21वीं सदी का शाही समाजवाद!
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21वीं सदी का शाही समाजवाद!

समाजवाद और लोहियावाद को केन्द्र में रखकर राजनीति की बात करने वाले मुलायम सिंह यादव 75 साल के हो गए हैं। जन्मदिन की पूर्व संध्या (21 नवंबर) पर लंदन से मंगाई गई खास विंटेज बग्घी में सवार होकर रामपुर की सड़कों पर मुलायम ने जिस तरह से जनता का अभिवादन स्वीकार किया उससे राममनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव की आत्मा जरूर कराह रही होंगी।

समाजवाद और लोहियावाद को केन्द्र में रखकर राजनीति की बात करने वाले मुलायम सिंह यादव 75 साल के हो गए हैं। जन्मदिन की पूर्व संध्या (21 नवंबर) पर लंदन से मंगाई गई खास विंटेज बग्घी में सवार होकर उत्तर प्रदेश के रामपुर की सड़कों पर मुलायम ने जिस तरह से जनता का अभिवादन स्वीकार किया उससे कम से कम राममनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव की आत्मा तो जरूर कराह रही होंगी।

यहां यह जानना रोचक होगा कि समाजवाद और लोहियावाद के इस ढोंगी नायक को जन्मदिन पर उनके खासम-खास और अखिलेश सरकार के शीर्ष मंत्री मोहम्मद आजम खान ने किस तरह से सुर्खियों में लाकर खड़ा कर दिया। शायद आज से पहले सपा कार्यकर्ताओं को छोड़ दें तो देश तो दूर, उत्तर प्रदेश में भी गिनती के लोगों को मुलायम के जन्मदिन की सही तारीख (22 नवंबर) मालूम हो। मुझे भी नहीं पता था नेताजी मुलायम सिंह यादव का हैप्पी बर्थ-डे।

लंदन से मंगाई गई विक्टोरिया बग्घी की सवारी, 75 फीट लंबा केक और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन। समाजवाद की शालीनता गायब, राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव का कोई निशान नहीं। चारों तरफ राजसी शानौ-शौकत,  जहां देखो मुलायम और आजम की तस्वीर वाली होर्डिंग्स और तोरन द्वार। यह नजारा था रामपुर में शुक्रवार को सपा सुप्रीमो के 75वें जन्मदिन की पूर्व संध्या पर मनाए गए समारोह का।

मुलायम अपने बेटे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, अजीज मित्र आजम खां, भाई शिवपाल और यूपी विधानसभा के स्पीकर माता प्रसाद पांडेय के साथ विक्टोरिया बग्घी पर सवार होकर रामपुर की सड़कों पर निकले तो मार्ग के दोनों ओर सजे-धजे स्कूली बच्चों समेत तमाम लोगों ने उनका इस्तकबाल किया। बग्घी के पीछे 50 कारों का काफिला था, जिनमें उत्तर प्रदेश सरकार के 40 मंत्री सवार थे। इस काफिले ने करीब 14 किलोमीटर की दूरी तय की।

मुलायम-अखिलेश की सुरक्षा के लिए 1200 कॉन्स्टेबल, 27 डिप्टी एसपी और दो एसपी लगाए गए थे। शो की राह में छतों पर भी पुलिसकर्मी तैनात थे। प्रशासन की ओर से रास्ते की सभी दुकानों और होटलों को रोड शो के दौरान बंद करा दिया गया था। सूबे की पूरी सरकार रामपुर की सड़कों पर नजर आयी।

नीले रंग से पुती पावर ब्रेक विक्टोरिया बग्घी पर सवार मुलायम का कारवां जहां से निकला स्कूली बच्चे फूल बरसाते दिखे। बच्चे सुबह 7 बजे से अपने खास मेहमान का इंतजार कर रहे थे। मुलायम सिर्फ हाथ हिलाकर सबका अभिवादन कर रहे थे।नजारा 21वीं सदी के समाजवाद का था। कार्यक्रम स्थल को सजाने के लिए चार कुंतल फूलों का इस्तेमाल किया गया। कार्यक्रम के लाइव टेलिकास्ट का इंतजाम भी किया गया था। इसके लिए जौहर विश्वविद्यालय के अलावा शहर में कई जगहों पर एलसीडी स्क्रीन लगवाई गई थी।

