दिल्ली मेट्रो ने भारत के भविष्य के बारे में मेरी निराशा को तोड़ा है: पनगढ़िया
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दिल्ली मेट्रो ने भारत के भविष्य के बारे में मेरी निराशा को तोड़ा है: पनगढ़िया

नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने एक कुशल शहरी परिवहन प्रणाली स्थापित करने में दिल्ली मेट्रो की आशातीत सफलता की आज प्रसंशा की और कहा कि यह परियोजना उन कुछ महत्वपूर्ण बातों में शामिल है जिन्होंने भारत के भविष्य के बारे में ‘उनकी निराशा’ को तोड़ने में मदद की है। पेशे से अर्थशास्त्री पनढ़िया ने इसकी तुलना न्यूयार्क शहर से की। 

दिल्ली मेट्रो ने भारत के भविष्य के बारे में मेरी निराशा को तोड़ा है: पनगढ़िया

नई दिल्ली: नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया ने एक कुशल शहरी परिवहन प्रणाली स्थापित करने में दिल्ली मेट्रो की आशातीत सफलता की आज प्रसंशा की और कहा कि यह परियोजना उन कुछ महत्वपूर्ण बातों में शामिल है जिन्होंने भारत के भविष्य के बारे में ‘उनकी निराशा’ को तोड़ने में मदद की है। पेशे से अर्थशास्त्री पनढ़िया ने इसकी तुलना न्यूयार्क शहर से की। 

उन्होंने कहा कि ‘दिल्ली मेट्रो रेल कापरेरेशन जब बंद होता है तो दिल्ली बंद हो जाती है। यह न्यूयार्क की ही तरह है जो वहां सबवे (न्यूयॉर्क मेट्रो) के बंद होने पर ठहर जाता है।’ उन्होंने यहां दिल्ली मेट्रो रेल कापरेरेशन (डीएमआरसी) के 22वें स्थापना दिवस समारोह में कहा कि दिल्ली मेट्रो का सफर ‘चमत्कृत’ करने वाला है। इन दशकों में यह शून्य से 213 किलो मीटर तक पहुंच गयी है। यह कामयाबी आशातीत है। यह उत्कृष्टता के द्वीप जैसा है या यू कहें कि एक विकासशील देश में यह एक विकसित देश जैसा है।’ समारोह का आयोजन मेट्रो-भवन में किया गया था।

दिल्ली मेट्रो की यात्रा 1990 के दशक के बाद के वर्षों में शुरू हुई। उसके बाद से इसका नेटवर्क लगातार बढ रहा है और आज यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के कई कस्बों को दिल्ली से जोड़ चुकी है। डीएमआरसी अपने काम के अलावा कई अन्य शहरों में मेट्रो रेल नेटवर्क के निर्माण और परिचालन के मामले में अपनी परामर्श सेवाएं दे रहा है।

पनगढ़िया ने कहा कि उन्होंने भारत की, खास कर आजादी के बाद के दौर में इसकी विकास प्रक्रिया का बहुत करीबी से विश्लेषण किया है। ‘1980 के दशक के बाद मैं बहुत निराश हो चला था और सोचता था क्या भारत ऐसा कुछ कर सकता है जैसा दक्षिण कोरिया, ताइवान और चीन जैसे कुछ विकासशील देशों ने कर दिखाया है।’

‘इंडिया: दी एमर्जिंग जायंट’ पुस्तक के लेखक पनढ़िया ने कहा कि 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव की उदारवादी नीतियों ने भारतीय अर्थव्यवसा के बंद द्वार खोल दिये। उसके बादे से उनकी निराशा आशा में बदलने लगी। उसके बाद मुझे सड़क ढांचे को लेकर फिर निराशा पैदा हुई थी। उस निराशा को वाजपेयी सरकार की ‘स्वर्णिम चतरुभुज योजना’ ने तोड़ा।

उन्होंने कहा, और मेरी तीसरी निराशा शहरी परिवहन प्रणाली को लेकर थी। हम बड़े-बड़े शहर बना रहे हैं। एफएसआई (फ्लोर एरिया रेशियो) के जो नियम हैं। हर कोई शहर में नहीं रह सकता, पर उसे काम के लिए शहर आने की जरूरत होती है। और इस मामले में मेरी निराशा डीएमआरसी ने तोड़ी। समारोह में डीएमआरसी के प्रबंध निदेशक मंगू सिंह, शहरी विकास मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव डी पी मिश्रा और दिल्ली के मुख्य सचिव के के शर्मा भी उपस्थित थे।

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