दिल्‍ली में बीजेपी का सबसे बड़ा दांव
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दिल्‍ली में बीजेपी का सबसे बड़ा दांव

देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी और अन्ना हजारे की सहयोगी रह चुकीं किरण बेदी के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद दिल्‍ली के सिंहासन का जंग काफी दिलचस्‍प हो गया है। दिल्‍ली में कुछ दिनों के बाद होने जा रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बीजेपी की यह रणनीति मास्‍टर स्‍ट्रोक से कम नहीं है।

देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी और अन्ना हजारे की सहयोगी रह चुकीं किरण बेदी के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद दिल्‍ली के सिंहासन का जंग काफी दिलचस्‍प हो गया है। दिल्‍ली में कुछ दिनों के बाद होने जा रहे विधानसभा चुनावों के मद्देनजर बीजेपी की यह रणनीति मास्‍टर स्‍ट्रोक से कम नहीं है। दिल्‍ली की मौजूदा राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए इसे बीजेपी का सबसे बड़ा दांव कहा जा रहा है। दिल्‍ली बीजेपी की इस 'नई किरण' से पार्टी को कितना लाभ होगा, यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा लेकिन एक बात तो तय है कि बीजेपी ने राष्‍ट्रीय राजधानी में चुनावी मोर्चे पर एक कद्दावर चेहरा ढूंढ लिया है। यद्यपि किरण बेदी अब तक राजनीति से दूर थीं, लेकिन एक ईमानदार और सख्‍त प्रशासक की छवि होने के चलते दिल्‍लीवासियों का भरोसा उन पर जरूर होगा। लोगों के इसी भरोसे को देखते हुए बीजेपी ने केजरीवाल के खिलाफ एक दमदार चेहरे को उतारने का पूरा मन बना लिया है। दिल्‍ली चुनाव को लेकर अब तक उठाए गए कदमों से यह लगभग साफ है कि बीजेपी किरण बेदी को पार्टी का मुख्‍य चेहरा बनाएगी और मुख्‍यमंत्री उम्मीदवार बना सकती है। अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार के खिलाफ और जनलोकपाल आंदोलन में बेदी सक्रिय भूमिका निभाई और आखिरकार उन्होंने बीजेपी की सदस्यता लेकर राजनीति में कदम रख दिया। पार्टी के इस कदम को चुनाव में केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी को घेरने के रूप में देखा जा रहा है।

करीब साल भर से इस बात की चर्चा चल रही थी कि किरण बेदी बीजेपी में शामिल होंगी। उन्‍होंने बीते महीनों में पार्टी और नरेंद्र मोदी की सराहना कर इस बात के संकेत भी दिए थे। संभवत: बीजेपी उचित मौके के इंतजार में थी और अब ऐसे समय में उन्‍हें पार्टी में लाया गया जब उनकी सख्‍त जरूरत थी। चूंकि बीजेपी यह भलीभांति मान रही है कि दिल्‍ली चुनाव में उसका मुख्‍य मुकाबला आम आदमी पार्टी से ही होगा। कांग्रेस पिछले चुनाव में हाशिये पर चली गई थी और इस बार भी उसके प्रति जन रुझान कुछ ज्‍यादा नहीं है। ऐसे में केजरीवाल का मुकाबला करने के लिए उन्‍हें एक ऐसे चेहरे की तलाश थी जो जनता के बीच दमदार तरीके से 'आप' का हर काट ढूंढ सके। हालांकि बीजेपी में और भी कई चेहरे हैं मसलन हर्षवर्धन, जगदीश मुखी आदि लेकिन चुनावी मुकाबले को अपनी तरफ मोड़ने के लिए पार्टी को ऐसे ही चेहरे की तलाश थी। अब तक दिल्ली में कोई चेहरा न होने का दंश झेल रही बीजेपी ने बेदी को पार्टी में शामिल कर बड़ा दांव खेला है।

