हमारे देश में भी एक ऐसा वर्ग है कि जो सुविधाभोगी जीवन जीने का आदी हो गया है. ऐसा वर्ग कहता है कि क्रिकेट व राजनीति अलग-अलग चीज़ हैं.
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भारतीय एयर फोर्स द्वारा पाकिस्तानी इलाके में घुसकर की गई सर्जिकल स्ट्राइक के किस्से आजकल हर ज़बान पर हैं. मानवता के लिए कलंक माने जाने वाले आतंकवाद के खिलाफ भारत का यह साहसिक कदम ऐतिहासिक बन गाया है. अलगाववादियों और आतंकवादियों को अलग-थलग करके उन्हें सभ्य बिरादरियों से निकल फेंकने की भारतीय मंशा की दुनिया तहेदिल से तारीफ भी कर रही है और शुकिया भी अदा कर रही है. ऐसी ही एक सर्जिकल स्ट्राइक की पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के खिलाफ भी ज़रूरत है. कहा जाता है कि वार वहां करो, जहां दर्द ज़्यादा होता है. भारत तो आज विश्व क्रिकेट के सिंहासन पर बैठा है और पाकिस्तानी क्रिकेट गुणात्मकता तथा व्यावसायिकता- दोनों स्तर पर तबाही की राह पर है. विश्व कप, 2019 जून महीने में आ रहा है. भारत का पाकिस्तान से भी मुकाबला है. आजकल यह चर्चा जारों पर है कि भारत को विश्व कप में पाकिस्तान के खिलाफ खेलना भी चाहिए अथवा नहीं.
आतंकवाद के चलते और उसे समर्थन देते रहने के कारण कोई भी क्रिकेट खेलने वाला देश पाकिस्तान तो जाता ही नहीं है. जान हथेली पर लेकर क्रिकेट कौन खेलेगा? राजनीतिक दृष्टिकोण से भारत की यह मुहिम है कि पाकिस्तान को सभ्य दुनिया से अलग-थलग कर दिया जाए. क्या बीसीसीआई और भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी इसमें साथ दे रहे हैं?
मेरी यह मान्यता है कि क्रिकेट सभ्य लोगों का खेल है और आतंकवाद है एक असभ्य हरकत. अगर पाकस्तान आतंकवाद को पाल रहा है और फैला रहा है, तो इस असभ्य हरकत को क्रिकेट की संभ्रांत बिरादरी क्यों सहन करे? बस, इसी मुद्दे पर पाकिस्तानी सरकार को घेरकर क्रिकेट विश्व कप से बाहर करवाने की कोशिश होना चाहिए. यह सही है कि विश्व कप में पाकिस्तान को खिलाया जाता है और भारत मैच छोड़ देता है तो पाकिस्तान को मुफ्त में दो प्वाइंट मिल जाएंगे. भारत के भूतपूर्व कप्तान सुनील गावस्कर और भारत रत्न सचिन तेंदुलकर ने इसी ओर इशारा किया है, लेकिन हमें यह भी गंभीरता से सोचना चाहिए कि आतंकवाद से लड़ाई और जवानों की नियमित शहादतों को हम केवल दो प्वॉइंट व विश्व कप जीतने की तमन्ना व सपने के आगे हल्का कर दें. हमारे 'नायक' कहे जाने वाले खिलाड़ियों के देश के इरादों के साथ खड़ा रहने की आरजू तो दिखाना चाहिए. मानवीय लड़ाई के आगे क्रिकेट की लड़ाई का क्या महत्व है?
आज विश्व क्रिकेट में उपजने वाले धन का 70 प्रतिशत हिस्सा भारत के कारण ही पैदा होता है. ऐसी स्थिति में भारत अपने बाहुबल का उपयोग कर सकता है. दुनियाभर के क्रिकेट खिलाड़ी बीसीसीआई के पाले में रहना चाहते हैं. यहीं से उनकी उन्नति व धन-दौलत की राह खुलती है. आईपीएल जैसे टूर्नामेंट ने अपनी ताकत का एहसास करा दिया है. ऐसी स्थिति में विश्व क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था आईसीसी पर दबाव डाला जा सकता है कि आतंकवाद को पनाह देने वाले देश को ही बाहर का रास्ता दिखा दे. पर इसके लिए पहल तो भारत को ही करना होगी.
भारतीय खिलाड़ी हरभजन सिंह व मुहम्मद कैफ ने तो अपनी जबान खोल दी है. यजुवेंद्र चहल ने भी एक बारगी ही आतंकवाद पर कड़ी चोट करने की गुहार लगाई है. पर जो खिलाड़ी व्यक्तिगत हित की बात सोच कर देशहित की लड़ाई में शामिल नहीं होते, उन्हें कुछ सबक तो सीखना होगा.
मैं सन् 1978 व 1982 में कमेंटरी करने पाकिस्तान गया था. तब इमरान खान पाकिस्तान की टीम के कप्तान हुआ करते थे. कश्मीर के मामले में वह तब भी बड़े संवेदनशील थे. तब पाकिस्तान लगातार भारत के खिलाफ जीत रहा था. वह कहते थे कि कश्मीर पर फैसला क्रिकेट के मैदान पर कर लेते हैं. अब तो भारत लगातार पाकिस्तान को पीट रहा है. किसी भी विश्व कप स्पर्धा में पाकिस्तान कभी भारत को हरा नहीं पाया है. इस कारण आजकल इमरान कश्मीर का फैसला क्रिकेट के मैदान पर करने की बात नहीं कर रहे हैं. कश्मीर समस्या का हौवा चलाकर पाकिस्तानी राजनेता वहां की जनता को हमेशा गुमराह करते रहे हैं. दूसरे देशों में आतंकरवाद फैलाने का शौक खुद पाकिस्तान पर अब भारी पड़ने लगा है. आतंकवादियों ने वहां के निर्दोषों पर भी हमले करना शुरू कर दिए हैं.
हमारे देश में भी एक ऐसा वर्ग है कि जो सुविधाभोगी जीवन जीने का आदी हो गया है. ऐसा वर्ग कहता है कि क्रिकेट व राजनीति अलग-अलग चीज़ हैं. कुछ भी हो, बस क्रिकेट चलते रहना चाहिए. यह ग़लत दिशा की सोच है. देश की अस्मिता के आगे क्रिकेट का क्या महत्व? अत: हमें एकतुट होकर आतंकवाद के जनक देश को हर सभ्य इलाके से काट देना चाहिए. क्रिकेट अगर सभ्य लोगों का खेल है, तो आतंकवाद के असभ्य अपराध को फैलाने देश को इस खेल से अलग क्यों न करें? भारत को किसी भी खेल में पाकिस्तान से तब तक नहीं खेलना चाहिए जब तक वह अपने विचारों में आमूलचूल परिवर्तन नहीं करता है. दुनिया के अंधभक्त देश भी इसी आचरण का अनुसरण करें तो आतंकवाद फैलाने वाले देश को समुचित सबक मिल सकेगा.
(लेखक प्रसिद्ध कमेंटेटर और पद्मश्री से सम्मानित हैं.)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)