राष्ट्रकवि दिनकर के बहाने सियासत
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राष्ट्रकवि दिनकर के बहाने सियासत

भगवान बुद्ध की धरती बिहार को लेकर एक बार फिर से सियासत गरमाने लगी है। सभी सियासी दल अपने-अपने तरीके से मौके और अवसर ढूंढने लगे हैं अपनी-अपनी राजनीति चमकाने के लिए। जी हां! हम बात कर रहे हैं राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की दो कालजयी रचनाएं संस्कृति के चार अध्याय और परशुराम की प्रतीक्षा के 50 साल पूरा होने पर आयोजित स्वर्ण जयंती समारोह का। दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दिनकर को याद किया और उनकी जात-पांत की राजनीति से बचने की नसीहत का बखान किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘अगर बिहार को तरक्की करनी है तो जातिवाद से ऊपर उठना होगा। ऐसा नहीं हो पाया तो राज्य के जनजीवन का ताना-बाना छिन्न-भिन्न हो जाएगा।’ प्रधानमंत्री ने दिनकर के मार्च 1961 में लिखे एक पत्र का भी उल्लेख किया जिसमें राष्ट्रकवि ने लिखा था, ‘बिहार को जाति व्यवस्था को भूलना ही होगा। एक या दो जातियों के समर्थन से राज नहीं चलता। यदि जातिवाद से हम ऊपर नहीं उठे तो बिहार का सार्वजनिक जीवन गल जाएगा।' 

कुल मिलाकर पीएम नरेंद्र मोदी ने दिनकर की बात को आगे बढ़ाया और इस बात को पुष्ट किया कि बिहार के विकास के बिना देश की तरक्की अधूरी है। देश के पश्चिमी क्षेत्रों में समृद्धि हो सकती है। लेकिन जब तक पूरब की बुद्धिमत्ता उसके साथ खड़ी नहीं होती, देश पूरी क्षमताओं का इस्तेमाल कर अपने लक्ष्य हासिल नहीं कर सकता। एक बार लक्ष्मी और सरस्वती साथ आ जाएं, फिर दुनिया देखेगी कि भारत कितनी तेजी से तरक्की करता है।’ 

इससे उलट बिहार में स्थानीय भाजपा नेता विधानसभा चुनाव से पहले जाति आधारित सम्मेलनों में भाग लेने में व्यस्त हैं। इसके साथ ही सदस्यता अभियान के तहत भाजपा ऑनलाइन पंजीकरण करा चुके अपने नये सदस्य से जाति बताने के लिए बकायदा कॉलम की व्यवस्था की गई है। हालांकि स्थानीय भाजपा नेताओं का कहना है कि सदस्यता फार्म में जाति वाले कॉलम का होना पुरानी परंपरा है जो कि नए सदस्य के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल करने को ध्यान में रखकर किया जाता रहा है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि दिनकर एक बड़े कवि हैं। लेकिन हमें उनकी विरासत को राजनीतिक इस्तेमाल से बचाने की कोशिश करनी चाहिए। क्योंकि दिनकर को लेकर जिस तरीके से भाजपा आगे बढ़ रही है, ये सवाल उठने लगा है कि चुनाव से ठीक पहले भाजपा को राष्ट्रकवि दिनकर क्यों याद आ गए और याद आए तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिनकर नगर में जाकर समारोह में शिरकत क्यों नहीं की?  उल्लेखनीय है कि दिनकर बिहार के सवर्ण भूमिहार जाति से आते हैं और बिहार में इस साल सितंबर-अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री ने बिहार की राजनीति में जातिवाद का सवाल उठाकर इस मसले पर नई बहस छेड़ दी है।