यूं कहें कि बीजेपी एक तीर से दो निशाने साधे हैं। केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी को दिल्ली में चेहरा मिल गया और ऐसे में अब 'आप' के लिए बेदी को निशाने पर लेना आसान नहीं रहेगा। किरण बेदी के बीजेपी में शामिल होने के बाद ही दिल्‍ली के सियासी मोर्चे पर हलचल मच गई। सियासी पंडित भी बीजेपी के इस फैसले को जोरदार रणनीतिक कदम बता रहे हैं। किरण बेदी की महिलाओं में अलग छवि रही है। चूंकि दिल्‍ली चुनावों में महिला सुरक्षा भी एक बड़ा मुद्दा है, ऐसे में उनकी छवि बीजेपी के काम जरूर आएगी। बीजेपी के लिए आसान बात यह होगी कि अब चुनावी अभियान के दौरान वह किरण बेदी की ईमानदार छवि को भुनाने की कोशिश करेगी। वहीं, भ्रष्‍टाचार के खिलाफ लड़ाई के नाम पर बीते विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन करने वाले अरविंद केजरीवाल के लिए इस बार वोट बटोरना आसान नहीं रहेगा। हालांकि पिछली बार कांग्रेस के खिलाफ बने माहौल का लाभ भी केजरीवाल को मिला था। भ्रष्‍टाचार के मुद्दे ने सबसे ज्‍यादा कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया और इसका लाभ केजरीवाल को खूब मिला। अब बदले हालात में आम आदमी पार्टी के लिए भ्रष्‍टाचार के मुद्दों को जोरशोर से उठाना संभव नहीं होगा क्‍योंकि बीजेपी के दामन अभी उतने दाग नहीं हैं जितना कि कांग्रेस के दामन पर थे। और वैसे भी बीते एक साल से कोई सरकार न होने के चलते यह मुद्दा किसी पार्टी विशेष को उतना नुकसान नहीं पहुंचाएगा।  

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जिक्र योग्‍य है कि इसी ईमानदार छवि के चलते अरविंद केजरीवाल दिल्‍ली की जनता के बीच काफी लोकप्रिय हुए और महज साल दो साल के अंदर उन्‍होंने आम आदमी पार्टी की गहरी पैठ दिल्‍ली की जनता के बीच बना ली। भ्रष्‍टाचार के खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंकने वाले अन्‍ना हजारे के आंदोलन के दौरान दोनों नेता अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी उनके साथ थे। आज अब उनकी राहें जुदा हो गई हैं और वे अलग अलग राजनीतिक बैनर के तहत दिल्‍ली के चुनावी मैदान में हैं। बीजेपी ने ईमानदार छवि का जवाब ईमानदार छवि से और लोकप्रिय चेहरे का जवाब चर्चित चेहरे के तौर पर दे दिया है। यह देखना भी अब काफी दिलचस्‍प होगा कि दोनों ईमानदार छवि के नेताओं की अगुवाई में किस दल को कितना फायदा होता है। बहरहाल हालाता जो भी हो लेकिन दिल्‍ली की जनता की मंशा एक स्थिर और मजबूत सरकार की है चूंकि बीते करीब एक साल से यहां के बाशिंदों को सरकार के न होने के चलते विभिन्‍न अवरोधों और मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

पंजाब के अमृतसर जिले में जन्मीं किरण बेदी को दिल्ली के अखाड़े में उतारकर बीजेपी ने केजरीवाल के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। एक तरह से देखें तो किरण ने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में अपनी दूसरी पारी की शुरुआत की है। साल 2011 में दिल्ली के जंतर-मंतर से जनलोकपाल को लेकर शुरू हुए आंदोलन में अन्ना हजारे के मंच पर किरण बेदी नजर आती थीं। उस वक्त अन्ना के साथ अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी नजर आते थे। बाद में अरविंद के राजनीतिक पार्टी बना लेने के बाद इसी राजनीति के सवाल पर उन्होंने केजरीवाल का साथ छोड़ा था। अब भारतीय जनता पार्टी में शामिल होकर किरण बेदी ने दिल्ली के तमाम सियासी समीकरण को उलट पुलट दिया है। इस बात को बल उस समय और बल मिला, जब किरण बेदी ने कह डाला कि वे आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार हैं और वह भी केजरीवाल के विधानसभा क्षेत्र में ही। किरण बेदी के आने से दिल्ली बीजेपी को निश्चित ही मजबूती मिलेगी और चुनाव में जनता की अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए जन भरोसा बढ़ेगा। बेदी के आने से बीजेपी और ताकत जरूर मिली है।

