Trending Photos
अपने खिसकते और सिसकते जनाधार के बीच देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ने रविवार (28 दिसंबर 2014) को अपना 130वां स्थापना दिवस मनाया। खास बात यह है कि आज भी रविवार है और 28 दिसंबर 1885 को जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई थी, तब भी रविवार का ही दिन था। हालांकि इसकी स्थापना के पीछे ब्रिटिश प्रशासक ए.ओ. ह्यूम का मकसद ब्रिटिश सत्ता का राजनीतिक हित साधने का था, लेकिन ह्यूम इसमें नाकाम रहे और यह आजादी के आंदोलन का हिस्सा बन गया। आजादी मिलने के बाद महात्मा गांधी ने कांग्रेस को खत्म करने का प्रस्ताव भी रखा था, लेकिन इस पर आम सहमति नहीं बन पायी। समय के साथ इसका रूप और रंग बदला। नहीं बदला तो इसके साथ जुड़ा गांधी शब्द। 130 साल के कांग्रेस में आज भी गांधी और कांग्रेस एक दूसरे का पर्याय बना हुआ है।
आज अगर कांग्रेस नेतृत्व की बात करें तो सोनिया गांधी देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाली पहली महिला हैं। सोनिया गांधी ने नेहरू-गांधी परिवार के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। 130 साल की इस पार्टी में करीब 41 साल तक नेहरू-गांधी परिवार के लोग ही अध्यक्ष रहे। नेहरू परिवार से सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू अमृतसर में वर्ष 1919 में अध्यक्ष चुने गए। वह 1920 तक अध्यक्ष रहे। मोतीलाल वर्ष 1929 में फिर से अध्यक्ष चुने गए और करीब एक साल तक अपने पद पर रहे।
मोतीलाल के बाद उनके बेटे जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। नेहरू करीब छह बार 1930, 1936, 1937, 1951, 1953 और 1954 में कांग्रेस अध्यक्ष बने। पंडित नेहरू के बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी दो बार अध्यक्ष बनी। इंदिरा वर्ष 1959 में पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष बनीं और 1960 तक रहीं। वह दोबारा वर्ष 1978 में कांग्रेस अध्यक्ष चुनी गर्इं और अगले छह साल तक कांग्रेस अध्यक्ष रहीं। इंदिरा के बाद उनके बेटे राजीव गांधी 1984 के मुंबई अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और वह 1991 तक इस पद पर रहे।
राजीव गांधी के निधन के बाद नेहरू-गांधी परिवार ने काफी समय तक कांग्रेस से दूरी बनाए रखी। कांग्रेस पतन की ओर बढ़ने लगी। और फिर वर्ष 1998 में राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने राजनीति में कदम रखा। वह पार्टी की निर्विरोध अध्यक्ष चुनीं गई। तब से लेकर आज तक 16 साल से वह अध्यक्ष बनी हुई हैं।
पिछले साल यानी 2013 में कांग्रेस का स्थापना दिवस समारोह उसी दिन था जिस दिन आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल का दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण था। कांग्रेस 15 साल बाद दिल्ली की सत्ता से बाहर हो गई थी। उसके बाद इस साल लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी 2009 की 206 सीटों से घटकर 44 सीटों पर सिमट गई। हालत ऐसी हो गई कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का पद भी नहीं मिला। आपातकाल में भी कांग्रेस का प्रदर्शन 2014 से कहीं बेहतर था। पार्टी का यह अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था। इसके बाद महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भी उसे पराजय का सामना करना पड़ा, जहां वह सत्ता में थी। झारखंड और जम्मू-कश्मीर में भी निराशाजनक प्रदर्शन रहा।
