयुक्त रूप में दर्शन प्राप्त होते हैं, जिससे हर कष्टों का निवारण होता है, आइए इस ज्योतिर्लिंग से जुड़े पौराणिक इतिहास के बारे में और विस्तार से जानते हैं.
पौराणिक कथा के अनुसार
शिवपुराण और पौराणिक कथा के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग का नाम दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है मल्लिका और अर्जुन. इसमें मल्लिका का अर्थ माता पार्वती और अर्जुन का तात्पर्य भगवान शिव से है. पौराणिक कथा और शास्त्रों के अनुसार इस मंदिर का संबंध भगवान शिव और माता पार्वती और उनके दोनों पुत्रों कार्तिकेय और गणेशजी से है. वेद-पुराणों की मानें तो एक बार गणेश जी और कार्तिकेय जी इस बात पर झगड़ रहे थे कि कौन पहले विवाह करेगा. इस बात की सुलह करने के लिए निकालने के लिए शिव जी ने कहा कि दोनों भाईयों में से जो भी पहले पृथ्वी का चक्कर पूरा करेगा, उसका विवाह सबसे पहले कराया जाएगा. भगवान शिव की यह बात सुनते ही कार्तिकेय जी पूरी पृथ्वी का चक्कर लगाने चले गए, लेकिन भगवान गणेश से अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए अपने माता-पिता की परिक्रमा की.
कार्तिकेय को मनाने पहुंचे भगवान शिव और माता पार्वती
जब गणेश भगवान अपनी सूझबूझ से विजयी हो गए तो कार्तिकेय जी को इस बात पर गुस्सा आ गए और वे अपने माता-पिता से रुष्ट हो गए क्रोंच पर्वत चले गए. इस घटना को देख रहें सभी देवी-देवताओं से उनसे वापस कैलाश लौटने का आग्रह किया, लेकिन कार्तिकेय जी ने किसी की बात नहीं मानी. पुत्र वियोग में माता पार्वती और भगवान शिव दुखी होकर जब स्वयं उन्हें मनाने क्रोंच पर्वत पहुंचे, तो कार्तिकेय जी और दूर चले गए. अंत में पुत्र के दर्शन के लिए भगवान शिव ने ज्योति रूप धारण किया और माता पार्वती भी इसी ज्योति में विराजमान हो गईं. तभी से आंध्र प्रदेश में स्थित इस ज्योतिर्लिंग को मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाने लगा.
महाशिवरात्रि पर है पूजा-पाठ का विशेष महत्व
मान्यता है कि महाशिवरात्रि के दिन यहां पूजा-पाठ करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है और घर में प्रेम और विश्वास बना रहता है. यही वजह है कि हर साल महाशिवरात्रि के दिन यहां कई भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं.
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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)