रामपुर में शहर से करीब 15 किलोमीटर दूर बनी जौहर यूनिवर्सिटी अलग रंग में थी। पूरी यूनिर्विसटी को बिजली के लट्टुओं से सजाया गया था। 10 हजार लोगों की क्षमता वाला वॉटरप्रूफ पंडाल सांस्कृतिक कार्यक्रम के लिए बनाया गया था। कहते हैं कि कि इस पंडाल के लिए 2 करोड़ रुपये का अनुपूरक बजट सरकार ने स्वीकृत किया है। इसके अलावा रामपुर जिला प्रशासन और संस्कृति विभाग करीब 30 लाख रुपये खर्च किये हैं। सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रस्तुति देने वाले हंसराज हंस को 11.75 लाख रुपये, फिरोज खान को 3.30 लाख रुपये और साबरी ब्रदर्स को 4.50 लाख रुपये दिए गए हैं। नगर विकास विभाग भी अपने फंड से खर्च कर रहा है। कथक और बैले डांसरों ने भी प्रस्तुति दी।

दिल्ली, लखनऊ और मुंबई के बेकर्स ने एक साथ मिलकर मुलायम के लिए 75 फीट का यू आकार का केक बनाया। मेहमानों के लिए खास तरह के व्यंजनों का इंतजाम थे। इसके लिए लखनऊ और दिल्ली से शैफ बुलाए गए थे। आजम खां से सटे लोगों का कहना था कि वैसे तो कई तरह के व्यंजन तैयार किए गए, लेकिन लखनऊ के कबाब और बिरयानी का इस शाही जन्मदिन में विशेष इंतजाम था। मेहमानों को केसरिया दूध भी परोसा गया।

नेताजी! आचार्य नरेंद्र देव और राम मनोहर लोहिया की विचारधारा के वंशज होने के नाते आपका इस तरह से जन्मदिन मनाना देश को बहुत सालों तक याद रहेगा। भूलने वाले लोग ज्यादा दिन नहीं तो साल 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव तक जरूर याद रखेंगे इस शाही जन्मदिन को। क्या यही आपका समाजवाद है, क्या यही आपका लोहियावाद है। नेताजी! जनता भ्रमित है आपके इस शाही जन्मदिन के अंदाज से कि अगर ये समाजवाद है तो फिर डॉ. लोहिया और आचार्य नरेंद्रदेव का समाजवाद क्या जनता से धोखा था?

मैंने तो आज तक यही सुना है कि एकाधिकारवाद का उन्‍मूलन ही सच्‍चा समाजवाद है, वह एकाधिकार चाहे पूंजी का हो या फिर सत्‍ता-समाज के ताने-बाने में शामिल हो। समाजवाद एक पूजा है जिसमें अपने लिए कोई कामना नहीं की जाती और जिसमें बपौती जैसी कुछ भी नहीं होती। इसमें जो भी फैसले होते हैं सामूहिक तौर पर होते हैं, किसी एक के नहीं। समाजवादी वह है जिसकी समाजवाद में आस्था है और जो अपनी इस आस्था के मुताबिक जीने का प्रयास करता है।

समाजवाद की आत्‍मा में लोकतंत्र बसता है। लेकिन जरूरी नहीं कि उसका नेता जिसे समाजवाद बता रहा हो, समाजवाद वही हो। नरेंद्रदेव भी समाजवादी थे, लोहिया भी और किशन पटनायक भी। लेकिन सभी के विचार एक जैसे नहीं थे। लेकिन उन सभी में इस बात की साम्यता थी कि उन्होंने जो जीवन जिया, वह उनके विचारों से बहुत भिन्न नहीं था। सबके समाजवाद में ये बातें समान होंगी कि समस्त व्यवस्था समाज के हित में होगी, हर आदमी की इज्जत की जाएगी, कोई किसी को नौकर नहीं रखेगा तथा हर स्तर पर लोकतंत्र होगा। इससे कम पर किसी विचार को समाजवाद और किसी शख्स को समाजवादी कहना ठीक नहीं होगा।

बहरहाल, युग बदल रहा है। बदलते युग के साथ समाजवाद की परिभाषा भी बदल रही है। लगता है समाजवाद रोटी, कपड़ा और मकान से ऊपर उठ चुका है। इस समाजवाद में वंशवाद, परिवारवाद की स्‍वीकार्यता को भी शामिल कर लिया गया है। आराम और विलासिता से भरी जीवनशैली को इस समाजवाद में ज्यादा अहमियत है। जैसी आपकी ताकत वैसा आपका समाजवाद। आप पीएम हैं तो अलग समाजवाद, सीएम हैं तो अलग समाजवाद, राजनेता हैं तो अलग समाजवाद, पूंजीपति हैं तो अलग समाजवाद। निर्बल और दलितों का कोई समाजवाद नहीं। नेताजी! कहीं यह 21वीं सदी का शाही समाजवाद तो नहीं?

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