केजरीवाल ने अपने 49 दिन के शासनकाल में जिस तरह रिश्वतखोरी कम करने की कोशिश की और एक ईमानदार छवि बनाई, वैसे ही किरण बेदी एक सख्त पुलिस अफसर के तौर पर जानी जाती हैं। साल 1972 में पुलिस सेवा में शामिल होने के बाद 'क्रेन बेदी' के नाम से मशहूर रहीं किरन बेदी ने पार्किंग का उल्लंघन करने पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गाड़ी को भी उठवा लिया था और जुर्माना भी लगाया था। किरण बेदी एक उपलब्धि यह भी है कि दिल्ली में तिहाड़ जेल की महानिरीक्षक रहते हुए उन्होंने कैदियों के प्रति नजरिए को बदला और काफी सुधारात्मक कदम उठाए। उन्‍हें प्रेसीडेंट गेलेंट्री अवॉर्ड समेत कई अवॉर्डों से नवाज जा चुका है। किरण बेदी की समाजसेवा में काफी रुचि है और उन्होंने दो एनजीओ का संचालन भी किया है। तभी तो उन्‍होंने बीजेपी में शामिल होने के बाद कहा कि मैं एक प्रशासक रह चुकी हूं और काम कैसे करवाना है, ये मुझे बखूबी आता है। साल 2007 में पुलिस सेवा से सेवानिवृत्‍त होने तक अपने 35 साल की नौकरीपेशा जिंदगी में किरण बेदी पुलिस महकमे में अपनी सेवा देती रहीं। पार्टी में शामिल होने के मौके पर किरण ने कहा भी कि हम दिल्ली को हिंदुस्‍तान का दिल बनाएंगे और अपनी पूरी ऊर्जा देश को समर्पित करेंगे। उनका यह आत्‍मविश्‍वास जाहिर करता है कि वे पार्टी के अंदर के छोटे मोटे अंतर्विरोधों और मतभेदों को भी सुलझाने में कामयाब होंगी। बेदी का एक और मजबूत पक्ष यह है कि उनकी अपनी विस्‍वसनीयता रही है और हमेशा उनकी छवि एक योद्धा के रूप में रही है।

इस बार के चुनावों में केजरीवाल के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उन्‍होंने 49 दिनों के अंदर ही सरकार से क्‍यों इस्‍तीफा दिया? हालांकि, केजरीवाल कई मौकों पर इस मामले में जनता को सफाई दे चुके हैं लेकिन यह सवाल अभी भी उन्‍हें परेशान कर रहा है। केजरीवाल के इस कदम के बाद विरोधियों ने उन्‍हें भगोड़ा तक करार दे दिया। केजरीवाल की लोकप्रियता में निश्चित तौर पर गिरावट आई लेकिन इसके बावजूद ईमानदार छवि के चलते अब भी वे लोगों की पसंद बने हुए हैं। इसलिए बीजेपी ने अपने इस मास्‍टर स्‍ट्रोक से केजरीवाल के सामने एक बेहतर काट रखा है और अन्‍य चुनौतियों के अलावा आम आदमी पार्टी को अब इससे भी निपटना होगा। जाहिर तौर पर दिल्‍ली में इस समय एक मजबूत और स्थिर सरकार की जरूरत है, ऐसे में बीजेपी का यह दांव कामयाब होता नजर आ रहा है।

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