आज कांग्रेस भले ही अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही हो, लेकिन देश को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद कराने में इस पार्टी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। आजादी के समय और उसके बाद तक लोग अपने आपको कांग्रेस से जुड़ा बताने पर गर्व महसूस करते थे। कांग्रेस एक पार्टी के साथ एक विचारधारा थी। भारत में राजनीतिक आंदोलन के शुरूआती परंपरा की नींव आजादी से पूर्व रखी गई थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इसमें खास योगदान है। आजादी के बाद के करीब 67 सालों में देश में सबसे ज्यादा इसी राजनीतिक दल की सरकार रही है। देश का संविधान बनने से लेकर देश की हर व्यवस्था में कांग्रेस की छाप दिखती है। देश के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण नेता चाहे वे आजादी के आंदोलन से जुडे हों या फिर आजादी के बाद, सभी की राजनीतिक जड़ें कांग्रेस से जुड़ी हुई थीं।
जवाहरलाल नेहरु, महात्मा गांधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल हों या फिर सुभाष चन्द्र बोस और भी कई बड़े नामों ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत इसी कांग्रेस से की। लेकिन सबसे बड़ी बात यह कि देश की इस सबसे पुरानी पार्टी की स्थापना का श्रेय किसी हिंदुस्तानी को नहीं जाता है। कांग्रेस का गठन आजादी से 62 साल पहले 28 दिसंबर 1885 को किया गया था। 'इटावा के हजार साल' पुस्तक के अनुसार, तत्कालीन कलेक्टर ए.ओ. ह्यूम ने इटावा में 30 मई 1857 को राजभक्त जमीदारों की अध्यक्षता में ठाकुरों की एक स्थानीय रक्षक सेना बनाई थी। इस सेना का मकसद इटावा में शांति स्थापित करना था। इस सेना की सफलता को देखते हुए 28 दिसंबर 1885 को तत्कालीन बंबई में ब्रिटिश प्रशासक ह्यूम ने कांग्रेस की नींव रखी।
हालांकि ह्यूम के दिमाग में कांग्रेस के गठन की भूमिका अंग्रेज सरकार के लिए एक सेफ्टीवॉल्व की तरह थी। ह्यूम का ऐसा मानना था कि वफादार भारतीयों की एक राजनीतिक संस्था के रूप में कांग्रेस के गठन से भारत में 1857 जैसे भीषण जन विस्फोट के दोहराव से बचा जा सकता है। लेकिन सियासी मंजर ने कुछ यूं करवट लिया कि यह पार्टी आजादी के आंदोलन का प्रणेता बन गया। स्वतंत्रता आंदोलन के तमाम गरम और नरम दल के नेता कांग्रेस से जुड़े और 1947 में देश को आजादी दिलाकर कांग्रेस सही मायनों में राष्ट्रवादी पार्टी बनी।
मुंबई में कांग्रेस का पहला अधिवेशन हुआ था। पार्टी की अध्यक्षता करने का पहला मौका कलकत्ता हाईकोर्ट के बैरिस्टर व्योमेश चन्द्र बनर्जी को मिला। यह बात और है कि इस पार्टी की नींव एक रिटायर्ड अंग्रेज ऑफिसर ने रखी थी। कांग्रेस पार्टी के जन्मदाता रिटायर्ड अंग्रेज अफसर एओ ह्यूम (एलन आक्टेवियन ह्यूम) रहे। कहा यह भी जाता है कि तत्कालीन वायसराय लार्ड डफरिन (1884-1888) ने पार्टी की स्थापना का समर्थन किया था। हालांकि ह्यूम को पार्टी गठन के कई सालों बाद तक भी पार्टी के संस्थापक के नाम से वंचित रहना पड़ा। 1912 में उनकी मृत्यु के पश्चात कांग्रेस ने यह घोषित किया कि एओ ह्यूम ही इस पार्टी के संस्थापक हैं। कांग्रेस पार्टी के गठन के संदर्भ में गोपाल कृष्ण गोखले ने लिखा है कि एओ ह्यूम के सिवा कोई भी व्यक्ति कांग्रेस का गठन नहीं कर सकता था।
बहरहाल, देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस संक्रमण काल के दौर से गुजर रही है। जिन हाथों में कांग्रेस जैसी ऐतिहासिक पार्टी की नेतृत्व है उन्हें भी देश की खातिर इस पार्टी की अहमियत को समझना होगा। कांग्रेस के वर्तमान उपाध्यक्ष राहुल गांधी के बारे में खबर है कि पार्टी के 130वें स्थापना दिवस पर आयोजित समारोह में वो नहीं पहुंचे। यह एक गंभीर विषय है। अगर आप इस विरासत को नहीं संभाल पा रहे हैं तो इसे अन्य हाथों में सौंपिए। परिवर्तन प्रकृति का नियम है और फलदायी भी। हालांकि 130 साल की राजनीतिक विरासत को बचाकर रखना सिर्फ कांग्रेस के सिपहसालारों का ही काम नहीं है। देश के 125 करोड़ लोगों की भी ये जिम्मेदारी बनती है कि 1947 में मिली आजादी के बाद जिस भारतीय लोकतंत्र की स्थापना का बीड़ा उठाया गया उसे बनाए रखने के लिए कांग्रेस पार्टी की भूमिका को बनाए रखना जरूरी है, सिर्फ सत्ता के लिए नहीं, सत्ताधारी पार्टी निरंकुश और तानाशाह न बने इसके लिए मजबूत विपक्ष की भूमिका के लिए ही सही।