सूबे के सियासी पंडितों के मुताबिक, दिनकर की रचनाओं के स्वर्ण जयंती कार्यक्रम के जरिए भारतीय जनता पार्टी बिहार में भूमिहारों को साधने की कोशिश में है। कांग्रेस का वर्चस्व खत्म होने के बाद बिहार में सवर्ण जाति भाजपा को वोट करते हैं। इन सवर्णों में भूमिहारों का प्रभुत्व है। आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा के खिलाफ जनता दल यू और राष्ट्रीय जनता दल सहित अधिकांश पार्टियां गोलबंद हो रही हैं। ऐसे में भाजपा अपना हर कदम चुनावी रणनीति के लिहाज से उठा रही है।

यह सच है कि बिहार का अतीत उसकी सामाजिक संरचना, भाईचारा और सौहार्द का रहा है। बिहार ने हमेशा रचनात्मक पहल की है। आज का हिन्दुस्तान जिस भाईचारे को लेकर गर्व करता है, वह बिहार की ही देन है। बिहार ने जहां एक तरफ देशभक्त पैदा किये, वहीं राजशाही, जमींदारी सामाजिक शोषण के खिलाफ बड़े-बड़े नायक को संघर्ष के प्रतीक के रूप में जन्म दिया। लेकिन इस सबके बावजूद गरीबों के विकास के लिए आधारभूत संरचना को मजबूत नहीं किया गया। बिहार में जिस तरह की जाति व्यवस्था या सामाजिक व्यवस्था है उसकी सबसे बड़ी वजह भूमि व्यवस्था रही है। भूमि सुधार कानून को किसी भी सरकार ने प्रभावी ढंग से लागू करने की जहमत नहीं उठाई। देश में जब तक संवैधानिक प्रक्रिया के तहत कोई भी सरकार मजबूत इरादों से वंचितों, गरीबों, शोषितों को उनका हक और सम्मान सुनिश्चित नहीं करेगा तब तक केरल, कर्नाटक, पंजाब, राजस्थान हो या बिहार, भारत का कोई भी राज्य जातिवाद और वर्ण व्यवस्था के मकड़जाल से मुक्त नहीं हो सकता।

अपने 15 साल के शासनकाल में लालू प्रसाद यादव ने आर्थिक, शैक्षणिक और रोजगार के मामलों में समाज के कमजोर तबकों के लिए कोई योजना नहीं बनायी। यदि भूमि सुधार पर उस दौर में काम किया जाता तो मध्य बिहार में नरसंहार का दौर कभी नहीं आता। उन्होंने राजधर्म को नहीं निभाया, सिर्फ वोट धर्म निभाया। नीतीश की सरकार ने भी यही साबित किया कि वोट धर्म ही सर्वोपरि है, राजधर्म नहीं। नीतीश कुमार ने अति पिछड़ों, महादलित की श्रेणी बनाकर जातीय राजनीति का जो प्रयोग किया वह सोशल इंजीनियरिंग की पराकाष्ठा है। आज उसी मकड़जाल में नीतीश कुमार फंसते नजर आ रहे हैं।

अगर आपको याद हो तो भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने एक बार एक सवाल के जवाब में कहा था कि जातिवाद बिहार के डीएनए में है। एक और बयान जनता दल यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के नंबर एक मंडलवादी नेता शरद यादव ने भी दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि जातिवाद की राजनीति के कारण लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार दोनों ने बिहार का नुकसान किया है। और इस सबके बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह बयान कि बिहार की तरक्की के लिए जात-पांत की राजनीति से बाहर निकलना होगा, एक अच्छी पहल है लेकिन इस बात को कहने के लिए प्रधानमंत्री अगर राष्ट्रकवि दिनकर की आड़ नहीं लेते तो इसे एक सार्थक पहल कहने में किसी प्रकार का संकोच नहीं होता। जहां तक दिनकर के सम्मान की बात है तो जिस तरह की कृतज्ञता प्रधानमंत्री ने दिल्ली के विज्ञान भवन में दिनकर के प्रति व्यक्त की वही कृतज्ञता बिहार के सिमरिया स्थित उनके गांव दिनकर नगर में जाकर व्यक्त करते तो दिनकर के बहाने दिनकर नगरी भी खुद को धन्य समझती।

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