क्यों स्त्री होना आसान नहीं होता?
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क्यों स्त्री होना आसान नहीं होता?

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कवि लक्ष्मण सिंह रावत की एक कविता...

फाइल फोटो.

जिसके पैदा होने से पहले,
उसे मारने की साजिशें पलें,
जो न किसी फरियाद, आशीर्वाद में मिले
जिसके पैदा होने से, परिवार के दिल न खिलें
और उसकी मां को उसके जन्म पर रोज ताने मिले
ऐसे में पैदा होना कहां आसान होता है?
स्त्री होना आसान नहीं होता!

हर रोज जो उसे अपने ही परिवार में भेदभाव मिले
चुपचाप रहती है मां की खातिर, अपने मुंह को सिले
हां! है हुनर उसमें भी, ऊंची उड़ान भरने का
पर, पैरों में उसे सिर्फ बेड़ियां ही मिलें
चुपचाप ऐसे गुमनामी में जीना, कहां आसान होता है?
स्त्री होना आसान नहीं होता!

निकले जो बाहर, तो लिबास से लेकर रिवाज तक में सुनने को मिले
तो कभी, समाज की गंदी नजरों से खुद को बचा कर चले
जो मिले उसे थोड़ी कामयाबी, तो लोगों में नई-नई बातें चलें
हां, दे सकती है हर बात का जवाब वह
पर, उसे चुप रहने का ही सुझाव मिले
इतने अपमान के साथ जीना, कहां आसान होता है?
स्त्री होना आसान नहीं होता!

बचपन से ही जिसे, पराया समझ लेते हैं
और, पिता का अधूरा बोझ कहते हैं
फिर बांधकर कुछ बंधनों में, नए घर भेज देते हैं
नए घर, रिश्तों, रिवाजों में जीना, कहां आसान होता है?
स्त्री होना आसान नहीं होता !

जिसका अपना शरीर उसे पीड़ा दे
और, समाज हर पल एक मानसिक उत्पीड़ा दे
इन सब को छुपा कर जीना आसान नहीं होता
स्त्री होना आसान नहीं होता!

कवि
लक्ष्मण सिंह रावत

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